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"ज़िंदगी तो बेवफ़ा है एक दिन ठुकराएगी - प्रकाश मेहरा को हिंद युग्म की श्रद्धांजली

एक नौजवान, नाकाम और हताश, मुंबई में मिली असफलताओं का बोझ दिल में लिए घर लौटने की तैयारी कर रहा था कि उसे एक युवा निर्देशक ने रुकने की हिदायत दी, और अपनी एक छोटे बजट की फिल्म में उस नौजवान को मुख्य रोल की पेशकश दी. नौजवान ने उस निर्देशक पर विश्वास किया और सोचा कि एक आखिरी दाव खेल लिया जाए. फिल्म बनी और और जब दर्शकों तक पहुँची तो कमियाबी की एक नयी कहानी लिखी जा चुकी थी... दोस्तों, वो नौजवान थे अमिताभ बच्चन और वो युवा निर्देशक थे प्रकाश मेहरा. प्रकाश मेहरा, एक एक ऐसे जादूगर फ़िल्मकार, जिन्होने ज़िंदगी को एक जुआ समझकर पूरे आन बान से हाथ की सफ़ाई , और हेरा फेरी की हर ज़ंजीर तोड़ी, और तब जाकर कहलाये मुक़द्दर का सिकंदर । फ़िल्म जगत के ये सिकंदर यानी कि असंख्य हिट फ़िल्मों के निर्माता, निर्देशक और गीतकार प्रकाश मेहरा अब हमारे बीच नहीं रहे। उनकी मृत्यु की ख़बर सुनकर न जाने क्यों सबसे पहले 'मुक़द्दर का सिकंदर' फ़िल्म के शीर्षक गीत की वो लाइनें याद आ रहीं हैं कि - "ज़िंदगी तो बेवफ़ा है एक दिन ठुकराएगी, मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी, मर के जीने की अदा जो दुनिया को सिखलाएगा, वो

मिलिए ग़ज़ल गायकी की नई मिसाल रफ़ीक़ शेख से

कर्नाटक के बेलगाम जिले में जन्मे रफ़ीक़ शेख ने मरहूम मोहम्मद हुसैन खान (पुणे)की शागिर्दी में शास्त्रीय गायन सीखा तत्पश्चात दिल्ली आए पंडित जय दयाल के शिष्य बनें. मखमली आवाज़ के मालिक रफ़ीक़ के संगीत सफर की शुरुवात कन्नड़ फिल्मों में गायन के साथ हुई, पर उर्दू भाषा से लगाव और ग़ज़ल गायकी के शौक ने मुंबई पहुँचा दिया जहाँ बतौर बैंक मैनेजर काम करते हुए रफ़ीक़ को सानिध्य मिला गीतकार /शायर असद भोपाली का जिन्होंने उन्हें उर्दू की बारीकियों से वाकिफ करवाया. संगीत और शायरी का जनून ऐसा छाया कि नौकरी छोड़ रफ़ीक़ ने संगीत को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. आज रफ़ीक़ पूरे भारत में अपने शो कर चुके हैं. वो जहाँ भी गए सुनने वालों ने उन्हें सर आँखों पर बिठाया. २००४ में औरंगाबाद में हुए अखिल भारतीय मराठी ग़ज़ल कांफ्रेंस में उन्होंने अपनी मराठी ग़ज़लों से समां बाँध दिया, भाषा चाहे कन्नड़ हो, हिन्दी, मराठी या उर्दू रफ़ीक़ जानते हैं शायरी /कविता का मर्म और अपनी आवाज़ के ढाल कर उसे इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि सुनने वालों पर जादू सा चल जाता है, महान शायर अहमद फ़राज़ को दी गई अपनी दो श्रद्धांजली स्वरुप ग़ज़लों क