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"यह कहाँ आ गए हम..." और "हम कहाँ खो गए..." गीतों का आपस में क्या सम्बन्ध है?

एक गीत सौ कहानियाँ - 58   ‘ यह कहाँ आ गए हम...’ रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 58-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म ’सिलसिला’ के मशहूर गीत "ये कहाँ आ गए है..." के बारे में जिसे लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन ने गाया था।   फ़ि ल्म ’सिलसिला’ यश

मेरे पास आओ मेरे दोस्तों एक किस्सा सुनो....लीजिए एक बार फिर बच्चे बनकर आनंद लें इस कहानी का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 677/2011/117 क हानीनुमा फ़िल्मी गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की आज की कड़ी में हम जिस गीतकार की रचना सुनवाने जा रहे हैं, उन्हीं के लिखे हुए गीत के मुखड़े को इस शृंखला का नाम दिया गया है। जी हाँ, "एक था गुल और एक थी बुलबुल" के लेखक आनन्द बक्शी, जिन्होंने इस गीत के अलावा भी कई कहानीनुमा गीत लिखे हैं। इनमें से दो गीत तो इस क़दर मशहूर हुए हैं कि उन्हें अगर इस शृंखला में शामिल न करें तो मज़ा ही नहीं आयेगा। तो चलिये आज और कल की कड़ियों में बक्शी साहब के लिखे दो हिट गीतों का आनन्द लें। अब तक इस शृंखला में आपनें जितने भी गीत सुनें, वो ज़्यादातर राजा-रानी की कहानियों पर आधारित थे। लेकिन आज का जो हमारा गीत है, उसमें क़िस्सा है एक शेर का। बच्चों को शेर से बड़ा डर लगता है, और जहाँ डर होता है, वहीं दिलचस्पी भी ज़्यादा होती है। इसलिये शेर और जंगल की कहानियाँ बच्चों को बहुत पसंद आते हैं। अभी हाल ही में बक्शी साहब के बेटे राकेश जी से हमारी मुलाक़ात में उन्होंने बताया था कि बक्शी साहब हर रोज़ एक नई कहानी, एक नई किताब पढ़ते थे, और गीत लेखन क

मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है....अरे नहीं साहब ये तो गाने के बोल हैं, हमारे अंगने में तो आपका ही काम है...आईये

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 636/2010/336 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! आज हम एक नए सप्ताह में क़दम रख रहे हैं और इन दिनों जारी है लघु शृंखला 'सितारों की सरगम', जिसके अंतर्गत हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिन्हें आवाज़ दी है फ़िल्म अभिनेता और अभिनेत्रियों नें। शृंखला के पहले हिस्से में जिन पाँच सितारों की सरगमी आवाज़ से आपका परिचय हुआ वो थे राज कपूर, दिलीप कुमार, मीना कुमारी, नूतन और अशोक कुमार। आइए आज से शुरु हो रही इस शृंखला के दूसरे हिस्से में बात करें अगली पीढ़ी के सितारों की। ऐसे में शुरुआत 'मेगास्टार ऒफ़ दि मिलेनियम' के अलावा और किनसे हो सकती है भला! जी हाँ, बिग बी अमिताभ बच्चन। साहब उनकी आवाज़ के बारे में क्या कहें, यह तो बस सुनने की चीज़ है। और मज़े की बात यह है कि फ़िल्मों में आने से पहले जब उन्होंने समाचार वाचक की नौकरी के लिए वॊयस टेस्ट दिया था, तो उसमें वो फ़ेल हो गये थे और उन्हें बताया गया था कि उनकी आवाज़ वाचन के लिए सही नहीं है। और क़िस्मत ने क्या खेल खेला कि उनकी वही आवाज़ आज उनकी पहचान है। बच्चन साहब नें जो सफलता और शोहरत कमाई है अपने लम्बे क

ये कहाँ आ गए हम...यूँ हीं जावेद साहब के लिखे गीतों को सुनते सुनते

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 317/2010/17 स्व रांजली' की आज की कड़ी में हम जन्मदिन की मुबारक़बाद दे रहे हैं गीतकार, शायर और पटकथा व संवाद लेखक जावेद अख्तर साहब को। लेकिन अजीब बात यह कि जिन दिनों में जावेद साहब पटकथा और संवाद लिखा करते थे, उन दिनों मे वो गानें नहीं लिखते थे, और जब उन्होने बतौर गीतकर अपना सिक्का जमाया, तो पटकथा लिखना लगभग बंद सा कर दिया। जब यही सवाल उनसे पूछा गया तो उनका जवाब था - " यह सही है कि जब मैं फ़िल्में लिखता था, उस वक़्त मैं गानें नहीं लिखता था। लेकिन हाल ही में मैंने अपने बेटे फ़रहान के लिए फ़िल्म 'लक्ष्य' का स्क्रिप्ट लिखा है, एक और भी लिखा है, सोच रहा हूँ कि किसे दूँ (हँसते हुए)! कुछ फ़िल्में हैं जिनमें मैंने स्क्रिप्ट और गानें, दोनों लिखे हैं, जैसे कि 'सागर', जैसे कि 'मिस्टर इंडिया', जैसे कि 'अर्जुन'। मुझे स्क्रिप्ट लिखते हुए थकान सी महसूस हो रही थी, कुछ ख़ास अच्छा नहीं लग रहा था। और अब गानें लिखने में ज़्यादा मज़ा आ रहा है, और दिल से लिख रहा हूँ। इसलिए सोचा कि जब तक फ़िल्मे लिखने का जज़्बा फिर से ना जागे, तब तक गीत ही लिख

विंटेज इल्लायाराजा का संगीत है "पा" में और अमिताभ गा रहे हैं १३ साल के बालक की आवाज़ में...

ताजा सुर ताल TST (36) दोस्तो, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 अक्टूबर से १४ दिसम्बर तक, यानी TST के ४० वें एपिसोड तक. जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के 60 गीतों में से पहली 10 पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर" TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक- पिछले एपिसोड में, सीमा जी आश्चर्य, आप जवाब लेकर उपस्थित नहीं हुई, ३ में से मात्र एक जवाब सही आया और वो भी विश्व दीपक तन्हा जी का, तन्हा जी का स्कोर हुआ १६...दूसरे सवाल में जिन फिल्मों के नाम

रविवार सुबह की कॉफी और अमिताभ की पसंद के गीत (२१)

अभी हाल ही ही में अमिताभ बच्चन की नयी फिल्म "पा" का ट्रेलर जारी हुआ, और जिसने भी देखा वो दंग रह गया...जानते हैं इस फिल्म में उनका जो मेक अप है उसे पहनने में अमिताभ को चार घंटे का समय लगता था और उतारने में दो घंटे, और प्रतिदिन ४ घंटे का शूट होता था क्योंकि इससे अधिक समय तक उस मेक अप को पहना नहीं जा सकता था. इस उम्र में भी अपने काम के प्रति इतनी तन्मयता अद्भुत ही है. आज से ठीक ४० साल पहले प्रर्दशित "सात हिन्दुस्तानी" जिसमें अमिताभ सबसे पहले परदे पर नज़र आये थे, उसका जिक्र हमने पिछले रविवार को किया था....चलिए अब इसी सफ़र को आगे बढाते हैं एक बार फिर दीपाली जी के साथ, सदी के सबसे बड़े महानायक की पसंद के ३ और गीत और उनके बनने से जुडी उनकी यादों को लेकर.... दोस्तों हमने आपसे वादा किया था कि अगले अंक में भी हम अपना सफर जारी रखेंगे. तो लीजिये हम हाजिर हैं फिर से अपना यादों का काफिला लेकर जिसके मुखिया अमिताभ बच्चन सफर को यादगार बनाने के लिये कुछ अनोखे पल बयाँ कर रहे हैं. आइये इन यादों में से हम भी अपने लिये कुछ पल चुरा लें. नदिया किनारे....(अभिमान)बेलगाम यह फ़िल्म मेरे और जय

रविवार सुबह की कॉफी और अमिताभ बच्चन की पसंद के गीत (२०)

आज से ठीक ४० साल पहले एक फिल्म प्रर्दशित हुई थी जिसक नाम था -"सात हिन्दुस्तानी". बेशक ये फिल्म व्यवसायिक मापदंडों पर विफल रही थी, पर इसे आज भी याद किया जाता है और शायद हमेशा याद किया जायेगा सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म के रूप में. अमिताभ ने इस फिल्म में एक मुस्लिम शायर की भूमिका निभाई थी. फिल्म का निर्देशन किया विख्यात ख्वाजा अहमद अब्बास ने (इनके बारे फिर कभी विस्तार से), संगीत जे पी कौशिक का था, जो लीक से हट कर बनने वाली फिल्मों में संगीत देने के लिए जाने जाते हैं. शशि कपूर की जूनून में भी इन्हीं का संगीत था, गीत लिखे कैफी आज़मी ने जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का राष्ट्रीय सम्मान भी हासिल हुआ, गीत था महेंद्र कपूर का गाया "आंधी आये कि तूफ़ान कोई....". अमिताभ ने भी इस फिल्म के के लिए "सर्वश्रेष्ठ युवा (पहली फिल्म) का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि आज भी बच्चन साहब ने (जो अब तक शायद सैकडों सम्मान प्राप्त कर चुके होंगें) इस सम्मान को बेहद सहेज कर रखा होगा....इस फिल्म "सात हिन्दुस्तानी" के बारे में कुछ और बातें

महानायक के लिए महागायक से बेहतर कौन

आवाज के दो बडे जादूगर--अमिताभ बच्चन और किशोर कुमार वे दोनों ही अपनी आवाज से अनोखा जादू जगाते हैं। उनकी सधी हुई आवाज हमें असीम गहराई की ओर ले जाती है। इन दोनों में से एक महागायक है तो दूसरा महानायक। कभी इस महानायक की बुलंद आवाज को ऑल इंडिया रेडियो ने नकार दिया था और दूसरी दमदार आवाज उस इंसान की है जिनकी आवाज बिमारी के कारण प्रभावित हो गई थी। कालंतर में इन दोनों की आवाज एक दूसरे की सफलता की "वौइस्" बनी. जैसे एक सच्चे तपस्वी ने कठिन तपस्या से अपनी कामनाओं को साध लिया हो उसी तरह इन दोनों महान कलाकारों ने अपनी आवाज को रियाज से साध लिया था। यदि अब तक आप इन दो विभूतियों को ना जान पाये हो तो हम बता देते हैं कि यहाँ बात हो रही है, महान नायक अमिताभ बच्चन और महान गायक स्वर्गीय किशोर कुमार की। किस्मत देर सवेर अपना रंग दिखा ही देती हैं, कभी रेडियो द्वारा अस्वीकृत कर देने वाली अमिताभ बच्चन की आवाज को बाद में महान निदेशक सत्यजीत राय ने अपनी फिल्म शतरंज के खिलाडी में कमेंट्री के लिये चुना था, इससे बेहतर उनकी आवाज की प्रशंसा क्या हो सकती है। उधर किशोर कुमार को भी पहले पहल केवल कुछ हल्के फु

मेरी प्यास हो न हो जग को...मैं प्यासा निर्झर हूँ...- कवि गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा जी की याद में

महान कवि और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रही है सुपुत्री लावण्य शाह - काव्य सँग्रह "प्यासा ~ निर्झर" की शीर्ष कविता मेँ कवि नरेँद्र कहते हैँ- "मेरे सिवा और भी कुछ है, जिस पर मैँ निर्भर हूँ मेरी प्यास हो ना हो जग को, मैँ,प्यासा निर्झर हूँ" हमारे परिवार के "ज्योति -कलश" मेरे पापा और फिल्म "भाभी की चूडीयाँ " फिल्म के गीत मेँ,"ज्योति कलश छलके" शब्द भी उन्हीँ के लिखे हुए हैँ जिसे स्वर साम्राज्ञी लता दीदी ने भूपाली राग मेँ गा कर फिल्मोँ के सँगीत मेँ साहित्य का,सुवर्ण सा चमकता पृष्ठ जोड दिया !"यही हैँ मेरे लिये पापा"! हमारे परिवार के सूर्य ! जिनसे हमेँ ज्ञान, भारतीय वाँग्मय, साहित्य,कला,संगीत,कविता तथा शिष्टाचार के साथ इन्सानियत का बोध पाठ भी सहजता से मिला- ये उन के व्यक्तित्त्व का सूर्य ही था जिसका प्रभामँडल "ज्योति कलश" की भाँति, उर्जा स्त्रोत बना हमेँ सीँचता रहा - मेरे पापा उत्तर भारत, खुर्जा ,जिल्ला बुलँद शहर के जहाँगीरपुर गाँव के पटवारी घराने मेँ जन्मे थे.प्राँरभिक शिक्षा खुर्जा मेँ हुई

तीर पर कैसे रूकूँ मैं, आज लहरों का निमंत्रण....

सुनिए अमिताभ बच्चन की आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन का काव्य पाठ आज हिन्दी साहित्य के माधुर्य रस से लबालब काव्य लिखने वाले हालावादी कवि हरिवंश राय बच्चन छठवीं पुण्यतिथि है।उनका नाम याद आते ही याद आता है २५ वर्ष का एक युवक - लम्बे घुँघराले बाल, इकहरा शरीर, दरमियाना कद,गेहुँआ रंग, दार्शनिक मुद्रा और शरारत भरी आँखें। दिन में कचहरी और रात में होटल या ट्रेन में। २ नोट बुक सदा हाथ में रहती। एक अखबारी नोट तथा दूसरी निजी जो उसकी सच्ची साथी थी,जिसमें वो अपनी प्यारी कल्पनाएँ छन्दोबद्ध रूप में लिखता था।गला सुरीला था। अक्सर गुनगुनाता था- "अरूण कमल कोमल कलियों का, प्याली, फूलों का प्याला..." अपने गीतों की धुन स्वयं बनाता और मस्ती से गाता था। एक ऐसा कवि जिसने मात्र १३ वर्ष की आयु में अपनी पहली कविता लिखी। आरम्भ में छोटी-छोटी सभाओं में लोकप्रिय हुआ और कुछ ही दिनों में समस्त हिन्दी प्रेमियों में गायक कवि के रूप में प्रचलित हो गया। १९३३ में बनारस में एक बड़ा कविसम्मेलन हुआ। दिग्गज कवियों के बीच मधुशाला के २ पद सुनाकर दिग्विजय पा ली। बैठबा चाहते थे पर तालियों की गड़गड़ाहट ने तीसरा, फिर चौथा पद सुन