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Showing posts with the label Usha Mangeshkar

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 44 - 'उषा मंगेशकर से ट्विटर पर छोटी सी मुलाक़ात और उनके गाये चंद असमीया फ़िल्मी गीत'

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, शनिवार विशेषांक के साथ मैं, आपका दोस्त सुजॉय, हाज़िर हूँ। पिछले दिनों 'हिंद-युग्म' नें मुझे 'लोकप्रिय गोपीनाथ बार्दोलोई हिंदी सेवी सम्मान' से जब सम्मानित किया था, तो मेरी ख़ुशी की सीमा न थी। यह ख़ुशी सिर्फ़ इस बात की नहीं थी कि मैं पुरस्कृत हो रहा था, बल्कि इस बात की भी थी कि यह पुरस्कार उस महान शख़्स के नाम पर था जो उसी जगह से ताल्लुख़ रखते थे जहाँ से मैं हूँ। जी हाँ, आसाम की सरज़मीं। आसाम, जहाँ मेरा जन्म हुआ, जहाँ से मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की, और जहाँ से मेरी नौकरी जीवन की शुरुआत हुई। उस रोज़ मैं उस पुरस्कार को ग्रहण करते हुए यह सोच रहा था कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिये मुझे यह पुरस्कार दिया गया है, तो क्यों न 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक विशेषांक असमीया फ़िल्म संगीत को लेकर की जाये! तभी मुझे याद आया कि पिछले साल, जून के महीने में, जब तीनों मंगेशकर बहनों का ट्विटर पर आगमन हुआ, उस वक़्त मैंने लता जी और उषा जी से कुछ सवाल पूछे थे, जिनमें से कुछ के उन दोनों ने जवाब भी दिये थे। आपको याद होगा लता जी से की हुई बातचीत को ह

अपलम चपलम चपलाई रे....गुदगुदाते शब्द मधुर संगीत और मंगेशकर बहनों की जुगलबंदी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 393/2010/93 ज़ो हराबाई -शमशाद बेग़म और सुरैय्या - उमा देवी की जोड़ियों के बाद 'सखी सहेली' की तीसरी कड़ी में आज हम जिन दो गायिकाओं को लेकर उपस्थित हुए हैं, वो एक ऐसे परिवार से ताल्लुख़ रखती हैं जिस परिवार का नाम फ़िल्म संगीत के आकाश में सूरज की तरह चमक रहा है। जी हाँ, मंगेशकर परिवार। जो परम्परा स्व: दीनानाथ मंगेशकर ने शुरु की थी, उस परम्परा को उनके बेटे बेटियों, लता, आशा, उषा, मीना, हृदयनाथ, आदिनाथ, ने ना केवल आगे बढ़ाया, बल्कि उसे उस मुकाम तक भी पहुँचाया कि फ़िल्म संगीत के इतिहास में उनके परिवार का नाम स्वर्णाक्षरों से दर्ज हो गया। आज इसी मंगेशकर परिवार की दो बहनों, लता और उषा की आवाज़ों में प्रस्तुत है एक बड़ा ही नटखट, चंचल और चुलबुला सा गीत सी. रामचन्द्र के संगीत निर्देशन में। राजेन्द्र कृष्ण का लिखा १९५५ की फ़िल्म 'आज़ाद' का वही सदाबहार गीत "अपलम चपलम"। कहा जाता है कि फ़िल्म 'आज़ाद' के निर्माता एस. एम. एस. नायडू ने पहले संगीतकार नौशाद को इस फ़िल्म के संगीत का भार देना चाहा, पर उन्होने नौशाद साहब के सामने शर्त रख दी कि एक मही

बुझा दिए हैं खुद अपने हाथों से....दर्द की कसक खय्याम के सुरों में...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 327/2010/27 श -रद तैलंग जी के पसंद का अगला गाना है फ़िल्म 'शगुन' से। सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में यह है इस फ़िल्म का एक बड़ा ही मीठा गीत "बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों से मोहब्बत के दीये जलाके"। साहिर लुधियानवी की शायरी और ख़य्याम साहब का सुरीला सुकून देनेवाला संगीत। इसी फ़िल्म में सुमन जी ने रफ़ी साहब के साथ "ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा" और "पर्बतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है" जैसे हिट गीत गाए हैं। आज के प्रस्तुत गीत की बहुत ज़्यादा चर्चा नहीं हुई लेकिन उत्कृष्टता में यह गीत किसी भी दूसरे गीत से कुछ कम नहीं, और यह गीत सुमन कल्याणपुर के गाए बेहतरीन एकल गीतों में से एक है। फ़िल्म 'शगुन' आई थी सन् १९६४ में, जिसका निर्माण हुआ था शाहीन आर्ट के बैनर तले, निर्देशक थे नज़र, और फ़िल्म के कलाकार थे कंवलजीत सिंह, वहीदा रहमान, चांद उस्मानी, नज़िर हुसैन, नीना और अचला सचदेव। दोस्तों, आपको यह बता दें कि यही कंवलजीत असली ज़िंदगी में वहीदा रहमान के पति हैं। 'शगुन' में सुमन कल्याणपुर और मोहम्मद रफ़ी के अलावा जिन गायकों

एक कोने में गज़ल की महफ़िल, एक कोने में मैखाना हो..."गोरखपुर" के हर्फ़ों में जाम उठाई "पंकज" ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४५ पू री दो कड़ियों के बाद "सीमा" जी ने अपने पहले हीं प्रयास में सही जवाब दिया है। इसलिए पहली मर्तबा वो ४ अंकों की हक़दार हो गई हैं। "सीमा" जी के बाद हमारी "प्रश्न-पहेली" में भागेदारी की शामिख फ़राज़ ने। हुज़ूर, इस बार आपने सही किया. पिछली बार की तरह ज़ेरोक्स मशीन का सहारा नहीं लिया, इसलिए हम भी आपके अंकों में किसी भी तरह की कटौती नहीं करेंगे। लीजिए, २ अंकों के साथ आपका भी खाता खुल गया। आपके लिए अच्छा अवसर है क्योंकि हमारे नियमित पहेली-बूझक शरद जी तो अब धीरे-धीरे लेट-लतीफ़ होते जा रहे हैं, इसलिए आप उनके अंकों की बराबरी आराम से कर सकते हैं। बस नियमितता बनाए रखिए। "शरद" जी, यह क्या हो गया आपको। एक तो देर से आए और ऊपर से दूसरे जवाब में कड़ी संख्या लिखा हीं नहीं। इसलिए आपका दूसरा जवाब सही नहीं माना जाएगा। इस लिहाज़ से आपको बस .५ अंक मिलते हैं। कुलदीप जी, हमने पिछली महफ़िल में हीं कहा था कि सही जवाब देने वाले को कम से कम १ अंक मिलना तो तय है, इसलिए जवाब न देने का यह कारण तो गलत है। लगता है आपने नियमों को सही से नहीं पढा है। अभी भी देर

तुमको पिया दिल दिया कितने नाज़ से- कहा मंगेशकर बहनों ने दगाबाज़ से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 128 आ काश की सुंदरता केवल चाँद और सूरज से ही नहीं है। इनके अलावा भी जो असंख्य सितारे हैं, जिनमें से कुछ उज्जवल हैं तो कुछ धुंधले, इन सभी को एक साथ लेकर ही आकाश की सुंदरता पूरी होती है। यही बात फ़िल्म संगीत के आकाश पर भी लागू होती है। भले ही कुछ फ़नकार बहुत ज़्यादा प्रसिद्ध हुए हों, फ़िल्म संगीत जगत पर छाये रहे हों, लेकिन इनके अलावा भी बहुत सारे गीतकार, संगीतकार और गायक-गायिकायें ऐसे भी थे जिनका इनके मुकाबले नाम ज़रा कम हुआ। लेकिन वही बात कि इन सभी को मिलाकर ही फ़िल्म संगीत सागर अनमोल मोतियों से समृद्ध हो सका है। इन कम चर्चित फ़नकारों के योगदान को अगर अलग कर दिया जाये, फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने से निकाल दिया जाये, तो शायद इस ख़ज़ाने की विविधता ख़त्म हो जायेगी, एकरसता का शिकार हो जायेगा फ़िल्म संगीत संसार। इसीलिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के ज़रिये समय समय पर 'हिंद-युग्म' सलाम करती है ऐसे कमचर्चित फ़नकारों को। आज का गीत भी एक कमचर्चित संगीतकार द्वारा स्वरबद्ध किया हुआ है, जिन्हें हम और आप जानते हैं जी. एस. कोहली के नाम से। कोहली साहब का पूरा नाम था गुरुशरण स