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इसकी टोपी उसके सर - प्रसिद्ध ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड कलेक्टर वी. एस. दत्ता बता रहे हैं पुराने ज़माने के कुछ इन्स्पायर्ड गीतों के बारे में

स्मृतियों के स्वर - 12 प्रसिद्ध ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड कलेक्टर वी. एस. दत्ता बता रहे हैं पुराने ज़माने के कुछ इन्स्पायर्ड गीतों के बारे में इसकी टोपी उसके सर 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकिया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तम्भ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के

"क़िस्मत ने हमें रोने के लिए दुनिया में अकेला छोड़ दिया...", क्यों आँखें भर आईं सुरैया की इस गीत को फ़िल्माते हुए?

एक गीत सौ कहानियाँ - 43   ‘क़िस्मत ने हमें रोने के लिए दुनिया में अकेला छोड़ दिया... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 43-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'मोतीमहल' के गीत "क़िस्मत ने हमें रोने के लिये दुनिया में अकेला छोड़ दिया" के बारे में।

मैं तेरी हूँ तू मेरा है....मधुबाला जावेरी का नटखट अंदाज़ निखारा हंसराज बहल ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 337/2010/37 'ह मारी याद आएगी' के आज के अंक में गूंजने वाली है एक और बेहद मधुर गायिका की आवाज़। वक़्त के साथ साथ इस गायिका की यादें ज़रा धुंधली सी हो गई है और आज शायद ही आम ज़िंदगी में हम रोज़ इन्हे याद करते हैं, लेकिन किसी ज़माने में इनके गाए गीतों से संगीत रसिक काफ़ी मुतासिर हुआ करते थे। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की एक और कमचर्चित गायिका मधुबाला ज़वेरी हैं आज के इस कड़ी की आवाज़। चर्चित कलाकारों के बारे में तो बहुत सारे तथ्य हमें कहीं ना कहीं से मिल ही जाते हैं, लेकिन इन कमचर्चित फ़नकारों के बारे में जानकारी इकट्ठा करना कभी कभी बेहद मुश्किल सा हो जाता है। मधुबाला ज़वेरी के बारे में भी बहुत ज़्यादा जानकारी तो हम एकत्रित नहीं कर सके, लेकिन यहाँ वहाँ से कुछ कुछ बातें हमने मालूम ज़रूर किए हैं ख़ास इस कड़ी को संवारने के लिए। मधुबाला जी का जन्म सन् १९३२ के करीब हुआ था। 'करीब' हम इसलिए कह रहे हैं दोस्तों क्योंकि उनकी जन्म तिथि हम मालूम नहीं कर पाए, लेकिन ३० जुलाई २००६ को मुंबई के चार्नी रोड हॊल में मधुबाला जी के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया

भूल जा सपने सुहाने भूल जा....रचने वाले हंसराज बहल को भूला दिया दुनिया ने...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 78 दो स्तों, फ़िल्म जगत में बहुत से ऐसे संगीतकार हुए हैं जिन्होने काम तो बहुत किया है लेकिन उनकी क़िस्मत ने उनका इतना साथ नहीं दिया कि वो भी शोहरत की बुलन्दियों को छू पाते। ऐसे ही एक संगीतकार रहे हैं हंसराज बहल। राजधानी, मिलन, मिस बाम्बे, चंगेज़ ख़ान, सावन, और सिकंदर-ए-आज़म उनकी कुछ चर्चित फ़िल्में रही हैं। गायिका आशा भोंसले ने अपना पहला हिन्दी फ़िल्मी गीत इन्ही के संगीत निर्देशन में १९४८ में फ़िल्म 'चुनरिया' के लिए गाया था। हंसराज बहल ने गायिका मधुबाला ज़वेरी को भी उनका पहला ब्रेक दिया था। हंसराज बहल के छोटे भाई गुलशन बहल के साथ मिलकर वो निर्माता भी बने और अपने बैनर का नाम रखा अपने पिता निहाल चन्द्र के नाम पर, एन. सी. फ़िल्म्स। इस बैनर के तले पहली फ़िल्म बनी थी 'लाल परी' और आगे चलकर कुछ २० के आसपास फ़िल्में इन दोनो भाइयों ने बनाये और इन सभी फ़िल्मों में हंसराज का संगीत था। इसी बैनर के तले बनी थी १९५६ की फ़िल्म 'राजधानी' जिसका एक बड़ा ही मशहूर गीत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। "भूल जा सपने सुहाने