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Showing posts with the label asha bhosale

"लायी कहाँ ऐ ज़िन्दगी..." - दो सन्तानों को खोने के बाद शायद आशा भोसले अपनी ज़िन्दगी से यही पूछ रही हैं

एक गीत सौ कहानियाँ - 67   'लायी कहाँ ऐ ज़िन्दगी...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 67-वीं कड़ी में आज श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं आशा भोसले के बेटे और संगीतकार हेमन्त भोसले को जिनका 26 सितंबर को निधन हो गया। गीत है हेमन

"झुमका गिरा रे बरेली के बज़ार में..." - बड़ी रोचक है इस गीत के बनने की कहानी

एक गीत सौ कहानियाँ - 66   'झुमका गिरा रे बरेली के बज़ार में...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 66-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म ’मेरा साया’ के सुपरहिट गीत "झुमका गिरा रे बरेली के बज़ार में..." के बारे में जिसे आशा भो

जयन्त और देस मल्हार : SWARGOSHTHI – 229 : JAYANT AND DES MALHAR

स्वरगोष्ठी – 229 में आज रंग मल्हार के – 6 : राग जयन्त मल्हार और देस मल्हार ‘ऋतु आई सावन की...’ और ‘सावन की रातों में...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार के’। श्रृंखला की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। श्रृंखला की इस छठी कड़ी में आज हम वर्षा ऋतु के

इसकी टोपी उसके सर - प्रसिद्ध ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड कलेक्टर वी. एस. दत्ता बता रहे हैं पुराने ज़माने के कुछ इन्स्पायर्ड गीतों के बारे में

स्मृतियों के स्वर - 12 प्रसिद्ध ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड कलेक्टर वी. एस. दत्ता बता रहे हैं पुराने ज़माने के कुछ इन्स्पायर्ड गीतों के बारे में इसकी टोपी उसके सर 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकिया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तम्भ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के

‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ : SWARGOSHTHI – 189 : THUMARI PILU AND DES

स्वरगोष्ठी – 189 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 8 : ठुमरी पीलू और देस एकल और युगल रूप में श्रृंगार रस से परिपूर्ण ठुमरी ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी साथी प्रस्तुतकर्त्ता संज्ञा टण्डन के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का अभिनन्दन करता हूँ। इन दिनों हमारी जारी श्रृंखला 'फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के आठवें अंक में आज हमने एक ऐसी पारम्परिक ठुमरी का चयन किया है, जिसे कई सुविख्यात गायक-गायिकाओं ने गाया है। इस ठुमरी को एकल और युगल, दोनों रूप में प्रस्तुत किया गया है। आमतौर पर ठुमरी एकल रूप में ही गायी जाती है। परन्तु नृत्य-प्रस्तुतियों में या युगल कलाकारों की प्रस्तुतियों में ठुमरी का युगल गायन भी परिलक्षित होता है। इस श्रृंखला में आप कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों का रसास्वादन भी कर रहे हैं जिन्हें फिल्मों में कभी यथावत तो कभी परिवर्तित अन्तरे के साथ इस्तेमाल किया गया। फिल्मों मे शामिल ऐसी ठुमरियाँ अधिकतर पार

"तुम जियो हज़ारों साल...", आशा जी के जन्मदिन पर यही कह कर उन्हें शुभकामनाएँ देते हैं

एक गीत सौ कहानियाँ - 40   ‘तुम जियो हज़ारों साल... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्युटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ' ।  इसकी 40वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'सुजाता' के गीत "तुम जियो हज़ारों साल..." के बारे में।  फ़ि ल्म-संगीत की एक ख़ास बात यह रही है कि इसमें मानव जीवन के हर रंग को

हेमन्त कुमार : शास्त्रीय, लोक और रवीन्द्र संगीत के अनूठे शिल्पी

स्वरगोष्ठी – 172 में आज व्यक्तित्व – 2 : हेमन्त कुमार मुखोपाध्याय उपाख्य हेमन्त मुखर्जी ‘जाग दर्द-ए-इश्क जाग, दिल को बेकरार कर..’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी नई श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की दूसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ में हम आपसे संगीत के कुछ ऐसे साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं जिन्होंने मंच अथवा विभिन्न प्रसारण माध्यमों पर प्रदर्शन से इतर संगीत के प्रचार, प्रसार, शिक्षा, संरक्षण या अभिलेखीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया है। इस श्रृंखला में हम फिल्मों के ऐसे संगीतकारों की भी चर्चा करेंगे जिन्होंने लीक से हट कर कार्य किया। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, बांग्ला और हिन्दी फिल्म के यशस्वी गायक और संगीतकार, हेमन्त कुमार मुखोपाध्याय जिन्हें हिन्दी फिल्मों के क्षेत्र में हम हेमन्त कुमार के नाम से जानते और याद करते है। बांग्ला और हिन्दी फिल्म संगीत जगत पर पूरे 45 वर