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स्वागत नववर्ष 2017 : SWARGOSHTHI – 299 : WELCOME NEW YEAR 2017


नववर्ष 2017 पर  सभी पाठकों और श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ 




स्वरगोष्ठी – 299 में आज

महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 1

तीसरे महाविजेता प्रफुल्ल पटेल और चौथी महाविजेता हरिणा माधवी की प्रस्तुतियाँ





‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का नववर्ष के पहले अंक में हार्दिक अभिनन्दन है। इसी अंक से आपका प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ सातवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। विगत छह वर्षों से असंख्य पाठकों, श्रोताओं, संगीत शिक्षकों और वरिष्ठ संगीतज्ञों का प्यार, दुलार और मार्गदर्शन इस स्तम्भ को मिलता रहा है। इन्टरनेट पर शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक, सुगम और फिल्म संगीत विषयक चर्चा का सम्भवतः यह एकमात्र नियमित साप्ताहिक स्तम्भ है, जो विगत छह वर्षों से निरन्तरता बनाए हुए है। इस पुनीत अवसर पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सम्पादक और संचालक मण्डल के सभी सदस्यों- सजीव सारथी, सुजॉय चटर्जी, अमित तिवारी, अनुराग शर्मा, विश्वदीपक, संज्ञा टण्डन, पूजा अनिल और रीतेश खरे के साथ अपने सभी पाठकों और श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट करता हूँ। आज सातवें वर्ष के इस प्रवेशांक से हम ‘स्वरगोष्ठी’ की संगीत पहेली के तीसरे और चौथे महाविजेताओं की प्रस्तुतियों का रसास्वादन कराएँगे। इसके अलावा नववर्ष के इस प्रवेशांक में मांगलिक अवसरों पर परम्परागत रूप से बजने वाले मंगलवाद्य शहनाई का वादन भी प्रस्तुत करेंगे। वादक हैं, भारतरत्न के सर्वोच्च अलंकरण से विभूषित उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और राग है सर्वप्रिय भैरवी।



उस्ताद  बिस्मिल्लाह  खाँ
‘स्वरगोष्ठी’ का शुभारम्भ ठीक छः वर्ष पूर्व ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ संचालक मण्डल के प्रमुख सदस्य सुजॉय चटर्जी ने रविवार, 2 जनवरी 2011 को किया था। आरम्भ में यह ‘हिन्दयुग्म’ के ‘आवाज़’ मंच पर हमारे अन्य नियमित स्तम्भों के साथ प्रकाशित हुआ करता था। उन दिनों इस स्तम्भ का शीर्षक ‘सुर संगम’ था। दिसम्बर 2011 से हमने ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ नाम से एक अपना नया सामूहिक मंच बनाया और पाठकों के अनुरोध पर जनवरी 2012 से इस स्तम्भ का शीर्षक ‘स्वरगोष्ठी’ कर दिया गया। तब से हम आपसे निरन्तर यहीं मिलते हैं। समय-समय पर आपसे मिले सुझावों के आधार पर हम अपने सभी स्तम्भों के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ में भी संशोधन करते रहते हैं। इस स्तम्भ के प्रवेशांक में सुजॉय जी ने इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला था। उन्होने लिखा था-

“नये साल के इस पहले रविवार की सुहानी सुबह में मैं, सुजॊय चटर्जी, आप सभी का 'आवाज़' पर स्वागत करता हूँ। यूँ तो हमारी मुलाक़ात नियमित रूप से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर होती रहती है, लेकिन अब से मैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अलावा हर रविवार की सुबह भी आपसे मुख़ातिब रहूँगा इस नये स्तम्भ में जिसकी हम आज से शुरुआत कर रहे हैं। दोस्तों, प्राचीनतम संगीत की अगर हम बात करें तो वो है हमारा शास्त्रीय संगीत, जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। चार वेदों में सामवेद में संगीत का व्यापक वर्णन मिलता है। इन वैदिक ऋचाओं को सामगान के रूप में गाया जाता था। फिर उससे 'जाति' बनी और फिर आगे चलकर 'राग' बनें। ऐसी मान्यता है कि ये अलग-अलग राग हमारे अलग-अलग 'चक्र' (ऊर्जा विन्दु) को प्रभावित करते हैं। ये अलग-अलग राग आधार बनें शास्त्रीय संगीत का और युगों-युगों से इस देश के सुरसाधक इस परम्परा को निरन्तर आगे बढ़ाते चले जा रहे हैं, हमारी संस्कृति को सहेजते हुए बढ़े जा रहे हैं। संगीत की तमाम धाराओं में सब से महत्वपूर्ण धारा है शास्त्रीय अर्थात रागदारी संगीत। बाकी जितनी तरह का संगीत है, उन सबसे उच्च स्थान पर है अपना रागदारी संगीत। तभी तो संगीत की शिक्षा का अर्थ ही है शास्त्रीय संगीत की शिक्षा। अक्सर साक्षात्कारों में कलाकार इस बात का ज़िक्र करते हैं कि एक अच्छा गायक या संगीतकार बनने के लिए शास्त्रीय संगीत का सीखना बेहद ज़रूरी है। तो दोस्तों, आज से 'आवाज़' पर पहली बार एक ऐसा साप्ताहिक स्तम्भ शुरु हो रहा है जो समर्पित है, भारतीय परम्परागत शास्त्रीय संगीत को। गायन और वादन, यानी साज़ और आवाज़, दोनों को ही बारी-बारी से इसमें शामिल किया जाएगा। भारतीय संगीत से इस स्तम्भ की हम शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन आगे चलकर अन्य संगीत शैलियों को भी शामिल करने की उम्मीद रखते हैं।”

तो यह सन्देश हमारे इस स्तम्भ के प्रवेशांक का था। ‘स्वरगोष्ठी’ की कुछ और पुरानी यादों को ताज़ा करने से पहले आज का का चुना हुआ संगीत सुनते हैं। आज ‘स्वरगोष्ठी’ सातवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। हम इस पावन अवसर पर मंगलवाद्य शहनाई का वादन प्रस्तुत कर रहे हैं। इस अंक में हम देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई पर बजाया राग भैरवी प्रस्तुत कर रहे हैं।


मंगलध्वनि : राग भैरवी : शहनाई वादन : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और साथी


हमारे दल के सर्वाधिक कर्मठ साथी सुजॉय चटर्जी ने ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ की नीव रखी थी। उद्देश्य था, शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत-प्रेमियों को एक ऐसा मंच देना जहाँ किसी कलासाधक, प्रस्तुति अथवा किसी संगीत-विधा पर हम आपसे संवाद कायम कर सकें और आपसे विचारों का आदान-प्रदान कर सकें। आज के 299वें अंक के माध्यम से हम कुछ पुरानी स्मृतियों को ताज़ा कर रहे हैं। जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है कि इस स्तम्भ की बुनियाद सुजॉय चटर्जी ने रखी थी और आठवें अंक तक अपने आलेखों के माध्यम से अनेक संगीतज्ञों की कृतियों से हमें रससिक्त किया था। नौवें अंक से हमारे एक नये साथी सुमित चक्रवर्ती हमसे जुड़े और आपके अनुरोध पर उन्होने शास्त्रीय, उपशास्त्रीय संगीत के साथ लोक संगीत को भी ‘सुर संगम’ से जोड़ा। सुमित जी ने इस स्तम्भ के 30वें अंक तक आपके लिए बहुविध सामग्री प्रस्तुत की, जिसे आप सब पाठकों-श्रोताओं ने सराहा। इसी बीच मुझ अकिंचन को भी कई विशेष अवसरों पर कुछ अंक प्रस्तुत करने का अवसर मिला। सुमित जी की पारिवारिक और व्यावसायिक व्यस्तता के कारण 31वें अंक से ‘सुर संगम’ का पूर्ण दायित्व मेरे साथियों ने मुझे सौंपा। मुझ पर विश्वास करने के लिए अपने साथियों का मैं आभारी हूँ। साथ ही अपने पाठकों-श्रोताओं का अनमोल प्रोत्साहन भी मुझे मिला, जो आज भी जारी है।

पिछले अंकों में ‘स्वरगोष्ठी’ से असंख्य पाठक, श्रोता, समालोचक और संगीतकार जुड़े। हमें उनका प्यार, दुलार और मार्गदर्शन मिला। उन सभी का नामोल्लेख कर पाना सम्भव नहीं है। ‘स्वरगोष्ठी’ का सबसे रोचक भाग प्रत्येक अंक में प्रकाशित होने वाली ‘संगीत पहेली’ है। इस पहेली में बीते वर्ष के दौरान अनेक संगीत-प्रेमियों ने सहभागिता की। इन सभी उत्तरदाताओं को उनके सही जवाब पर प्रति सप्ताह अंक दिये जाते हैं। वर्ष के अन्त में सभी प्राप्तांकों की गणना की जाती है। 297वें अंक तक की गणना की जा चुकी है। इनमें से सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले चार महाविजेताओं का चयन कर लिया गया है। आज के इस अंक में हम आपका परिचय पहेली के तीसरे और चौथे महाविजेता से करा रहे हैं। पहले और दूसरे महाविजेताओ की घोषणा और उनकी प्रस्तुतियों का रसास्वादन हम अगले अंक में कराएँगे।

महाविजेता डी .हरिणा माधवी
‘स्वरगोष्ठी’ की संगीत पहेली 2016 की 73 अंक प्राप्त कर चौथी महाविजेता बनीं हैं, हैदराबाद की डी. हरिणा माधवी। हम उन्हें सहर्ष सम्मानित करते हैं। “संगीत जीवन का विज्ञान है”, इस सिद्धान्त को केवल मानने वाली ही नहीं बल्कि अपने जीवन में उतार लेने वाली हरिणा जी दो विषयों की शिक्षिका का दायित्व निभा रही हैं। हैदराबाद के श्री साईं स्नातकोत्तर महाविद्यालय में विगत 15 वर्षो से स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं को लाइफ साइन्स पढ़ा रही हैं। इसके साथ ही स्थानीय वासवी कालेज ऑफ म्यूजिक ऐंड डांस से भी उनका जुड़ाव है, जहाँ विभिन्न आयुवर्ग के विद्यार्थियों का मार्गदर्शन भी करती हैं। हरिणा जी को प्रारम्भिक संगीत शिक्षा अपनी माँ श्रीमती वाणी दुग्गराजू से मिली। आगे चल कर अमरावती, महाराष्ट्र के महिला महाविद्यालय की संगीत विभागाध्यक्ष श्रीमती कमला भोंडे से विधिवत संगीत सीखना शुरू किया। हरिणा जी के बाल्यावस्था के एक और संगीत गुरु एम.वी. प्रधान भी थे, जो एक कुशल तबला वादक भी थे। इनके अलावा हरिणा जी ने गुरु किरण घाटे और आर. डी. जी. कालेज, अकोला के संगीत विभागाध्यक्ष श्री नाथूलाल जायसवाल से भी संगीत सीखा। हरिणा जी ने मुम्बई के अखिल भारतीय गन्धर्व महाविद्यालय से संगीत अलंकार की उपाधि प्राप्त की है। आज के इस विशेष अंक में हम ‘स्वरगोष्ठी के इस अंक के माध्यम से ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी संचालक और सम्पादक मण्डल के सदस्य, शिक्षिका और विदुषी डी. हरिणा माधवी का महाविजेता के रूप में हार्दिक अभिनन्दन करते हैं और आपको हरिणा जी की आवाज़ में राग मारूविहाग में एक खयाल रचना सुनवाते हैं। इलाहाबाद के सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित रामाश्रय झा की यह रचना हरिणा जी द्रुत तीनताल में निबद्ध कर प्रस्तुत कर रही हैं। रचना के बोल हैं, -“मन ले गयो रे साँवरा....”। 

खयाल राग मारूविहाग : “मन ले गयो रे साँवरा...” : डी. हरिणा माधवी


महाविजेता प्रफुल्ल  पटेल 
पहेली प्रतियोगिता में 82 अंक प्राप्त कर तीसरे महाविजेता बने हैं, चेरीहिल (न्युजर्सी) के प्रफुल्ल पटेल। भारतीय शास्त्रीय संगीत में गहरी रुचि रखने वाले प्रफुल्ल पटेल न्यूजर्सी, अमेरिका में रहते हैं। साप्ताहिक स्तम्भ, ‘स्वरगोष्ठी’ को पसन्द करने वाले प्रफुल्ल जी शास्त्रीय संगीत के अलावा भारतीय लोकप्रिय संगीत भी रुचि के साथ सुनते हैं। इस प्रकार के संगीत से उन्हें गहरी रुचि है। परन्तु कहते हैं कि उन्हें पाश्चात्य संगीत ने कभी भी प्रभावित नहीं किया। पेशे से इंजीनियर भारतीय मूल के प्रफुल्ल जी पिछले पचास वर्षों से अमेरिका में रह रहे हैं। प्रफुल्ल जी स्वांतःसुखाय हारमोनियम बजाते हैं और स्वयं गाते भी है, किन्तु बताते हैं कि उनके गायन और वादन का स्तर ‘स्वरगोष्ठी’ में प्रसारित गायन अथवा वादन जैसा नहीं है। जब हमने उनसे उनका गाया अथवा बजाया अथवा उनकी पसन्द का कोई ऑडियो क्लिप भेजने का अनुरोध किया तो उन्होने किसी एक कलाकार को चुनने में असमंजस के कारण संकोच के साथ टाल दिया। ‘स्वरगोष्ठी’ की पहेली में नियमित रूप से भाग लेने वाले प्रफुल्ल जी के संगीत-ज्ञान का अनुमान इस तथ्य से किया जा सकता है कि संगीत पहेली में 82 अंक अर्जित कर उन्होने वार्षिक महाविजेताओ की सूची तीसरे महाविजेता का सम्मान प्राप्त किया है। ‘स्वरगोष्ठी के आज के इस अंक के माध्यम से ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी संचालक और सम्पादक मण्डल के सदस्य, संगीत-प्रेमी प्रफुल्ल पटेल का महाविजेता के रूप में हार्दिक अभिनन्दन करते हैं और अपनी ओर से उनकी अभिरुचि का ध्यान रखते हुए उन्हें ‘हारमोनियम’ और वाद्य के भारतीय संस्करण, ‘संवादिनी’ का युगल वादन प्रस्तुत कर रहे हैं। वादक हैं, पण्डित मनोहर चिमोटे और पण्डित गोविन्दराव पटवर्धन। दोनों महान संगीतज्ञ हारमोनियम और संवादिनी पर राग भैरवी की युगलबन्दी प्रस्तुत कर रहे हैं। आप इस मोहक युगलबन्दी का रसास्वादन कीजिए और हमे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
 
राग भैरवी : हारमोनियम-संवादिनी युगलबन्दी : पण्डित मनोहर चिमोटे और पण्डित गोविन्दराव पटवर्धन


संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 299 और 300वें अंक में हम वर्ष 2016 की संगीत पहेली के महाविजेताओं को सम्मानित कर रहे हैं, अतः इस अंक में भी हम आपको कोई संगीत पहेली नहीं दे रहे हैं। अगले अंक में हम पुनः एक नई पहेली के साथ उपस्थित होंगे।

इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता

‘स्वरगोष्ठी’ के 297वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘सन ऑफ इण्डिया’ से एक गीत का अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से किन्हीं दो प्रश्न का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- गायिका – लता मंगेशकर और साथी

इस बार की पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी पाँच प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात

मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज का यह अंक नववर्ष 2017 का पहला अंक था। इस अंक में हमने आपको संगीत पहेली के तीसरे और चौथे महाविजेता से परिचय कराया। अगले अंक में हम आपका परिचय पहेली के प्रथम और द्वितीय स्थान के महाविजेताओं से कराएँगे। वर्ष 2016 की प्रस्तुतियों को हमारे अनेक पाठकों ने पसन्द किया है। हम उन सबके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों की अनेक प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 8 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  


रेडियो प्लेबैक इण्डिया 

: प्रत्येक शनिवार को सुजॉय चटर्जी का साप्ताहिक स्तम्भ अवश्य देखें 


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