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अपने पडो़सी दिल से भीनी-भीनी भोर की माँग कर बैठे गोटेदार गुलज़ार साहब, आशा जी एवं राग तोड़ी वाले पंचम दा

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०९ गु लज़ार और पंचम - ये दो नाम दो होते हुए भी एक से लगते हैं और जब भी इन दोनों का नाम साथ में आता है तो सुनने वालों को मालूम हो जाता है कि कुछ नया कुछ अलबेला पक के आने वाला है बाहर.. अभी-अभी पतीला खुलेगा और कोई मीठी-सी नज़्म छलकते हुए हमारे कानों तक पहुँच जाएगी। ये दोनों फ़नकार एक-दूसरे के पूरक-से हो चले थे। कैसी भी घुमावदार सोच हो, किसी भी मोड़ पर बिन कहे मुड़ने वाले मिसरे हों या फिर किसी अखबार की सुर्खियाँ हीं क्यों न हो.. गुलज़ार के हरेक शब्द-नुमा ईंट का जवाब पंचम अपने सुरों के पत्थर (अजीब उपमा है.. यूँ होना तो फूल चाहिए, लेकिन मुहावरा बनाने वाले ने हमारे पास कम हीं विकल्प छोड़े हैं) से दिया करते थे... और जवाब ऐसा कि "साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे".. गुलज़ार के शब्द जहाँ शिखर पर हीं मौजूद रहें, वहीं उसी के इर्द-गिर्द पंचम अपनी पताका भी लहरा आएँ... तभी तो दोनों की जोड़ी आजतक प्यार और गुमान से याद की जाती है। लेकिन यह जोड़ी ज्यादा दिनों तक रह नहीं पाई। गुलज़ार को राह में अकेले छोड़कर पंचम दुसरी दुनिया में निकल लिए। पंचम के गुजरने का असर गुलज़ार पर किस हद

वह कभी पीछे मुडकर नहीं देखती, इसीलिए वह आशा है

सजय पटेल ने दो बरस पहले ख्यात गायिका आशा भोंसले से उनके जन्मदिन के ठीक एक दिन पहले बात की थी.उसी गुफ़्तगू की ज़ुगाली आज आवाज़ पर.... संघर्ष हर एक के जीवन में हमेशा ही रहता है, लेकिन उन्होंने पीछे मुड़कर देखना नहीं सीखा और शायद इसीलिए वह सिर्फ़ नाम की आशा नहीं, ज़िंदगी का वो फ़लसफ़ा हैं जिसमें "निराशा' शब्द के लिए कोई जगह नहीं। वह वैसा फूल भी नहीं हैं जिसे कल मुरझाना है, वह ऐसी ख़ुशबू हैं जिसकी महक में उल्लास है, ख़ुशी है, ज़ज़्बा है।ये सारे शब्द उस आवाज़ के लिये यहाँ झरे हैं, जो साठ बरसों से मादकता, मदहोशी और मुस्कान का मीठा सिलसिला पेश करती आई हैं, आशा भोंसले। दो बरस पहले टेलीफ़ोन पर उनसे जब चर्चा हुई थी तब आशाजी ने कहा- जीवन ताल और लय में होना ज़रूरी है। सुर उतरा तो चढ़ जाएगा, लेकिन ताल बिगड़ी तो समझिए संगीत का समॉं ही बिगड़ गया। मनुष्य के लिए "चाल-ढाल और गाने वालों के लिए ताल' बहुत ज़रूरी है। मैंने न जाने कितने संगीतकारों के साथ काम किया तो उसे अपना एक विनम्र कर्तव्य माना। कभी काम करके थकान नहीं महसूस की मैंने। मानकर चली कि संगीत का काम भी एक इबादत है, उसे तो करना