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ओल्ड इस गोल्ड - शनिवार विशेष - जब गुड्डो दादी नें बताया पंडित बागा राम व पंडित हुस्नलाल के परिवार के साथ उनके पारिवारिक संबंध के बारे में

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के गानें रेकॉर्ड/ कैसेट्स/ सीडी'ज़ के ज़रिये अनंतकाल तक सुरक्षित रहेंगे, इसमें कोई शक़ नहीं है, और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि सुनहरे दौर के फ़नकार भी अमर रहेंगे। लेकिन जब हम इन अमर फ़नकारों के बारे में आज जानना चाहते हैं तो कुछ किताबों, पत्र-पत्रिकाओं और विविध भारती के संग्रहालय में उपलब्ध कुछ साक्षात्कारों के अलावा कोई और ज़रिया नहीं है। इन कलाकारों के परिवार वालों से भी जानकारी मिल सकती है लेकिन उन तक पहुँचना हमेशा संभव नहीं होता। ऐसे में अगर हमें कोई मिल जाये जिन्होंने उस ज़माने के कलाकार को या उनके परिवार को करीब से देखा है, जाना है, तो उनसे बातचीत करनें में भी एक अलग ही रोमांच हो आता है। यह हमारा सौभाग्य है कि 'हिंद-युग्म आवाज़' परिवार के श्रोता-पाठकों में भी कई मित्र ऐसे हैं जिन्होंने न केवल उस ज़माने से ताल्लुख़ रखते हैं बल्कि स्वर्णिम युग के कुछ कलाकारों के संस्पर्श में भी आने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ऐसी ही एक शख़्स हैं हमारी गुड्डो दादी। अभी हाल ही में जब मुझे सजीव जी से पता चला कि ग

ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने - लता विशेषांक

'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इन दिनों इस साप्ताहिक स्तंभ में हम लेकर आ रहे हैं आप ही के ईमेलों पर आधारित 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने'। जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि २८ सितंबर को सुर कोकिला लता मंगेशकर का जन्मदिन है। लता जी को जनमदिन की बधाई और शुभकामना स्वरूप आज के इस अंक के लिए हम लेकर आये हैं एक विशेष प्रस्तुति जिसे हमने तैयार किया है हमारे दो साथियों के ईमेलों के आधार पर। और ये दो साथी हैं हमारी प्यारी गुड्डो दादी, और हमारी एक नई दोस्त अनीता निहालानी, जो ईमेल के माध्यम से कुछ ही दिन पहले हमसे जुड़ी हैं। तो आइए सब से पहले पढ़ें कि गुड्डो दादी का क्या कहना है लता जी के बारे में। सुजॉय बेटा चिरंजीव भवः सुर-साम्राज्ञी, भारत की बगिया की कोकिला, लता जी को जन्मदिवस की शुभ मंगल कामनाएँ। १९४७ में संगीतकार पंडित हुस्नलाल जी के घर मिली थी परिवार के साथ। फिर लता जी को शायद १९९० में शिकागो में मिली थी, दो मिनट ही बात हो सकी। सफ़ेद साड़ी लाल बोर्डर के सादे परिधान में बहुत ही सुंदर लग रही थी। स्वर साधना की देवी से मैंने यही पूछा की आप जूते पहन

'ओल्ड इज़ गोल्ड' - ई-मेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें - ०१

नमस्कार दोस्तों! आज आप मुझे यहाँ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के स्तंभ में देख कर हैरान ज़रूर हो रहे होंगे कि भई शनिवार को तो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल नहीं सजती है, तो फिर यह व्यतिक्रम कैसा! है न? दरअसल बात कुछ ऐसी है कि जब से हमने 'ओल इज़ गोल्ड' को दैनिक स्तंभ से बदल कर सप्ताह में पाँच दिन कर दिए हैं, हम से कई लोगों ने समय समय पर इसे फिर से दैनिक कर देने का अनुरोध किया है। हमारे लिए यह आसान तो नहीं था, क्योंकि अपनी रोज़-मर्रा की व्यस्त ज़िंदगी से समय निकाल कर ऐसा करना ज़रा मुश्किल सा हो रहा था, लेकिन आप सब के आग्रह और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आपकी दिलचस्पी को हम नज़रंदाज़ भी तो नहीं कर सकते थे। इसलिए हमें एक नई बात सूझी। और वह यह कि कम से कम शनिवार को हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल सजाएँगे ज़रूर, लेकिन उस स्वरूप में नहीं जिस स्वरूप में रविवार से गुरुवार तक सजाते हैं। बल्कि क्यों ना कुछ अलग हट के किया जाए इसमें। नतीजा यह निकला कि आज से सम्भवत: हर शनिवार की शाम यह ख़ास महफ़िल सजेगी, जो कहलाएगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें'। 'ईमेल