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आफ़रीन आफ़रीन...कौन न कह उठे नुसरत साहब की आवाज़ और जावेद साहब को बोलों को सुन...

बात एक एल्बम की # 05 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - "संगम" - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर उन दिनों मैं राजस्थान की यात्रा पर था, जहाँ एक बस में मैंने उसके घटिया ऑडियो सिस्टम में खड़खड़ के बीच, "आफरीन-आफरीन.." सुना था. ज़्यादा समझ में नहीं आया पर धुन कहीं अन्दर जाकर समां गई- वहीँ गूँजती रही. फिर जब उदयपुर की एक म्यूजिक शाप पर फिर उसी धुन को सुना जो अबकी बार कहीं ज़्यादा बेहतर थी तो एक नशा-सा छा गया. यह आवाज़ थी जनाब नुसरत फतह अली भुट्टो साहब की. क्या शख्सियत, आवाज़ में क्या रवानगी, क्या खनकपन, क्या लहरिया, क्या सुरूर और क्या अंदाज़ गायकी का, जैसे खुदा खुद ज़मी पर उतर आया हो. मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जब नुसरत साहब गाते होगें, खुदा भी वहीँ-कहीं आस-पास ही रहता होगा, उन्हें सुनता हुआ मदहोश-सा. धन्य हैं वो लोग, जो उस समय वहां मौजूद रहें होगें. उनकी आवाज़-उनका अंदाज़, उनका वो हाथों को हिलाना, चेहरे पर संजीदगी, संगीत का उम्दा प्रयोग, यह सब जैसे आध्यात्म की नुमाइंदगी करते मालूम देते हैं. दुनिया ने उन्हें देर