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दो चमकती आँखों में कल ख्वाब सुनहरा था जितना.....आईये याद करें गीत दत्त को आज उनकी पुण्यतिथि पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 443/2010/143 "दो चमकती आँखों में कल ख़्वाब सुनहरा था जितना, हाये ज़िंदगी तेरी राहों में आज अंधेरा है उतना"। गीता दत्त के गाए इस गीत को सुनते हुए दिल उदास हो जाता है क्योंकि ऐसा लगता है कि जैसे यह गीत गीता जी की ही दास्ताँ बता रहा है। "हमने सोचा था जीवन में कोई चांद और तारे हैं, क्या ख़बर थी साथ में इनके कांटें और अंगारे हैं, हम पे क़िस्मत हँस रही है, कल हँसे थे हम जितना"। उफ़! जैसे कलेजा निकाल दे! आज २० जुलाई, गीता जी का स्मृति दिवस है। उनकी सुर साधना को 'आवाज़' की तरफ़ से श्रद्धा सुमन! दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों जारी है लघु शृंखला 'गीत अपना धुन पराई'। आइए आज गीता जी की याद में उन्ही की आवाज़ में फ़िल्म 'डिटेक्टिव' का यही गीत सुनते हैं जो शायद उनके जीवन के आख़िरी दिनों की कहानी कह जाए! इस फ़िल्म के संगीतकार थे गीता जी के ही भाई मुकुल रॊय और इस गीत को लिखा शैलेन्द्र जी ने। 'डिटेक्टिव' बनी थी सन् १९५८ में। निर्देशक शक्ति सामंत ने तब तक 'इंस्पेक्टर', 'हिल स्टेशन' और 'शेरू

जितने अच्छे गायक थे, उतने ही बढ़िया संगीतकार भी थे हेमंत दा

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४० युं तो शक़ील बदायूनी ने ज़्यादातर संगीतकार नौशाद साहब के लिए ही गीत लिखे, लेकिन दूसरे संगीतकारों के लिए लिखे उनके गानें भी उतने ही मक़बूल हुए थे। उन संगीतकारों में से कुछ नाम शक़ील साहब ने ख़ुद बताए थे अमीन सायानी के एक पुराने इंटरव्यू में जो रिकार्ड हुआ था १९६९ में, जब अमीन भाई ने उनसे पूछा था कि उनकी ज़बरदस्त कामयाबी का सब से ख़ास, सब से अहम राज़ क्या है। शक़ील साहब का जवाब था - "सन् '४६ का गीतकार होकर आज सन् '६९ में भी वही दर्जा हासिल किए हुए हूँ, इसका राज़ इसके सिवा कुछ नहीं अमीन साहब कि मैने हमेशा क्वांटिटी के मुक़ाबले क्वालिटी पर ज़्यादा ध्यान दिया। हालाँकि इस बात से मुझे कुछ माली क़ुरबानियाँ भी करनी पड़ी, मगर मेरा ज़मीर मुतमैन है कि मैने फ़िल्म इंडस्ट्री की ज़्यादा से ज़्यादा ख़िदमत की है, और मुझे फ़क्र है मैने बड़े बड़े पुराने संगीतकारों यानी कि खेमचंद प्रकाश, श्यामसुंदर, ग़ुलाम मोहम्मद, ख़ुर्शीद अनवर, सी. रामचन्द्र, सज्जाद, और नौशाद से लेकर रवि, हेमंत कुमार, कल्याणजी, एस. डी. बर्मन, सोनिक ओमी तक के साथ काम किया।" दोस्तों, आइए सुन

फिल्मों गीतों की दास्ताँ गीता के जिक्र बिना कैसे पूरी हो...

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३० 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में आज वह गीत जिस गीत के बनने के बाद से गीता दत्त ओ.पी. नय्यर साहब को बाबूजी कह कर बुलाया करती थीं। आप समझ चुके होंगे, जी हाँ, "बाबूजी धीरे चलना, प्यार में ज़रा संभलना"। उन दिनों गीता दत्त के गाए इस तरह के नशीले अंदाज़ वाले गीतों को काफ़ी बोल्ड समझा जाता था। कई बार तो सेन्सर बोर्ड की भी आपत्ति का सामना करना पड़ा है, जैसे कि एक बार हुआ था "जाता कहाँ है दीवाने, सब कुछ यहाँ है सनम" गीत को लेकर। आज के दौर में यह वाक़ई अजीब सा लगता है सोच कर! तो साहब मजरूह सुल्तानपुरी, ओ. पी. नय्यर, और गीता दत्त, ५० के दशक के मध्य भाग में इस तिकड़ी ने फ़िल्म संगीत जगत में जैसे हंगामा ही खड़ा कर दिया था। अपने शुरुआती दिनों में गीता दत्त को केवल भक्ति रचनाएँ ही गाने को मिलते थे। उनकी आवाज़ में भक्ति गीत बेहद सुदर जान पड़ते। ऐसा लगने लगा था कि गीता जी की प्रतिभा को भक्ति रस के खाँचे में ही क़ैद कर दिया जाएगा। लेकिन संगीतकार ओ. पी. नय्यर ने पहली बार अपनी पहली ही फ़िल्म 'आसमान' में गीता जी से गानें गवाए और यहा~म से शुरु हु

न मैं धन चाहूँ, न रतन चहुँ....मन को पावन धारा में बहा ले जाता एक मधुर भजन....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 394/2010/94 दो स्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आप सुन रहे हैं पार्श्वगायिकाओं के गाए युगल गीतों पर आधारित हमारी लघु शृंखला 'सखी सहेली'। आज इस शृंखला की चौथी कड़ी में प्रस्तुत है गीता दत्त और सुधा मल्होत्रा की आवाज़ों में एक भक्ति रचना - "ना मैं धन चाहूँ ना रतन चाहूँ, तेरे चरणों की धूल मिल जाए"। फ़िल्म 'काला बाज़ार' की इस भजन को लिखा है शैलेन्द्र ने और सगीतबद्ध किया है सचिन देव बर्मन ने। जैसा कि हम पहले भी ज़िक्र कर चुके हैं और सब को मालूम भी है कि गीता जी की आवाज़ में कुछ ऐसी खासियत थी कि जब भी उनके गाए भक्ति गीतों को हम सुनते हैं, ऐसा लगता है कि जैसे भगवान से गिड़गिड़ाकर विनती की जा रही है बहुत ही सच्चाई व इमानदारी के साथ। और ऐसी रचनाओं को सुनते हुए जैसे मन पावन हो जाता है, ईश्वर की आराधना में लीन हो जाता है। फ़िल्म 'काला बाज़ार' के इस भजन में भी वही अंदाज़ गीता जी का रहा है। और साथ में सुधा मल्होत्रा जी की आवाज़ भी क्या ख़ूब प्यारी लगती है। इन दोनों की आवाज़ों से जो कॊन्ट्रस्ट पैदा हुआ है गीत में, वही गीत को और भी

तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी...ये गीत समर्पित है हमारे श्रोताओं को जिनकी बदौलत ओल्ड इस गोल्ड ने पूरा किया एक वर्ष का सफर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 350/2010/50 'प्यो र गोल्ड' की अंतिम कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं। १९४० से शुरु कर साल दर साल आगे बढ़ते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस दशक के अंतिम साल १९४९ पर। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की अगर हम बात करें तो सही मायने में इस दौर की शुरुआत १९४८-४९ के आसपास से मानी जानी चाहिए। यही वह समय था जब फ़िल्म संगीत ने एक बार फिर से नयी करवट ली और नए नए प्रयोग इसमें हुए, नई नई आवाज़ों ने क़दम रखा जिनसे यह सुनहरा दौर चमक उठा। 'बरसात', 'अंदाज़', 'महल', 'शायर', 'जीत', 'लाहौर', 'एक थी लड़की', 'लाडली', 'दिल्लगी', 'दुलारी', 'पतंगा', और 'बड़ी बहन' जैसी सुपर हिट म्युज़िकल फ़िल्मों ने एक साथ एक ऐसी सुरीली बारिश की कि जिसकी बूंदें आज तक हमें भीगो रही है। दोस्तों, हम चाहते तो इन फ़िल्मों से चुनकर लता मंगेशकर या मुकेश या मोहम्मद रफ़ी या फिर शमशाद बेग़म या गीता रॊय का गाया कोई गीत आज सुनवा सकते थे। लेकिन इस शृंखला में हमने कोशिश यही की है कि उन कलाकारों को ज़्यादा बढ़ावा दिया जाए जो सही अर्

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (२३)

मखमली आवाज़ के जादूगर तलत महमूद साहब को संगीत प्रेमी अक्सर याद करते है उनकी दर्द भरी गज़लों के लिए. उनके गाये युगल गीत उतने याद नहीं आते है. अगर बात मेरी पसंदीदा गायिका गीता दत्त जी की हो तो उनके हलके-फुल्के गीत पसंद करने वालों की संख्या अधिक है. थोड़े संगीत प्रेमी उनके गाये भजन तथा दर्द भरे गीत भी पसंद करते है. गीताजी के गाये युगल गीतों की बात हो तो, मुहम्मद रफ़ी साहब के साथ उनके गाये हुए सुप्रसिद्ध गीत ही ज्यादा जेहन में आते है. सत्तर और अस्सी के दशक के आम संगीत प्रेमी को तो शायद यह पता भी नहीं था, कि तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी ने मिलकर एक से एक खूबसूरत और सुरीले गीत एक साथ गाये है. सन १९८४ के करीब एक नौजवान एच एम् वी (हिज़ मास्टर्स वोईस ) कंपनी में नियुक्त किया गया. यह नौजवान शुरू में तो शास्त्रीय संगीत के विभाग में काम करता था, मगर उसे पुराने हिंदी फ़िल्मी गीतों में काफी दिलचस्पी थी. गायिका गीता दत्त जी की आवाज़ का यह नौजवान भक्त था. उसीके भागीरथ प्रयत्नोके के बाद एक एल पी (लॉन्ग प्लेयिंग) रिकार्ड प्रसिद्द हुआ "दुएट्स टू रेमेम्बर" (यादगार युगल गीत) : तलत महमूद - गीता

कैसे कोई जिये, ज़हर है ज़िंदगी... कुछ और ही रंग होता है गीता दत्त की आवाज़ में छुपे दर्द का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 291 गी ता दत्त और शैलेन्द्र को समर्पित दो लघु शृंखलाओं के बाद आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' को चौथी बार के लिए दे रहे हैं फ़रमाइशी रंग। यानी कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड पहेली प्रतियोगिता' के चौथे विजेयता पराग सांकला जी के फ़रमाइशी गीतों को सुनने का वक़्त आख़िर आ ही गया है। तो आज से अगले पाँच दिनों तक इस महफ़िल को रोशन करेंगे पराग जी के पाँच मनचाहे गीत। हम सभी जानते हैं कि पराग जी गीता दत्त जी के परम भक्त हैं, और गीता जी के गीतों और उनसे जुड़ी बातों के प्रचार प्रसार में उन्होने एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और लगातार उस ओर उनका प्रयास जारी है। तो ऐसे में अगर हम उनके पसंद का पहला गाना गीता जी की आवाज़ में न सुनवाएँ तो ग़लत बात हो जाएगी। तो चलिए आज सुना जाए गीता जी की आवाज़ में एक और दर्द भरा नग़मा। पता नहीं क्यों जब भी हम गीता जी के गाए ये दर्द भरे और ग़मगीन गानें सुनते हैं तो अक्सर उन गीतों के साथ हम उनकी निजी ज़िंदगी को भी जोड़ देते हैं। उनकी व्यक्तिगत जीवन में जो ग़मों और तक़लीफ़ों के तूफ़ान आए थे, वो उनके गाए तमाम गीतों में भी झलकते हैं। और सब से ज

मेरा दिल जो मेरा होता....गीता जी की आवाज़ और गुलज़ार के शब्द, जैसे कविता में घुल जाए अमृत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 280 गी ता दत्त जी के गाए गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस ख़ास लघु शृंखला 'गीतांजली' की अंतिम कड़ी पर। पराग सांकला जी के सहयोग से इस पूरे शृंखला में आप ने ना केवल गीता जी के गाए अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए हुए गीत सुनें, बल्कि उन अभिनेत्रियों और उन गीतों से संबंधित तमाम जानकारियों से भी अवगत हो सके। अब तक प्रसारित सभी गीत ५० के दशक के थे, लेकिन आज इस शृंखला का समापन हो रहा है ७० के दशक के उस फ़िल्म के गीत से जिसमें गीता जी की आवाज़ आख़िरी बार सुनाई दी थी। यह गीत है १९७१ की फ़िल्म 'अनुभव' का, "मेरा दिल जो मेरा होता"। और यह गीत फ़िल्माया गया था तनुजा पर। इस फ़िल्म के गीतों पर और चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आइए कुछ बातें तनुजा जी की हो जाए! तनुजा का जन्म बम्बई के एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक कवि थे और माँ शोभना समर्थ ३० और ४० के दशकों की एक मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री। जहाँ शोभना जी ने अपनी बेटी नूतन को लौंच किया १९५० की फ़िल्म 'हमारी बेटी' में, ठीक वैसे ही उन्होने अपनी छोटी बेटी तनुजा को बतौर बाल क

मुझको तुम जो मिले ये जहान मिल गया...जिस अभिनेत्री को मिली गीता की सुरीली आवाज़, वो यही गाती नज़र आई

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 279 'गी तांजली' की नौवी कड़ी में आज गीता दत्त की आवाज़ सजने वाली है माला सिंहा पर। दोस्तों, हमने इस महफ़िल में माला सिंहा पर फ़िल्माए कई गीत सुनवा चुके हैं लेकिन कभी भी हमने उनकी चर्चा नहीं की। तो आज हो जाए? माला सिंहा का जन्म एक नेपाली इसाई परिवार में हुआ था। उनका नाम रखा गया आल्डा। लेकिन स्कूल में उनके सहपाठी उन्हे डाल्डा कहकर छेड़ने की वजह से उन्होने अपना नाम बदल कर माला रख लिया। कलकत्ते में कुछ बंगला फ़िल्मों में अभिनय करने के बाद माला सिंहा को किसी बंगला फ़िल्म की शूटिंग् के लिए बम्बई जाना पड़ा। वहाँ उनकी मुलाक़ात हुई थी गीता दत्त से। गीता दत्त को माला सिंहा बहुत पसंद आई और उन्होने उनकी किदार शर्मा से मुलाक़ात करवा दी। और शर्मा जी ने ही माला सिंहा को बतौर नायिका अपनी फ़िल्म 'रंगीन रातें' में कास्ट कर दी। लेकिन माला की पहली हिंदी फ़िल्म थी 'बादशाह' जिसमें उनके नायक थे प्रदीप कुमार। उसके बाद आई पौराणिक धार्मिक फ़िल्म 'एकादशी'। दोनों ही फ़िल्में फ़्लॊप रही और उसके बाद किशोर साहू की फ़िल्म 'हैमलेट' ने माला को दिलाई ख्यात

चंदा चांदनी में जब चमके...गीता दत्त और गीता बाली का अनूठा संगम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 278 प राग सांकला जी के चुने हुए गीता दत्त के गाए गानें इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास लघु शृंखला 'गीतांजली' के अन्तर्गत। आज के अंक में गीता दत्त गा रहीं हैं गीता बाली के लिए। जी हाँ, वही गीता बाली जिनकी थिरकती हुई आँखें, जिनके चेहरे के अनगिनत भाव, जिनकी नैचरल अदाकारी के चर्चे आज भी लोग करते हैं। और इन सब से परे यह कि वो एक बहुत अच्छी इंसान थीं। गीता बाली का जन्म अविभाजित पंजाब में एक सिख परिवार में हुआ था। उनका असली नाम था हरकीर्तन कौर। देश के बँटवारे के बाद परिवार बम्बई चली आई और गरीबी ने उन्हे घेर लिया। तभी हरकीर्तन कौर बन गईं गीता बाली और अपने परिवार को आर्थिक संकट से उबारा एक के बाद एक फ़िल्म में अभिनय कर। बम्बई आने से पहले उन्होने पंजाब की कुछ फ़िल्मों में नृत्यांगना के छोटे मोटे रोल किए हुए थे। कहा जाता है कि जब किदार शर्मा, जिन्होने गीता बाली को पहला ब्रेक दिया, पहली बार जब वो उनसे मिले तो वो अपने परिवार के साथ किसी के बाथरूम में रहा करती थीं। किदार शर्मा ने पहली बार गीता बाली को मौका दिया १९४८ की फ़िल्म 'सुहाग रात&#

किया यह क्या तूने इशारा जी अभी अभी...गीत दत्त के स्वरों में हेलन ने बिखेरा था अपना मदमस्त अंदाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 277 इ न दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है गीता दत्त के गाए हुए गीतों की ख़ास लघु शृंखला 'गीतांजली', जिसके अन्तर्गत दस ऐसे गानें बजाए जा रहे हैं जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। आज जिस अभिनेत्री को हमने चुना है वो नायिका के रूप में भले ही कुछ ही फ़िल्मों में नज़र आईं हों, लेकिन उन्हे सब से ज़्यादा ख्याति मिली खलनायिका के किरदारों के लिए। सही सोचा आपने, हम हेलेन की ही बात कर रहे हैं। वैसे हेलेन पर ज़्यादातर मशहूर गानें आशा भोसले ने गाए हैं, लेकिन ५० के दशक में गीता दत्त ने हेलेन के लिए बहुत से गानें गाए। आज हमने जिस गीत को चुना है वह है १९५७ की फ़िल्म 'दुनिया रंग रंगीली' से "किया यह क्या तूने इशारा जी अभी अभी, कि मेरा दिल तुझे पुकारा अरे अभी अभी"। राजेन्द्र कुमार, श्यामा, जॉनी वाकर, चाँद उस्मानी, जीवन व हेलेन अभिनीत इस फ़िल्म के गानें लिखे जान निसार अख़्तर ने और संगीत था ओ. पी. नय्यर साहब का। 'आर पार' की सफलता के बाद गीता दत्त को ही श्यामा के पार्श्वगायन के लिए चुना गया। इस फ़िल्म में श्यामा के नायक थे जॉनी

जब बादल लहराया...झूम झूम के गाया...अभिनेत्री श्यामा के लिए गीता दत्त ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 276 जि स तरह से गीता दत्त और हेलेन की जोड़ी को अमरत्व प्रदान करने में बस एक सुपरहिट गीत "मेरा नाम चिन चिन चू" ही काफ़ी था, जिसकी धुन बनाई थी रीदम किंग् ओ. पी. नय्यर साहब ने, ठीक वैसे ही गीता जी के साथ अभिनेत्री श्यामा का नाम भी 'आर पार' के गीतों और एक और सदाबहार गीत "ऐ दिल मुझे बता दे" के साथ जुड़ा जा सकता है। जी हाँ, आज 'गीतांजली' में ज़िक्र गीता दत्त और श्यामा का। श्यामा ने अपना करीयर शुरु किया श्यामा ज़ुत्शी के नाम से जब कि उनका असली नाम था बेबी ख़ुर्शीद। 'आर पार' में अपार कामयाबी हासिल करने से पहले श्यामा को एक लम्बा संघर्ष करना पड़ा था। उन्होने अपना सफ़र १९४८ में फ़िल्म 'जल्सा' से शुरु किया था। वो बहुत सारी कामयाब फ़िल्मों में सह-अभिनेत्री के किरदारों में नज़र आईं जैसे कि 'शायर' में सुरैय्या के साथ, 'शबनम' में कामिनी कौशल के साथ, 'नाच' में फिर एक बार सुरैय्या के साथ, 'जान पहचान' में नरगिस के साथ और 'तराना' में मधुबाला के साथ। अनुमान लगाया जाता है कि गीता रॉय की आवाज

धड़कने लगा दिल नज़र झुक गयी....नूतन की अदाकारी और गीता दत्त से स्वर, दुर्लभ संयोग

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 275 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं पार्श्वगायिका गीता दत्त के गाए हुए कुछ सुरीले सुमधुर गीत जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। इन गीतों को चुनकर और इनके बारे में तमाम जानकारियाँ इकट्ठा कर हमें भेजा है पराग सांकला जी ने और उन्ही की कोशिश का यह नतीजा है कि गुज़रे ज़माने के ये अनमोल नग़में आप तक इस रूप में पहुँच रहे हैं। नरगिस, मीना कुमारी, कल्पना कार्तिक और मधुबाला के बाद आज बारी है अदाकारा नूतन की। नूतन भी हिंदी फ़िल्म जगत की एक नामचीन अदाकारा रहीं हैं जिनके अभिनय का लोहा हर किसी ने माना है। हल्के फुल्के फ़िल्में हों या फिर संजीदे और भावुक फ़िल्में, हर फ़िल्म में वो अपनी अमिट छाप छोड़ जाती थीं। उनके अभिनय से सजी तमाम फ़िल्में आज क्लासिक फ़िल्मों में जगह बना चुकी है। वो एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होने ५ बार फ़िल्मफ़ेयर के तहत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। नूतन मधुबाला, नरगिस या मीना कुमरी की तरह बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत या ग्लैमरस नहीं थीं, लेकिन उनकी सादगी के ही लोग दीवाने थे। उनकी ख़ूबसूरती उनके अंदर थी जो उनके स्वभाव

दर्शन प्यासी आई दासी...मधुबाला की विनती को स्वर दिए गीता दत्त ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 274 'गी तांजली' में आज बारी है हिंदी फ़िल्म जगत की सब से ख़ूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माए गए गीता रॉय के गाए एक गीत की। गीत का ज़िक्र हम थोड़ी देर में करेंगे, पहले मधुबाला से जुड़ी कुछ बातें हो जाए! मधुबाला का असली नाम था मुमताज़ जहाँ बेग़म दहल्वी। उनका जन्म दिल्ली में एक रूढ़ी वादी पश्तून मुस्लिम परिवार में हुआ था। ११ बच्चों वाले परिवार की वो पाँचवीं औलाद थीं। अपने समकालीन नरगिस और मीना कुमारी की तरह वो भी हिंदी सिनेमा की एक बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में जानी गईं। अपने नाम की तरह ही उन्होने चारों तरफ़ अपनी की शहद घोली जिसकी मिठास आज की पीढ़ी के लोग भी चखते हैं। मधुबाला की पहली फ़िल्म थी 'बसंत' जो बनी थी सन् '४२ में। इस फ़िल्म में उन्होने नायिका मुमताज़ शांति की बेटी का किरदार निभाया था। उन्हे पहला बड़ा ब्रेक मिला किदार शर्मा की फ़िल्म 'नीलकमल' में जिसमें उनके नायक थे राज कपूर, जिनकी भी बतौर नायक वह पहली फ़िल्म थी। 'नीलकमल' आई थी सन् '४७ में और इसी फ़िल्म से मुमताज़ बन गईं मधुबाला। उस समय उनकी आयु केवल १४ वर्ष ही थी।

आज की रात पिया दिल ना तोड़ो....अभिनेत्री कल्पना कार्तिक की पहली फिल्म में गाया था गीता दत्त ने इसे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 273 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों सज रही है गीता दत्त के गाए गीतों की 'गीतांजली', जिन्हे चुन कर और जिन पर शोध कर हमें भेजा है गीता जी के गीतों के अनन्य भक्त पराग सांकला जी ने। आज गीता जी की आवाज़ जिस अभिनेत्री पर सजने जा रही है वो हैं कल्पना कार्तिक। कल्पना कार्तिक का असली नाम था मोना सिंह, जो अपनी कॊलेज के दिनों में 'मिस शिमला' चुनी गईं थीं। अभिनेता देव आनंद से उनकी मुलाक़ात हुई और १९५४ में रूस में उन दोनों ने शादी कर ली। लेकिन ऐसा भी सुना जाता है कि उन दोनों की पहली मुलाक़ात फ़िल्म 'बाज़ी' के सेट पर हुई थी और 'टैक्सी ड्राइवर' के सेट पर शूटिंग् के दरमियान उन दोनों ने शादी की थी। लेकिन ऐसी कोई भी तस्वीर मौजूद नहीं है जो सच साबित कर सके। कल्पना कार्तिक ने अपनी फ़िल्मों में देव साहब के साथ ही काम किया। ५० के दशक में उनकी अभिनय से सजी कुल ५ फ़िल्में आईं। पहली फ़िल्म थी बाज़ी, जो बनी १९५१ में। बाक़ी चार फ़िल्मों के नाम हैं आंधियाँ ('५२), टैक्सी ड्राइवर ('५४), हाउस नंबर ४४ ('५४), और नौ दो ग्यारह ('५७)। दोस्तों

सखी री मेरा मन नाचे....जब मीना कुमारी के अंदाज़ को मिला गीता दत्त की आवाज़ का साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 272 गी ता दत्त के गाए गीतों की ख़ास शृंखला 'गीतांजली' की दूसरी कड़ी में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस शृंखला के तहत आप पराग सांकला जी के चुने गीता जी के गाए दस ऐसे गानें सुन रहे हैं इन दिनों जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। कल पहली कड़ी में नरगिस पर फ़िल्माया हुआ 'जोगन' फ़िल्म से एक मीरा भजन आपने सुना, आज की अभिनेत्री हैं मीना कुमारी। इससे पहले की हम उस गीत का ज़िक्र करें जो आज हम आप को सुनवा रहे हैं, आइए पहले कुछ बातें हो जाए मीना जी के बारे में। महजबीन के नाम से जन्मी मीना कुमारी भारतीय सिनेमा की 'लीजेन्डरी ट्रैजेडी क्वीन' रहीं हैं जो आज भी लोगों के दिलों में बसती हैं। अपनी तमाम फ़िल्मों में भावुक और मर्मस्पर्शी अभिनय की वजह से उनके द्वारा निभाया हुआ हर किरदार जीवंत हो उठता था। अभिनय के साथ साथ वो एक लाजवाब शायरा भी थीं और अपने एकाकी और दुख भरे दिनों में उन्होने एक से एक बेहतरीन ग़ज़लें लिखी हैं। उन्होने अपनी आवाज़ में अपनी शायरी का एक ऐल्बम भी रिकार्ड करवाया था जो उनके जीवन का एक सपना था। १९३९ से लेकर मृत्यु पर्यन्त,