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हाथ सीने पे जो रख दो तो क़रार आ जाये....और धीरे धीरे प्रेम में गुजारिशों का दौर शुरू हुआ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 552/2010/252 'ए क मैं और एक तू' - फ़िल्म संगीत के सुनहरे दशकों से चुने हुए युगल गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की शुरुआत कल हमने की थी 'अछूत कन्या' फ़िल्म के उस युगल गीत से जो फ़िल्म संगीत इतिहास का पहला सुपरहिट युगल गीत रहा है। आज आइए इस शृंखला की दूसरी कड़ी में पाँव रखें ४० के दशक में। सन् १९४७ में देश के बंटवारे के बाद बहुत से कलाकार भारत से पाक़िस्तान चले गये, बहुत से कलाकार वहाँ से यहाँ आ गये, और बहुत से कलाकार अपने अपने जगहों पर कायम रहे। ए. आर. कारदार और महबूब ख़ान यहीं रह जाने वालों में से थे। लेकिन नूरजहाँ जैसी गायिका अभिनेत्री को जाना पड़ा। लेकिन जाते जाते १९४७ में वो दो फ़िल्में हमें ऐसी दे गईं जिनकी यादें आज धुंधली ज़रूर हुई हैं, लेकिन आज भी इनका ज़िक्र छिड़ते ही हमें ऐसा करार मिलता है कि जैसे किसी बहुत ही प्यारे और दिलअज़ीज़ ने अपना हाथ हमारे सीने पर रख दिया हो! शायद आप समझ रहे होंगे कि आज हम आपको कौन सा गाना सुनवाने जा रहे हैं। जी हाँ, नूरजहाँ और जी. एम. दुर्रानी की युगल आवाज़ों में १९४७ की फ़िल्म 'मिर्ज़

नज़र फेरो ना हम से, हम है तुम पर मरने वालों में...जी एम् दुर्रानी साहब लौटे हैं एक बार फिर महफ़िल में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 295 औ र आज बारी है पराग सांकला जी के पसंद के पाँचवे और फिलहाल अंतिम गीत को सुनने की। अब तक आप ने चार अलग अलग गायक, गीतकार और संगीतकारों के गानें सुने। पराग जी ने अपने इसी विविधता को बरक़रार रखते हुए आज के लिए चुना है दो और नई आवाजों और एक और नए गीतकार - संगीतकार जोड़ी को। सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'दीदार' से जी. एम. दुर्रानी और शम्शाद बेग़म की आवाज़ों में शक़ील बदायूनी की गीत रचना, जिसे सुरों में ढाला है नौशाद साहब ने। और गीत है "नज़र फेरो ना हम से, हम है तुम पर मरने वालों में, हमारा नाम भी लिख लो मोहब्बत करने वालों में"। पाश्चात्य संगीत संयोजन सुनाई देती है इस गीत में। लेकिन गीत को कुछ इस तरह से लिखा गया है और बोल कुछ ऐसे हैं कि इस पर एक बढ़िया क़व्वाली भी बनाई जा सकती थी। लेकिन शायद कहानी की सिचुयशन और स्थान-काल-पात्र क़व्वाली के फ़ेवर में नहीं रहे होंगे। फ़िल्म 'दीदार' १९५१ की नितिन बोस की फ़िल्म थी जिसमें अशोक कुमार और दिलीप कुमार पहली बार आमने सामने आए थे। फ़िल्म की नायिकाएँ थीं नरगिस और निम्मी। इस फ़िल्म के युं तो सभी गानें हिट हुए थे

हमने खायी है मोहब्बत में जवानी की क़सम....ज्ञान साहब का संगीतबद्ध एक दुर्लभ गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 260 फ़ि ल्म संगीत के इतिहास में अगर हम झाँकें तो ऐसे कई कई नाम ज़हन में आते हैं, जिन नामों पर जैसे वक़्त की धूल सी चढ़ गई है, और रोज़ मर्रा की ज़िंदगी में जिन्हे हम आज बड़ी मुश्किल से याद करते हैं। लेकिन एक वक़्त ऐसा था जब ये फ़नकार, कम ही सही, लेकिन अपनी प्रतिभा के जौहर से फ़िल्म संगीत के विशाल ख़ज़ाने को अपने अपने अनूठे ढंग से समृद्ध किया था। इनमें शामिल हैं फ़िल्म संगीत के पहली पीढ़ी के कई बड़े बड़े संगीतकार भी, जिन्हे आज की पीढ़ी लगभग भुला ही चुकी है। लेकिन संगीत के सच्चे रसिक आज भी उन्हे याद करते हैं, सम्मान करते हैं। और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' एक ऐसा मंच है जो फ़िल्म संगीत के सुनहरे दशकों के हर दौर के कलाकारों को समर्पित है। आज एक ऐसे ही गुणी संगीतकार का ज़िक्र कर रहे हैं, आप हैं फ़िल्म संगीत के पहली पीढ़ी के संगीतकार ज्ञान दत्त। ज्ञान दत्त जी का नाम याद आते ही याद आते हैं सहगल साहब के गाए फ़िल्म 'भक्त सूरदास' के तमाम भजन। 'भक्त सूरदास' और ज्ञान दत्त जैसे एक दूसरे के पर्याय बन गए थे। यह ४० का दौर था। फिर धीरे धीरे बदलते दौर के साथ साथ ज्ञ

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (5)

पराग संकला से हमारे श्रोता परिचित हैं, आप गायिका गीता दत्त के बहुत बड़े मुरीद हैं और उन्हीं की याद में गीता दत्त डॉट कॉम के नाम से एक वेबसाइट भी चलते हैं. आवाज़ पर गीता दत्त के विविध गीतों पर एक लम्बी चर्चा वो पेश कर चुके हैं अपने आलेख " असली गीता दत्त की खोज में " के साथ. आज एक बार फिर रविवार सुबह की कॉफी का आनंद लें पराग संकला के साथ गीता दत्त जी के गाये कुछ दुर्लभ "प्रेम गीतों" को सुनकर. गीता दत्त और प्रेम गीतों की भाषा हिंदी चित्रपट संगीत में अलग अलग प्रकार के गीत बनाते हैं. लोरी, भजन, नृत्यगीत, हास्यगीत, कव्वाली, बालगीत और ग़ज़ल. इन सब गानों के बीच में एक मुख्य प्रकार जो हिंदी फिल्मों में हमेशा से अधिक मात्रा में रहता हैं वह हैं प्रणयगीत यानी कि प्रेम की भाषा को व्यक्त करने वाले मधुर गीत! फिल्म चाहे हास्यफिल्म हो, या भावुक या फिर वीररस से भरपूर या फिर सामजिक विषय पर बनी हो, मगर हर फिल्म में प्रेम गीत जरूर होते हैं. कई फिल्मों में तो छः सात प्रेमगीत हुआ करते हैं. चालीस के दशक में बनी फिल्मों से लेकर आज की फिल्मों तक लगभग हर फिल्म में कोई न कोई प्रणयगीत जरूर

"लारा लप्पा लारा लप्पा...." - याद है क्या लता की आवाज़ में ये सदाबहार गीत आपको ?

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 66 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में आज तक हमने आपको ज़्यादातर मशहूर संगीतकारों के नग्में ही सुनवाये हैं। इसमें कोई शक़ नहीं कि इन मशहूर संगीतकारों का फ़िल्म संगीत के विकास में, इसकी उन्नती में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन इन बड़े संगीतकारों के साथ साथ बहुत सारे कमचर्चित संगीतकार भी इस 'इंडस्ट्री' मे हुए हैं जिन्होने बहुत ज़्यादा काम तो नहीं किया लेकिन जितना भी किया बहुत उत्कृष्ट किया। कुछ ऐसे संगीतकार तो अपने केवल एक मशहूर गीत की वजह से ही अमर हो गये हैं। आज हम एक ऐसे ही कमचर्चित संगीतकर का ज़िक्र इस मजलिस में कर रहे हैं और वो संगीतकार हैं विनोद। विनोद का नाम लेते ही जो गीत झट से हमारे जेहन में आता है वह है फ़िल्म 'एक थी लड़की' का "लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखदा". संगीतकार विनोद की पहचान बननेवाला यह गीत आज प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। यह गीत न केवल विनोद के संगीत सफ़र का एक ज़रूरी मुक़ाम था बल्कि लताजी के कैरियर के शुरुआती लोकप्रिय गीतों में से भी एक था। इससे पहले कि आप यह गीत सुनें, संगीतकार विनोद के बारे में कुछ कहना चाह