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बाई दि वे, ऑन दे वे, "आयशा" से हीं कुछ सुनते-सुनाते चले जा रहे हैं जावेद साहब.. साथ में हैं अमित भी

ताज़ा सुर ताल २७/२०१० विश्व दीपक - नमस्कार दोस्तों! 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम जिस फ़िल्म के गीतों को लेकर आए हैं, उसके बारे में तो हमने पिछली कड़ी में ही आपको बता दिया था, इसलिए बिना कोई भूमिका बाँधे आपको याद दिला दें कि आज की फ़िल्म है 'आयशा'। सुजॊय - अमित त्रिवेदी के संगीत से सजे फ़िल्म 'उड़ान' के गानें पिछले हफ़्ते हमने सुने थे, और आज की फ़िल्म 'आयशा' में भी फिर एक बार उन्ही का संगीत है। शायद अब तक हम 'उड़ान' के गीतों को सुनते नहीं थके थे कि एक और ज़बरदस्त ऐल्बम के साथ अमित हाज़िर हैं। मैं कल जब 'आयशा' के गीतों को सुन रहा था विश्व दीपक जी, मुझे ऐसा लगा कि 'देव-डी' और 'उड़ान' से ज़्यादा वरायटी 'आयशा' में अमित ने पैदा की है। इससे पहले कि वो ख़ुद को टाइप-कास्ट कर लेते और उनकी तरफ़ भी उंगलियाँ उठनी शुरु हो जाती, उससे पहले ही वे अपने स्टाइल में नयापन ले आए। विश्व दीपक - 'आयशा' के गानें लिखे हैं जावेद अख़्तर साहब ने। पार्श्वगायक की हैसियत से में इस ऐल्बम में नाम शामिल हैं अमित त्रिवेदी, अनुष्का मनचन्दा, नोमा

क्या फिर लौटेगा "आशिकी" का दौर

वो १९७२ में मिले थे एक दूजे से। १९८१ में आई फ़िल्म "मैंने जीना सीख लिया" से इस संगीतकार जोड़ी ने कदम रखा फ़िल्म जगत में। "हिसाब खून का", "लश्कर", और "इलाका" जैसी फिल्मों में इनका काम किसी की भी नज़र में नहीं आया, फिर इन्हें मिला संगीत की दुनिया में नई मिसाल बनाने की योजनायें लेकर दिल्ली से मुंबई पहुंचे गुलशन कुमार का साथ। १९९० में आई महेश भट्ट निर्देशित फ़िल्म "आशिकी" ने संगीत की दुनिया को हिला कर रख दिया, और उभर कर आए - नदीम-श्रवण। एक ऐसा दौर जब फ़िल्म संगीत अश्लील शब्दों और भौंडे संगीत की गर्त में जा रहा था, एक साथ कई नए कलकारों ने आकर जैसे संगीत का सुनहरा दौर वापस लौटा दिया। शुरूआत हुई आनंद मिलिंद के संगीत से सजी फ़िल्म "क़यामत से क़यामत तक" से और इसी के साथ वापसी हुई रोमांस के सुनहरे दौर की भी। फ़िल्म "आशिकी" भी इसी कड़ी का एक हिस्सा थी, कमाल की बात यह थी कि इस फ़िल्म के सभी गीत एक से बढ़कर एक थे और बेहद मशहूर हुए। इसके बाद नदीम-श्रवण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक सुपर हिट संगीत से सजी फिल्में -दिल

मुसाफिर...जाएगा कहाँ...यादें एस डी बर्मन की

महान संगीतकार एस. डी. बर्मन की पुण्यतिथि पर सुनिए उन्हीं के गाये 7 अमर गीत कोलकाता के संगीत प्रेमियों में "सचिन कारता", मुम्बई के संगीतकारों के लिये "बर्मन दा", बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के रेडियो श्रोताओं में "शोचिन देब बोर्मोन", सिने जगत में "एस.डी. बर्मन" और "जींस" फिल्मी फ़ैन वालों में "एस.डी"-उनके गीतों ने हर किसी के दिल में अमिट छाप छोड़ी है। उनके गीतों में विविधता थी। उनके संगीत में लोक गीत की धुन झलकती, वहीं शास्त्रीय संगीत का स्पर्श भी था। उनका अपरंपरागत संगीत जीवंत लगता था। नौ भाई-बहनों में एक सचिन देव बर्मन का जन्म १ अक्तूबर,१९०६ में त्रिपुरा में हुआ। सचिन देव ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपने पिता व सितार-वादक नबद्वीप चंद्र देव बर्मन से ली। उसके बाद वे उस्ताद बादल खान और भीष्मदेव चट्टोपाध्याय के यहाँ शिक्षित हुए और इसी शिक्षा से उनमें शास्त्रीय संगीत की जड़ें पक्की हुई जो उनके संगीत में बाद में दिखा भी। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात वे घर से निकल गये और असम व त्रिपुरा के जंगलों में घूमें। जहाँ उन्हें बंगाल व आसपास