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खुशबू उड़ाके लाई है गेशु-ए-यार की.. अपने मियाँ आग़ा कश्मीरी के बोलों में रंग भरा मुख्तार बेग़म ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #७० ह मने अपनी महफ़िल में इस मुद्दे को कई बार उठाया है कि ज्यादातर शायर अपनी काबिलियत के बावजूद पर्दे के पीछे हीं रह जाते हैं। सारी की सारी मक़बूलियत इन नगमानिगारों के शेरों को, उनकी गज़लों को अपनी आवाज़ से मक़बूल करने वाले फ़नकारों के हिस्से में जाती है। लेकिन आज की महफ़िल में स्थिति कुछ अलग है। हम आज एक ऐसी फ़नकारा की बात करने जा रहे हैं जिनकी बदौलत एक अव्वल दर्ज़े की गायिका और एक अव्वल दर्ज़े की नायिका हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी अवाम को नसीब हुई। इस अव्वल दर्ज़े की गायिका से हम सारे परिचित हैं। हमने कुछ महिनों पहले इनकी दो नज़्में आपके सामने पेश की थीं। ये नज़्में थीं- जनाब अतर नफ़ीस की लिखी "वो इश्क़ जो हमसे रूठ गया" और जनाब फ़ैयाज हाशमी की "आज जाने की जिद्द न करो" । आप अब तक समझ हीं गए होंगे कि हम किन फ़नकारा की बातें कर रहे हैं। वह फ़नकारा जिनकी गज़ल से आज की महफ़िल सजी है,वो इन्हीं जानीमानी फ़नकारा की बड़ी बहन हैं। तो दोस्तों छोटी बहन का नाम है- "फ़रीदा खानुम" और बड़ी बहन यानि की आज की फ़नकारा का नाम है "मुख्तार बेग़म"। मु

आज जाने की जिद न करो......... महफ़िल-ए-गज़ल में एक बार फिर हाज़िर हैं फ़रीदा खानुम

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #३८ १४ अगस्त को गोकुल-अष्टमी और १८ अगस्त को गुलज़ार साहब के जन्मदिवस के कारण आज की महफ़िल-ए-गज़ल पूरे डेढ हफ़्ते बाद संभव हो पाई है। कोई बात नहीं, हमारी इस महफ़िल का उद्देश्य भी तो यही है कि किसी न किसी विध भूले जा रहे संगीत को बढावा मिले। हाँ तो, डेढ हफ़्ते के ब्रेक से पहले हमने दिशा जी की पसंद की दो गज़लें सुनी थीं। आप सबको शायद यह याद हो कि अब तक हमने शरद जी की फ़ेहरिश्त से दो गज़लों का हीं आनंद लिया है। तो आज बारी है शरद जी की पसंद की अंतिम नज़्म की। आज हम जिस फ़नकारा की नज़्म को लेकर हाज़िर हुए हैं, उनकी एक गज़ल हमने पहले भी सुनी हुई है। जनाब "अतर नफ़ीस" की लिखी " वो इश्क़ जो हमसे रूठ गया " को हमने महफ़िल-ए-गज़ल की २६वीं कड़ी में पेश किया था। उस कड़ी में हमने इन फ़नकारा की आज की नज़्म का भी ज़िक्र किया था और कहा था कि यह उनकी सबसे मक़बूल कलाम है। इन फ़नकारा के बारे में अपने ब्लाग सुख़नसाज़ पर श्री संजय पटेल जी कहते हैं कि ग़ज़ल गायकी की जो जागीरदारी मोहतरमा फ़रीदा ख़ानम को मिली है वह शीरीं भी है और पुरकशिश भी. वे जब गा रही हों तो दिल-दिमाग़ मे ए