Skip to main content

Posts

Showing posts with the label ashok pandey

सांसों की माला में सिमरूं मैं पी का नाम...बाबा नुसरत फ़तेह अली ख़ां की आवाज़ में एक दुर्लभ कम्पोज़ीशन

अपनी आकृति पए ध्यान मत दो, चाहे वह कैसी भी सुन्दर हो या बदसूरत प्रेम पर ध्यान दो और उस लक्ष्य पर जहां तुम्हें पहुंचना है ... अरे तुम! जिसके होंठ पपड़ा गए हैं, तुम जो लगातार खोज रहे हो पानी को प्यास से पपड़ाए तुम्हारे होंठ सबूत हैं इस बात का कि बिल आख़ीर तुम पानी के सोते तक पहुंच ही जाओगे यह कविता सबसे बड़े सूफ़ी कवि जलालुद्दीन रूमी की है. युद्ध, बाज़ारवाद, पैसे, उपनिवेशवाद और इन सबसे उपजे आतंकवाद से लगातार रूबरू अमरीकी समाज के बारे में एक नवीनतम तथ्य रूमी से जुड़ा हुआ है. वाल्ट व्हिटमैन और एमिली डिकिन्सन जैसे दिग्गज अमरीकी कवियों के संग्रह पिछले कई दशकों से बेस्टसैलर्स की सूची में सबसे ऊपर रहा करते थे. वर्ष २००६ और सात में इस स्थान पर रूमी काबिज़ हैं. आम अमरीकी जनता की पसन्द में आया यह बदलाव यह एक ऐसी प्रतिक्रिया है जो बार बार इस बात को अन्डरलाइन करती जाती है कि सूफ़ी काव्य और संगीत इतनी सदियों बाद आज भी प्रासंगिक है और अपनी सार्वभौमिकता में एक स्पन्दन छिपाए हुए है जो मुल्कों, सरहदों, मजहबों, भाषाओं और संवेदनाओं से बहुत आगे की चीज़ है. सूफ़ी दरवेश उस सर्वव्याप्त सर्वशक्तिमान प्रेम के ग

झूमो रे, दरवेश...( भाग १ ), सूफी संगीत परम्परा पर एक विशेष श्रृंखला, अशोक पाण्डे की कलम से

सूफी संगीत यानी, स्वरलहरियों पर तैरकर जाना और ईश्वर रुपी समुंदर में विलीन हो जाना, सूफी संगीत यानी, "मै" का खो जाना और "तू" हो जाना, सदियों से रूह को सकून देते, सूफी संगीत पर "आवाज़" के संगीत विशेषज्ञ, और वरिष्ट ब्लॉगर, अशोक पाण्डे लेकर आए हैं, एक विशेष श्रृंखला, जिसका हर अंक हमें यकीं है, हमारे संगीत प्रेमियों के लिए, एक अनमोल धरोहर साबित होगा. प्रस्तुत है, इस श्रृंखला की पहली कड़ी आज, अशोक पाण्डे की कलम से..... सूफ़ीवाद के प्रवर्तकों में अग्रणी गिने जाने वाले तेरहवीं सदी के महान फ़ारसी कवि जलालुद्दीन रूमी एक जगह लिखते हैं: " मैंने चुपचाप आहें भरीं ताकि आने वाली कई सदियों तक दुनिया में मेरी 'हाय' प्रतिध्वनित होती रहे " विशेषज्ञों ने सूफ़ीवाद को परिभाषित करते हुए उसे एक ऐसा विज्ञान बताया है जिसका उद्देश्य हृदय का परिष्कार करते हुए उसे ईश्वर के अलावा हर दूसरी चीज़ से विरत करना होता है. एक दूसरी परिभाषा के अनुसार सूफ़ीवाद वह विज्ञान है जिसके माध्यम से हम सीख सकते हैं कि किस तरह ईश्वर की उपस्थिति में जीवन बिताते हुए अपने आन्तरिक व्यक्तित्व की अशुद