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Showing posts from January, 2017

राग पीलू और भीमपलासी : SWARGOSHTHI – 303 : RAG PILU & BHIMPALASI

स्वरगोष्ठी – 303 में आज राग और गाने-बजाने का समय – 3 : दिन के तीसरे प्रहर के राग राग पीलू की ठुमरी - ‘पपीहरा पी की बोल न बोल...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला- “राग और गाने-बजाने का समय” की तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त त

चित्रकथा - 4: आशा के बाद ओ. पी. नय्यर की पार्श्वगायिकाएँ

अंक - 4 आशा के बाद ओ. पी. नय्यर की पार्श्वगायिकाएँ “ हम कैसे बतायें तक़दीर ने हमको ऐसा मारा.. ” 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं है। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारी दिलचस्पी का आलम ऐसा है कि हम केवल फ़िल्में देख कर या गाने सुनने तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखते, बल्कि फ़िल्म संबंधित हर तरह की जानकारियाँ बटोरने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसी दिशा में आपके हमसफ़र बन कर हम आते हैं हर शनिवार ’चित्रकथा’ लेकर। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ के ती

"संगीतकार ही अपने गाने के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक चुन सकता है" - राशिद खान II एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है  एपिसोड - 47 "राज़ ३", "करले प्यार करले", "हेट स्टोरी" जैसी बड़ी फिल्मों के धुरंधर संगीतकार राशिद खान साहेब हैं हमारे आज के मेहमान, मिलिए 'दीवाना कर रहा है' गीत के दीवाने संगीतकार से आज के एपिसोड में, प्ले का बट्टन दबाएँ और आनंद लें, इस बातचीत का... ये एपिसोड आपको कैसा लगा, अपने विचार आप 09811036346 पर व्हाट्सएप भी कर हम तक पहुंचा सकते हैं, आपकी टिप्पणियां हमें प्रेरित भी करेगीं और हमारा मार्गदर्शन भी....इंतज़ार रहेगा. एक मुलाकात ज़रूरी है इस एपिसोड को आप  यहाँ  से डाउनलोड करके भी सुन सकते हैं, लिंक पर राईट क्लीक करें और सेव एस का विकल्प चुनें मिलिए इन जबरदस्त कलाकारों से भी - राकेश चतुर्वेदी ओम , अनवर सागर ,  संजीवन लाल ,  कुणाल वर्मा ,  आदित्य शर्मा ,  निखिल कामथ ,  मंजीरा गांगुली , रितेश शाह , वरदान सिंह , यतीन्द्र मिश्र , विपिन पटवा , श्रेया शालीन , साकेत सिंह , विजय अकेला , अज़ीम शिराज़ी , संजोय चौधरी , अरविन्द तिवारी , भारती विश्वनाथन , अविषेक मजुमदर , शुभा मुदगल , अल

काँच के शामियाने - रश्मि रविजा

लोकप्रिय स्तम्भ " बोलती कहानियाँ " के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। इस शृंखला में पिछली बार आपने उषा छाबड़ा के स्वर में विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार खलील जिब्रान की लघुकथा " आनंद और पीड़ा " का वाचन सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं रश्मि रविजा के चर्चित उपन्यास काँच के शामियाने का एक अंश जिसे स्वर दिया है पूजा अनिल ने। प्रस्तुत अंश का कुल प्रसारण समय 8 मिनट 17 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस उपन्यास की अधिक जानकारी रश्मि रविजा के ब्लॉग  अपनी, उनकी, सबकी बातें उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। “मंजिल मिले ना मिले, ये ग़म नहीं मंजिल की जुस्तजू में, मेरा कारवां तो है।” ‍‍ - रश्मि रविजा हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी

राग आसावरी और तोडी : SWARGOSHTHI – 302 : RAG ASAVARI & TODI

स्वरगोष्ठी – 302 में आज राग और गाने-बजाने का समय – 2 : दिन के दूसरे प्रहर के राग “जागो रे, जागो प्रभात आया...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारे नई श्रृंखला- “राग और गाने-बजाने का समय” की दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार

चित्रकथा - 3: महेन्द्र कपूर के गाए देश-भक्ति गीत

अंक - 3 महेन्द्र कपूर के गाए देश-भक्ति गीत “ भारत की बात सुनाता हूँ... ” 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं है। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारी दिलचस्पी का आलम ऐसा है कि हम केवल फ़िल्में देख कर या गाने सुनने तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखते, बल्कि फ़िल्म संबंधित हर तरह की जानकारियाँ बटोरने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसी दिशा में आपके हमसफ़र बन कर हम आते हैं हर शनिवार ’चित्रकथा’ लेकर। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ के तीसरे अंक में आपका हार्द

चाहा था एक शख़्स को... कहकशाँ-ए-तलबगार में आशा की गुहार

महफ़िल ए कहकशाँ 19 आशा भोंसले और खय्याम  दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज पेश है आशा भोंसले की आवाज़ में एक गज़ल, मौसिकार हैं खय्याम और कलाम है हसन कमाल का |   मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी