स्वरगोष्ठी – ७४ में आज

शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, फिल्म और लोक-संगीत पर केन्द्रित साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक में सभी संगीत-प्रेमियों का, मैं कृष्णमोहन मिश्र, हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस तथ्य से हम सब परिचित हैं कि भारत की पहली सवाक फिल्म ‘आलमआरा’ थी। इस पहली बोलती फिल्म में भी गीत-संगीत की प्रधानता थी, यद्यपि इस ऐतिहासिक फिल्म का संगीत दुर्भाग्य से आज उपलब्ध नहीं है। आरम्भिक दौर के फिल्म-संगीत की छानबीन के दौरान एक उल्लेखनीय और दुर्लभ कृति नज़र आई, जिसे आज के अंक में हम आपके साथ बाँट रहे हैं।
फिल्म लाल-ए-यमन में फिरोज दस्तूर |
१ जनवरी, १९३३ को फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ का प्रदर्शन हुआ था। ‘वाडिया मूवीटोन’ नामक कम्पनी ने इस फिल्म का निर्माण किया था। फ़िल्म की कहानी एक काल्पनिक कुमारपुर नगर के शाही परिवार पर आधारित है। शुरुआती दौर की फिल्मों पर तत्कालीन व्यावसायिक पारसी थियेटर का गहरा प्रभाव था। १९३२ के उत्तरार्द्ध में बनी और वर्ष १९३३ के पहले दिन प्रदर्शित फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ भी पारसी थियेटर के गुण-अवगुण से प्रभावित थी। हिन्दी फिल्मों के इतिहासकार और शोधकर्त्ता विजयकुमार बालकृष्णन् के अनुसार यह फिल्म पूरी तरह पारसी रंगमंच का फिल्म-रूपान्तरण था। उन दिनों पारसी रंगमंच की लोकप्रियता शिखर पर थी। नाटकों में चमत्कारपूर्ण दृश्यों की एक सीमा होती थी, किन्तु फिल्मों में यह सीमा और सम्भावना काफी बढ़ गई थी। इस फिल्म में चमत्कारपूर्ण दृश्यों की भरमार थी। परन्तु फिल्म की सफलता का प्रमुख तत्त्व इसका संगीत था। फिल्म के निर्देशक जे.बी.एच. वाडिया ने १३ वर्षीय एक किशोर को शाहजादे की भूमिका निभाने के लिए सौ रुपये (जो उस समय एक बड़ी धनराशि थी) पर मात्र एक गीत गाने के लिए अनुबन्धित किया था। वह किशोर और कोई नहीं शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रहे फिरोज दस्तूर थे। अनुबन्ध के अनुसार जब फिरोज दस्तूर ने फिल्म का पहला गीत गाया, तब उस गायकी पर मुग्ध होकर फिल्म के निर्माता-निर्देशक जे.बी.एच. वाडिया ने एक के बाद एक छह और गीत उनसे गवाए। ८९ वर्ष की आयु में मई २००८ को निधन से पहले पण्डित फिरोज दस्तूर के सांगीतिक जीवन पर एक वृत्तचित्र का निर्माण हुआ था, जिसमें उन्होने अपनी इस पहली फिल्म का ज़िक्र किया था। अब हम आपको पहले वृत्तचित्र का अंश, फिरोज दस्तूर की आवाज़ में सुनवाते है। इसके बाद उनकी आवाज़ में फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ का राग मालकौंस पर आधारित एक गीत भी आपको सुनवाएँगे।
पण्डित फिरोज दस्तूर से की गई बातचीत का एक अंश
फिल्म लाल-ए-यमन : ‘मशहूर थे जहाँ में...’ : फिरोज दस्तूर
१९३२ में बनी फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ के इस गीत के बीच में बादल गरजने और बिजली चमकने का प्रभाव उत्पन्न किया गया था। उन दिनों जब रिकार्डिंग तकनीक विकसित नहीं हुई थी, इस प्रकार के ध्वनि-प्रभाव दर्शकों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं थे। फिरोज दस्तूर ने फिल्म में कुल सात गीत गाये थे। फिल्म में तीन गीत मास्टर मोहम्मद ने फकीर की भूमिका निभाते हुए गाए थे। कई इतिहासकार मास्टर मोहम्मद को ही फिल्म का संगीतकार मानते हैं। परन्तु फिल्म में यह श्रेय जोसेफ डेविड को दिया गया है। दरअसल जोसेफ डेविड मूलतः पारसी थियेटर के नाट्यालेख तैयार करने और चमत्कारपूर्ण दृश्य रचने में माहिर थे। पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ की पटकथा जोसेफ डेविड ने ही तैयार की थी। अब हम इस फिल्म का एक और गीत प्रस्तुत कर रहे हैं, फिरोज दस्तूर की ही आवाज़ में। इस गीत को सुन कर आपको सहज अनुमान हो जाएगा कि मात्र १३ वर्ष की आयु में ही उनका गला रागानुभूति कराने में कितना समर्थ था। इस गीत में आप राग दरबारी की छटा देखिए।
फिल्म लाल-ए-यमन : ‘अब नाहीं धरत धीर...’ : फिरोज दस्तूर
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युवावस्था में फिरोज दस्तूर |
फिल्म लाल-ए-यमन : ‘गाफिल बंदे कुछ सोच जरा...’ : मास्टर मोहम्मद
फिल्म ‘लाल-ए-यमन’ में फिरोज दस्तूर के गाये सात, मास्टर मोहम्मद के तीन गीतों के अलावा नारी कण्ठ-स्वर में दो गीत गाये गए हैं, किन्तु ये दोनों गीत किस गायिका के स्वर में है, यह ज्ञात नहीं हो सका है। फिल्म के सभी गीत मुंशी अश्क ने लिखे थे। इस फिल्म के सभी गीतों को हम दो वर्गों में बाँट सकते हैं। कुछ गीत ऐसे हैं, जिनमें तत्कालीन पारसी थियेटर के गीतों की यथावत नकल है। मास्टर मोहम्मद के गाये तीनों गीतों में पारसी थियेटर की स्पष्ट नकल है, किन्तु फिरोज दस्तूर के गाये कई गीतों में शास्त्रीय गायकी का अंदाज नज़र आता है। आइए फिरोज दस्तूर की आवाज़ में फिल्म का एक ऐसा ही गीत अब हम आपको सुनवाते हैं।
फिल्म लाल-ए-यमन : ‘तोरी हरदम परवर आस...’ : फिरोज दस्तूर
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अपने गुरूभाई पण्डित भीमसेन जोशी के साथ फिरोज दस्तूर |
पण्डित फिरोज दस्तूर : राग यमन : ‘बल बल जाऊँ...’ : द्रुत एकताल
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको सुनवा रहे हैं, एक परम्परागत ठुमरी का फिल्मी संस्करण। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। प्रत्येक सही उत्तर पर एक-एक अंक निर्धारित है। ‘स्वरगोष्ठी’ के ८०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी तीसरी श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ – यह ठुमरी किस राग पर आधारित है?
२ – गायिका के स्वरों को पहचानिए और हमें उनका नाम बताइए।
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ७६वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com पर अपना सन्देश भेज सकते हैं।
पिछली पहेली के उत्तर
‘स्वरगोष्ठी’ के ७२वें अंक की पहेली में हमने आपको जुबीन मेहता द्वारा संयोजित पाश्चात्य संगीत की वाद्यवृन्द (आर्केस्ट्रा) रचना का एक अंश सुनवाया था, जिसमें पण्डित रविशंकर का सितार-वादन भी था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- जुबीन मेहता और दूसरे का सही उत्तर है- पण्डित रविशंकर। इस बार की पहेली के दोनों प्रश्नों का सही उत्तर जबलपुर की क्षिति तिवारी ने दिया है। हमारे एक नये पाठक, वाराणसी के अभिषेक मिश्रा ने पहले प्रश्न का सही किन्तु दूसरे प्रश्न का गलत उत्तर दिया है, जबकि पटना की अर्चना टण्डन पहले का गलत और दूसरे का सही उत्तर दिया है। तीनों प्रतियोगियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
मित्रों, अब हमने आपकी प्रतिक्रियाओं, सन्देशों और सुझावों के लिए एक अलग साप्ताहिक स्तम्भ ‘आपकी बात’’ आरम्भ किया है। अब प्रत्येक शुक्रवार को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ पर आपके भेजे संदेशों को हम अपने सजीव कार्यक्रम में शामिल करते हैं। आप हमें swargoshthi@gmail.com अथवा cine.paheli@yahoo.com के पते पर अपनी टिप्पणियाँ, सुझाव और सन्देश आज ही लिखें।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक में ठुमरी गीतों के अप्रतिम भाष्यकार और अनूठे हारमोनियम (संवादिनी) वादक भैया गणपत राव के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आपसे चर्चा करेंगे, जिनके बारे में यह उक्ति प्रचलित थी- ‘हारमोनियम बनाया तो अंग्रेजों ने, परन्तु बजाया भैया गणपत राव ने’। अगले रविवार को प्रातः ९-३० पर आयोजित अपनी इस गोष्ठी में हम इन्हीं कलाकार के विषय में चर्चा करेंगे। आप अवश्य पधारिएगा।
कृष्णमोहन मिश्र