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मुंबई है एक बार फिर फिल्म का विषय, और गैंगस्टरों की मारधाड के बीच भी है संगीत में मधुरता

ताज़ा सुर ताल २५/२०१० सुजॊय - सजीव, बहुत दिनों के बाद आप से इस 'टी.एस.टी' के स्तंभ में मुलाक़ात हो रही है। और बताइए, हाल में आपने कौन कौन सी नई फ़िल्में देखीं और आपके क्या विचार हैं उनके बारे में? सजीव - सुजॉय मैंने "काईट्स", "रावण" और "राजनीति" देखी. रावण और राजनीति मुझे पैसा वसूल लगी तो काईट्स उबाऊ. रावण बेशक चली नहीं पर जहाँ तक मेरा सवाल है मैं फिल्मों को सिर्फ कहानी के लिए नहीं देखता हूँ, मैं जिस मणि का कायल हूँ निर्देशन के लिए वही मणि "युवा" और "दिल से" के बाद मुझे यहाँ दिखे....जबरदस्त संगीत और छायाकारी है फिल्म की. राजनीति भी रणबीर और कंपनी के शानदार अभिनय के लिए देखी जा सकती है, बस मुझे कर्ण के पास कुंती के जाने वाला एपिसोड निरर्थक लगा, नाना पाटेकर हमेशा की तरह....सोलिड....खैर छोडो ये सब....आज का मेनू बताओ... सुजॊय - जैसे कि इस साल का सातवाँ महीना शुरु हो गया है, तो ऐसे में अगर हम पिछले ६ महीनों की तरफ़ अपनी नज़र घुमाएँ, तो आपको क्या लगता है कौन कौन से गीत उपरी पायदानों पर चल रहे हैं इस साल? मेरे सीलेक्शन कुछ इस तरह के

"मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसेज मेहता" के घर सुमधुर गीतों और ग़ज़लों के साथ आए हैं उस्ताद शुजात खान और शारंग देव

ताज़ा सुर ताल २४/२०१० विश्व दीपक - ७० के दशक के मध्य भाग से लेकर ८० के दशक का समय कलात्मक सिनेमा का स्वर्णयुग माना जाता है। उस ज़माने में व्यावसायिक सिनेमा और कलात्मक सिनेमा के बीच की दूरी बहुत ही साफ़-साफ़ नज़र आती है। और सब से बड़ा फ़र्क था कलात्मक फ़िल्मों में उन दिनों गीतों की गुजाइश नहीं हुआ करती थी। लेकिन धीरे धीरे सिनेमा ने करवट बदली, और आज आलम कुछ ऐसा है कि युं तो समानांतर विषयों पर बहुत सारी फ़िल्में बन रही हैं, लेकिन उन्हे कलात्मक कह कर टाइप कास्ट नहीं किया जाता। इन फ़िल्मों की कहानी भले ही समानांतर हो, लेकिन फ़िल्म में व्यावसायिक्ता के सभी गुण मौजूद होते हैं। और इसलिए ज़ाहिर है कि गीत-संगीत भी शामिल होता है। सुजॊय - आपकी इन बातों से ऐसा लग रहा है कि 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम ऐसे ही किसी फ़िल्म के गानें सुनने जा रहे हैं। विश्व दीपक - बिलकुल! आज हमने चुना है आने वाली फ़िल्म 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसेज मेहता' के गीतों को। सुजॊय - मैंने इस फ़िल्म के बारे में कुछ ऐसा सुन रखा है कि इसकी कहानी विवाह से बाहर के संबंध पर आधारित है और इस एक्स्ट्रा-मैरिटल संबंध का एक कारण ह

कहीं "मादनो" की मिठास से तो कहीं "मैं कौन हूँ" के मर्मभेदी सवालों से भरा है "मिथुन" के "लम्हा" का संगीत

ताज़ा सुर ताल २२/२०१० विश्व दीपक - ’ताज़ा सुर ताल' में हम सभी का स्वागत करते हैं। तो सुजॊय जी, पिछले हफ़्ते कोई फ़िल्म देखी आपने? सुजॊय - हाँ, 'राजनीति' देखी, लेकिन सच पूछिए तो निराशा ही हाथ लगी। कुछ लोगों को यह फ़िल्म पसंद आई, लेकिन मुझे तो फ़िल्म बहुत ही अवास्तविक लगी। सिर्फ़ बड़ी स्टारकास्ट के अलावा कुछ भी ख़ास बात नहीं थी। कहानी भी बेहद साधारण। ख़ैर, पसंद अपनी अपनी, ख़याल अपना अपना। विश्व दीपक - पसंद की अगर बात है तो आज हम 'टी.एस.टी' में जिस फ़िल्म के गानें लेकर हाज़िर हुए हैं, मुझे ऐसा लगता है कि इस फ़िल्म के गानें लोगों को पसंद आने वाले हैं। आज ज़िक्र फ़िल्म 'लम्हा' के गीतों का। सुजॊय - 'लम्हा' बण्टी वालिया व जसप्रीत सिंह वालिया की फ़िल्म है जिसमें मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं संजय दत्त, बिपाशा बासु, कुणाल कपूर, अनुपम खेर ने। निर्देशक हैं राहुल ढोलकिया। संगीत दिया है मिथुन ने, और यह फ़िल्म परदर्शित होने वाली है १६ जुलाई के दिन, यानी कि ठीक एक महीने बाद। जैसा समझ में आ रहा है कि कश्मीर के पार्श्व पर यह फ़िल्म आधारित है। इस फ़िल्म का म्युज़िक लौम्च