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हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद... राही मासूम रज़ा, जगजीत-चित्रा एवं आबिदा परवीन के साथ

"मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चाँद" - बस इस पंक्ति से हीं राही साहब ने अपने चाँद के दु:ख का पारावार खड़ कर दिया है। चाँद शायरों और कवियों के लिए वैसे हीं हमेशा प्रिय रहा है और इस एक चाँद को हर कलमकार ने अलग-अलग तरीके से पेश किया है। अधिकतर जगहों पर चाँद एक महबूबा है और शायद(?) यहाँ भी वही है।