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किन्नी बीती ते किन्नी बाकी ऐ..मैनू ऐ हो हिसाब ले बैठा....

पंजाबी शायर और कवि शिव कुमार बटालवी पर विशेष. दीप जगदीप बाँट रहे है अपने अनुभव बटाला शहर के यौवन की ऋतु में जो भी मरता है, वह या तो फूल बन जाता है या तारा। यौवन की ऋतु में आशिक़ मरता है या फिर करमों वाला। - शिव बटालवी हमारे यहां बहुत उम्‍दा कवि हुए हैं, लेकिन ऐसे कम ही हैं, जिन्‍हें लोगों का इतना प्यार मिला हो। हिंदी में बच्चन को मिला, उर्दू में ग़ालिब और फ़ैज़ को. अंग्रेज़ी में कीट्स को. स्पैनिश में नेरूदा को. पंजाबी में इतना ही प्यार शिव को मिला. शिव कुमार बटालवी. शिव हिंदी में कितना आया, यह अंदाज़ नहीं है. पंजाब आने से पहले मैंने सिर्फ़ शिव का नाम पढ़ा था. इतना जानता था कि कोई मंचलूटू गीतकार था. पर शिव सिर्फ़ मंच नहीं लूटता. उसकी साहित्यिक महत्ता भी है. उसे पढ़ने, सुनने के बाद यह महसूस होता है. वह अकेला कवि है, जिसकी कविता मैंने अतिबौद्धिक अभिजात अफ़सरों के मुंह से भी सुनी है और साइकिल रिक्शा खींचने वाले मज़दूर के मुंह से भी. ऐसी करिश्माई बातें हम नेरूदा के बारे में पढ़ते हैं. पंजाब में वैसा शिव है. 1973 में जब शिव की मौत हुई, तो उसकी उम्र महज़ 36 साल थी। उसने सक्रियता से सिर्फ़ दस

बुल्ला की जाणां मैं कौन ? - बुल्ले शाह पर विशेष प्रस्तुति

बुल्ला की जाणां मैं कौन ? सवाल जो ज़ेहन को भी सोचने के लिए मजबूर कर दें कि ज़ेहन तू कौन है? कैसा दंभ? कौन सी चतुराई? किसकी अक्ल? जो बुल्ला खुद कहता है मैं की जाना मैं कौन उसके बारे में रत्ती भर भी जान सकें या समझ सकें ये दावा करना भी बुल्ले की सोच से दगा करने जैसा है। अगर बुल्ले का इतिहास लिखूं तो कहना होगा, बुल्ला सैय्यद था, उच्च जाति मुलसमान, मोहम्मद साहब का वंशज, पर खुद बुल्ला कहता है - न मैं मोमन विच मसीतां, ना मैं विच कुफर दियां रीतां तो कैसे कहूं कि वो मोमिन (मुसलमान) था। बुल्ला तो अल्हा की माशूक था, जो अपने नाराज़ मुरशद को मनाने पैरों में घुंघरू बांध कर गलियों में कंजरी (वैश्य) की तरह नाचती फिरती है, गाती फिरती है, कंजरी बनेया मेरी इज्जत घटदी नाहीं मैंनू नच के यार मनावण दे बुल्ला की जाणां - (रब्बी शेरगिल) बुल्ले के जन्म के बारे में इतिहासकार एक राय नहीं है, बुल्ले को इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता। कहते हैं मीर अब्दुला शाह कादरी शतारी का जन्म 1680 इसवी में बहावलपुर सिंध के गांव उच गैलानीयां में शाह मुहमंद दरवेश के घर हुआ, जो मुसलमानों में मानी जाती ऊंची जाति सैय्यद थे। वह मसजिदों

अहमद फ़राज़ साहब के आखिरी ३७ दिन - आवाज़ पर 'एक्सक्लूसिव'

अब के बिछडे तो शायद ख्वाबों में मिले, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले. और वो शायर हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गया, और अपने पीछे छोड़ गया एक ऐसा खालीपन जिसे भर पाना शायद कभी भी मुमकिन न हो. इस्मत चुगताई ने एक बार मोस्को में, उनसे मुलाकात के बाद कहा था - "अहमद फ़राज़ आम शायरों की तरह नही दिखता है, वह आधुनिक परिधान में रहता है, और उसे पार्टियों में महिलाओं संग नाचने से भी गुरेज नही है." अहमद फ़राज़ ऐसे शायर थे, जिनका हर शेर आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी को बहुत सरलता से छू जाता था. वह शायर सरहदों से परे था, और मोहब्बत को खुदा का दर्जा देता था. बीते सोमवार को ७७ साल की उम्र में उन्होंने अपने चाहने वालों से हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. उनके अन्तिम ३७ दिनों की यह दास्ताँ आवाज़ पर आप के लिए लाये हैं, जगदीप सिंह . सुनते हैं ये विशेष पॉडकास्ट, और उर्दू अदब के उस खुर्शीद को सलाम करें एक बार फ़िर, जिसकी रोशनायी की रोशनी कभी बुझ नही सकती . अहमद फ़राज़ साहब को आवाज़ के समस्त टीम की भावभीनी श्रदांजली हिन्द-युग्म पर प्रेमचंद ने भी उन्हें याद किया। पढ़ें ।

अलविदा इश्मित...

स्टार प्लस की संगीत प्रतियोगिता वायस आफ इंडिया के विजेता और पंजाबी के प्रसिद्ध गायक इश्मित सिंह की मंगलवार को डूबने से मौत हो गई, जिसके साथ ही हमने एक उभरती हुई आवाज़ को हमेशा के लिए खो दिया है. उनके साथ बिताये लम्हों को याद कर रहे हैं, आवाज़ के लिए, लुधिआना से रिपोर्टर जगदीप सिंह ईश्वर का मीत हो गया इश्मीत नाम-इश्मीत सिंह जन्म-3 सितंबर 1989 उम्र-19 साल एजूकेशन- बीकॉम, सेकेंड इयर, सीए अधूरी छोड़ी थी। 24 नवंबर 2007 को वॉयस ऑफ इंडिया बना, इसी दिन गुरु नानक देव जी का प्रकाशोत्सव था। शौक-गायकी, कम्पयूटर इंटरनेट, स्पोट्र्स आज मैं ऊपर, आसमां नीचे... यह गाना गाने वाला इश्मीत इतनी जल्दी आसमां के पार चला जाएगा, यकीन नहीं होता। हम जितना भी इस युवा गायक के बारे में सोचते हैं, उतनी ही मीठी यादें ताजा हो जाती हैं। 19 साल का यह फरिश्तों सा गायक जो खुद पानी की तरह था, जो हर हाल में खुद को ढाल लेता था, आखिर पानी की भेंट चढ़ गया। दूसरों के छोटे से दुख से उसकी आंखें छलक आती थीं। आज वह अपने चाहने वालों की आखों में ढेरों आंसू छोड़ गया। सफर जिंदगी का धर्म को समर्पित और एक कर्मठ परिवार में जन्मा इश्मीत बचपन