Skip to main content

Posts

Showing posts with the label birth anniversary

मिर्ज़ा ग़ालिब की 212वीं जयंती पर ख़ास

आज से 212 वर्ष पहले एक महाकवि का जन्म हुआ जिसकी शायरी को समझने में लोग कई दशक गुजार देते हैं, लेकिन मर्म समझ नहीं पाते। आज रश्मि प्रभा उर्दू कविता के उसी महाउस्ताद को याद कर रही हैं अपने खूबसूरत अंदाज़ में। आवाज़ ने मिर्ज़ा ग़ालिब के ऊपर कई प्रस्तुतियाँ देकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया है। शिशिर पारखी जो खुद पुणे से हैं, ने उर्दू कविता के 7 उस्ताद शायरों के क़लामों का एक एल्बम एहतराम निकाला था,जिसे आवाज़ ने रीलिज किया था। इसकी छठवीं कड़ी मिर्ज़ा ग़ालिब के ग़ज़ल 'तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले' को समर्पित थी। आवाज़ के स्थई स्तम्भकार संजय पटेल ने लता मंगेशकर की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़लों की चर्चा दो खण्डों ( पहला और दूसरा ) में की थी। संगीत की दुनिया पर अपना कलम चलाने वाली अनिता कुमार ने भी बेग़म अख़्तर की आवाज़ में मिर्जा ग़ालिब की एक रचना 'जिक्र उस परीवश का और फ़िर बयां अपना...' हमें सुनवाया था। लेकिन आज रश्मि प्रभा बिलकुल नये अंदाज़ में अपना श्रद्धासुमन अर्पित कर रही हैं। सुनिए और बताइए-

घर आजा घिर आयी बदरा सांवरिया...पंचम दा की ७० वीं जयंती पर ओल्ड इस गोल्ड का विशेष अंक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 124 "१९५७ की बात मैं कर रहा हूँ, जब मैं पहली बार इस फ़िल्मी दुनिया में बतौर संगीतकार क़दम रखा। महमूद साहब थे मेरे जिगरी दोस्त, उन्होने मुझे एक पिक्चर दिया जिसका नाम था 'छोटे नवाब'। वह मेरी पहली पिक्चर थी। तो हम लोग जिस तरीके से सिचुयशन डिसकस करते हैं, वो हम लोगों ने किया, फिर एक गाना बनाया, दूसरा गाना बनाया, फिर तीसरा गाना बनाया, लेकिन मुझे बहुत एक तर्ज़ पसंद आ रही थी, जो उन्होने भी पसंद किया था, महमूद साहब ने, उस गाने की रिकॉर्डिंग के लिए हम तैयार हो गये, और उसकी रिकॉर्डिंग की डेट भी नज़दीक आ गयी। तो उन्होने (महमूद) कहा कि 'तीन चार दिन के अंदर गाना कर के दीजिये।' मैं उनको डरते डरते कहा कि 'देखिये, आप तो इस वक़्त बहुत बड़े नामी प्रोड्युसर नहीं हैं, लेकिन फिर भी मैं चाहूँगा कि यह गाना बहुत बढ़िया एक सिंगर गाये तो अच्छा है।' उन्होने पूछा, 'कौन?' तो मेरे मन में ज़ाहिर है यही आया कि 'लता दीदी अगर गायें तो अच्छा रहेगा।' लेकिन लता दी एक महीने तक तो बुकिंग में रहती थीं, हर रोज़ दो या तीन गाना गाती थीं। तो मैं डरते डरते एक द

अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन...महादेवी वर्मा को आवाज़ का नमन

छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में महादेवी वर्मा एक हैं !इनका जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक संपन्न कला -प्रेमी परिवार में सन् १९०७ में होली के दिन हुआ !महादेवी जी अपने परिवार में लगभग २०० वर्ष बाद पैदा होने वाली लड़की थी! इसलिए उनके जन्म पर सबको बहुत प्रसन्नता हुई !अपने संस्मरण `मेरे बचपन के दिन' में उन्होंने लिखा है कि,"मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहन करना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है !"इनके बाबा (पिता)दुर्गा के भक्त थे तथा फ़ारसी और उर्दू जानते थे !इनकी माता जी जबलपुर कि थीं तथा हिंदी पढ़ी लिखी थीं !वे पूजा पाठ बहुत करती थी !माताजी ने इन्हें पंचतंत्र पढना सिखाया था तथा बाबा इन्हें विदुषी बनाना चाहते थे !इनका मानना है कि बाबा की पढ़ाने की इच्छा और विरासत में मिले सांस्कृतिक आचरण ने ही इन्हें लेखन की प्रवर्ति की ओर अग्रसर किया !इनकी आरंभिक शिक्षा इंदौर में हुई !माता के प्रभाव ने इनके ह्रदय में भक्ति -भावना के अंकुर को जन्म दिया !मात्र ९ वर्ष की उम्र में ये विवाह -बंधन में बांध गयीं थीं !विवाह के उपरांत भी इनका अध्ययन चलता रह

तलत महमुद का था अंदाजें बयां कुछ और...

गायक तलत महमूद की ८५ वीं जयंती पर विशेष गीत संगीत के बिना जरा जीवन की कल्पना करिये और लगे हाथ यह कल्पना भी कर डालिये कि तलत महमुद जैसे गायक की खूबसूरत मखमली आवाज यदि हमारे कानों तक पहुँचनें से महरुम रहती तो। तब ज्यादा कुछ न होता, धरती अपनी जगह ही बनी रहती, आसमान भी वहीं स्थिर रहता, बस हम इन बेहद खूबसूरत गीतों को सुननें से महरूम रह जाते। "वो दिन याद करो","आहा रिमझिम के वो प्यारे प्यारे गीत लिये","प्यार पर बस तो नहीं फिर भी", जैसे गीत हमारे नीरस जीवन, में मधुर रस घोलते हैं। सुनिए १९६८ में आई फ़िल्म "आदमी" से रफी और तलत का गाया गीत, गीतकार हैं शकील बदायूँनी और संगीत है नौशाद का - तहजीब के शहर लखनऊ में २४ फरवरी १९२४ में जन्में तलत महमुद को बचपन से ही संगीत का बेहद शौक था। वे संगीत के इतने दीवाने थे कि पूरी पूरी रात वे संगीत सुनते सुनते ही बिता देते थे। उन्होनें संगीत की विधिवत शिक्षा प.भट्ट से ली। अपने संगीत कैरियर की शुरूआत मीर, जिगर, दाग गजलों से की। उस समय संगीत की सबसे बडी कंपनी एच एम वी के लिये उन्होनें १९४१ "सब दिन एक समान नहीं था"

सुनिए 'हाहाकार' और 'बालिका से वधू'

सूखी रोटी खायेगा जब कृषक खेत में धरकर हल, तब दूँगी मैं तृप्ति उसे बनकर लोटे का गंगाजल। उसके तन का दिव्य स्वेदकण बनकर गिरती जाऊँगी, और खेत में उन्हीं कणों से मैं मोती उपजाऊँगी। फूलों की क्या बात? बाँस की हरियाली पर मरता हूँ। अरी दूब, तेरे चलते, जगती का आदर करता हूँ। इच्छा है, मैं बार-बार कवि का जीवन लेकर आऊँ, अपनी प्रतिभा के प्रदी से जग की अमा मिटा जाऊँ।- विश्चछवि ('रेणुका' काव्य-संग्रह से) उपर्युक्त पंक्तियाँ पढ़कर किस कवि का नाम आपके दिमाग में आता है? जी हाँ, जिसने खुद जैसे जीव की कल्पना की जीभ में भी धार होना स्वीकारा था। माना था कि कवि के केवल विचार ही बाण नहीं होते वरन जिसके स्वप्न के हाथ भी तलवार से लैश होते हैं। आज यानी २३ सितम्बर २००८ को पूरा राष्ट्र या यूँ कह लें दुनिया के हर कोने में हिन्दी प्रेमी उसी राष्ट्रकवि रामधारी दिनकर की १००वीं जयंती मना रहे हैं। आधुनिक हिन्दी काव्य राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद करने वाले युग-चारण नाम से विख्यात, "दिनकर" का जन्म २३ सितम्बर १९०८ ई. को बिहार के मुंगेर ज़िले के सिमरिया घाट नामक गाँव में हुआ था. इन की शिक्षा मोकाम