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'पाकीज़ा' गीतों में पाश्चात्य स्वरों के मेल भी और देसी मिटटी की महक भी

प्लेबैक वाणी -4 4 - संगीत समीक्षा - पाकीजा (जुबीन गर्ग) जो र हाट, आसाम से निकली इस बेमिसाल आवाज़ ने देश भर के संगीत प्रेमियों पर अपना जादू चलाया है. बेहद प्रतिभाशाली जुबीन गर्ग ढोल, गिटार, मेंडोलिन जैसे ढेरों साजों पर भी अपनी पकड़ रखते हैं. हिंदी फ़िल्मी गीतों के शौकीनों ने उन्हें सुना था फिल्म कांटे के दमदार जाने क्या होगा रामा रे में, मगर गैंगस्टर के या अली के बाद तो वो घर घर पहचाने जाने लगे थे. ये खुशी की बात है कि आज के दौर में जब सोलो एलबम्स के लिए बाजार में बहुत अधिक संभावनाएं नज़र नहीं आती, टाईम्स संगीत जैसी बड़ी कंपनी जुबीन की गैर फ़िल्मी एल्बम को ज़ारी करने का साहस करती है. संगीत प्रेमियों के लिए बाजारू चलन से हट कर कुछ सुनने की तड़प और जुबीन का आवाज़ की कशिश ही है ये जो इस तरह के प्रयोगों को ज़मीन देती है. एल्बम का शीर्षक गीत बहुत ही जबरदस्त है, संगीत संयोजन कुछ हैरत करने वाला है. पर शब्द, धुन और जुबीन की आवाज़ का नशा गीत को एक अलग ही आसमाँ दे देता है. एक रोक्क् सोलिड गीत जो संगीत प्रेमियों जम कर रास आएगा . मीना कुमारी अभिनीत क्लास्सिक फिल्म पाकीज़ा जो कि जुबीन की सबसे