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सुजॉय जी को शादी का तोहफ़ा देने आ गए हैं सलीम-सुलेमान और अमिताभ भट्टाचार्य "बैंड बाजा बारात" के साथ

अभी वक़्त है अपने नियमित ताज़ा सुर ताल का.. ताज़ा सुर ताल यानि कि टी एस टी, जिसके मेजबान मुख्य रूप से सुजॉय जी हुआ करते हैं। मुख्य रूप से इसलिए कहा क्योंकि हर मंगलवार के दिन समीक्षा के दौरान उनसे बातचीत होती है, अब ये बातचीत मैं करूँ या फिर सजीव जी करें... पिछली मर्तबा ये बागडोर सजीव जी ने संभाली थी और उसके पहले कई हफ़्तों तक बातचीत का वो सिरा मेरे हाथ में था.. लेकिन दूसरा सिरा हमेशा हीं सुजॉय जी थामे रहते हैं। आज के दिन और आज के बाद दो-तीन और हफ़्तों तक स्थिति अलग-सी रहने वाली है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सुजॉय जी घर गए हुए हैं.. अपनी ज़िंदगी के उस सिरे को संभालने जिसका दूसरा सिरा उनकी अर्धांगिनी के हाथों में है। जी हाँ, कल हीं सुजॉय जी की शादी थी। शादी बड़ी धूमधाम से हुई और होती भी क्यों नहीं, जब हम सब दोस्तों और शुभचिंतकों की दुआएँ उनके साथ थीं। हम सब तक की तरफ़ से सुजॉय जी को शादी की शुभकामनाएँ, बधाईयाँ एवं बहुत-बहुत प्यार .. (बड़ों की तरफ़ से आशीर्वाद भी).. हम नहीं चाहते थे कि इन मंगल घड़ियों में उन्हें थोड़ा भी तंग किया जाए, इसलिए कुछ हफ़्तों तक ताज़ा सुर ताल मैं अकेले हीं (या फिर कभ

संगीत समीक्षा : गुजारिश - संगीत निर्देशन में भी अव्वल साबित हुए संजय लीला भंसाली...तुराज़ के शब्दों ने रचा एक अनूठा संसार

दोस्तों आज टी एस टी मैं आप मुझे देखकर हैरान हो रहे होंगें, दरअसल सुजॉय छुट्टी पर हैं, और मैंने वी डी को पटा कर ये मौका ढूंढ लिया कि मैं आपको उस अल्बम के संगीत के बारे में बता सकूँ जिसने मेरे दिलो जेहन पर इन दिनों जादू सा कर दिया है. जब बात संगीत की चलती है, और जब कोई मुझसे पूछता है कि मुझे किस तरह का संगीत पसंद है तो मैं बड़ी उलझन में फंस जाता हूँ, क्योंकि मुझे लगभग हर तरह का संगीत पसंद आता है, पुराने, नए, शास्त्रीय, हिप होप, ग़ज़ल सभी कुछ तो सुनता हूँ मैं, फिर किसे कहूँ कि ये मुझे नापसंद नहीं....खैर पसंद भी कई तरह की होती है, कुछ गीतों के शब्द हमें भा जाते हैं (मसलन गुलाल) तो कुछ उसके खालिस संगीत संयोजन की वजह से मन को लुभा जाते (जैसे रोबोट और अजब प्रेम की गजब कहानी) हैं....हाँ पर ऐसी अल्बम्स तो मैं उँगलियों पे गिन सकता हूँ जिसने मुझे संगीत की सम्पूर्ण संतुष्ठी दी है. ऐसा संगीत जिसे सुन तन मन और आत्मा भी संतुष्ट हो जाए.....संजय लीला बंसाली एक ऐसे निर्देशक हैं, जिनकी फ़िल्में रुपहले पर्दे पर कविता लिखती है, वो शुद्ध भारतीय सोच के निर्देशक हैं जो बिना गीत संगीत के फिल्मों की कल्पना नहीं

रब्बा लक़ बरसा.... अपनी फ़िल्म "कजरारे" के लिए इसी किस्मत की माँग कर रहे हैं हिमेश भाई

ताज़ा सुर ताल २१/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और ताज़े अंक के साथ हम हाज़िर हैं। विश्व दीपक जी, इस शुक्रवार को 'राजनीति' प्रदर्शित हो चुकी हैं, और फ़िल्म की ओपनिंग अच्छी रही है ऐसा सुनने में आया है, हालाँकि मैंने यह फ़िल्म अभी तक देखी नहीं है। 'काइट्स' को आशानुरूप सफलता ना मिलने के बाद अब देखना है कि 'राजनीति' को दर्शक किस तरह से ग्रहण करते हैं। ख़ैर, यह बताइए आज हम किस फ़िल्म के संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं। विश्व दीपक - आज हम सुनेंगे आने वाली फ़िल्म 'कजरारे' के गानें। सुजॊय - यानी कि हिमेश इज़ बैक! विश्व दीपक - बिल्कुल! पिछले साल 'रेडियो - लव ऑन एयर' के बाद इस साल का उनका यह पहला क़दम है। 'रेडियो' के गानें भले ही पसंद किए गए हों, लेकिन फ़िल्म को कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली थी। देखते हैं कि क्या हिमेश फिर एक बार कमर कस कर मैदान में उतरे हैं! सुजॊय - 'कजरारे' को पूजा भट्ट ने निर्देशित किया है, जिसके निर्माता हैं भूषण कुमार और जॉनी बक्शी। फ़िल्म के नायक हैं, जी हाँ, हिमेश रेशम्मिया, और उनके साथ हैं मोना लायज़ा, अमृ