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वर्षान्त विशेष: 2016 का फ़िल्म-संगीत (भाग-1)

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला

2016 का फ़िल्म-संगीत  
भाग-1





रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। अगले पाँच सप्ताह, हर शनिवार हम आपके लिए लेकर आएँगे वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। आइए इस लघु श्रृंखला की पहली कड़ी में आज चर्चा करते हैं उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए जनवरी और फ़रवरी के महीनों में।



र्ष 2016 फ़िल्म-संगीत के इतिहास का 86-वाँ वर्ष है। एक लम्बी यात्रा तय करती हुई फ़िल्म-संगीत की
धारा निरन्तर बहती चली आई है और आगे भी चलती रहेगी। केवल फ़िल्मकारों पर ही नहीं, यह दायित्व हम सबका है कि इस परम्परा को जारी रखें और इसका स्तर सदा ऊँचा बनाये रखें। 2016 में प्रदर्शित पहली फ़िल्म थी ’चौरंगा’। ओनिर और संजय सुरी द्वारा निर्मित इस फ़िल्म के ज़रिए लेखक-निर्देशन बिकास रंजन मिश्र ने फ़िल्म-जगत में क़दम रखा। लोकार्नो फ़िल्म महोत्सव और बर्लिन अन्तराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के सहयोग से National Film development Corporation of India द्वारा विकसित इस फ़िल्म ने अन्तर्राष्ट्रीय सिनेमा जगत में काफ़ी नाम कमाया और कई पुरस्कार भी अर्जित किए। इस फ़िल्म में केवल एक ही गीत शामिल किया गया जिसके बोल हैं "तुझे इलज़ाम ना देंगे ऐ ख़ुदा"। गीत को लिखा, स्वरबद्ध किया और गाया अविनाश नारायण ने। संतूर पर संदीप मित्र और गीटार पर चिन्टू सिंह ने संगत किया। एक नवोदित कलाकार के रूप में अविनाश ने बेहद सराहनीय गीत की रचना की है। 2016 की दूसरी फ़िल्म थी ’वज़ीर’। विधु-विनोद चोपड़ा की इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन, फ़रहान अख़्तर, नील नितिन मुकेश, जॉन एबरहम आदि स्टार्स हैं। इस बड़ी फ़िल्म के लिए विधु विनोद चोपड़ा ने पाँच संगीतकारों को चुना। अपने पसन्दीदा शान्तनु मोइत्र तो हैं ही, साथ में हैं अंकित  तिवारी, प्रशान्त पिल्लई, अद्वैत और गौरव गोडखिन्डी। विधु विनोद चोपड़ा लिखित, शान्तनु मोइत्र स्वरबद्ध और सोनू निगम व श्रेया घोषाल द्वारा गाये "तेरे बिन" गीत को सुन कर "पिया बोले पिउ बोले" की याद ज़रूर आएगी। यह गीत भी बेहद सुरीला बना है। जावेद अली की आवाज़ में "मौला" गीत भी शान्तनु मोइत्र द्वारा एक उत्तम रचना है, इसके बोल विधु विनोद चोपड़ा के साथ-साथ मोइत्र के पुराने साथी स्वानन्द किरकिरे ने लिखे हैं। अंकित तिवारी की अपनी शैली में "तू मेरे पास है" एक कर्णप्रिय गीत है। "खेल खेल में" गीत में अद्वैत के ताल गायन के बीच बीच में अमिताभ बच्चन की आवाज़ में संवाद शामिल किए गए हैं जो अपने आप में एक नया प्रयोग है।

15 जनवरी को प्रदर्शित हुई दो फ़िल्में, दोनों के शीर्षक अंग्रेज़ी। पहली फ़िल्म थी ’Chalk n Duster'।
फ़िल्म की कहानी प्रावेट स्कूल में आजकल शिक्षा के व्यावसायिकरण को लेकर लिखी गई है। शबाना आज़्मी, गिरिश कारनाड, ज़रीना वहाब, जुही चावला, दिव्या दत्ता, आर्य बब्बर और रिचा चड्ढा अभिनीत इस फ़िल्म में सन्देश शान्डिल्य का संगीत है जिन्होंने 90 के दशक में कई फ़िल्मों में सुरीला संगीत दिए हैं, और लत नहीं। गीत लिखे हैं जावेद अख़्तर ने। इसलिए फ़िल्म से अच्छे गीतों की उम्मीद रखना ग़लत नहीं। फ़िल्म में कुल तीन गीत हैं; पहला गीत है सोनू निगम का गाया "ऐ ज़िन्दगी, तेरी मेरी दोस्ती पुरानी है", कुल मिलाकर सुनने लायक गीत। दूसरा गीत है अलका याज्ञानिक, श्रद्धा मिश्र और संचित मिश्र की आवाज़ों में "हम दीप शिक्षा के हैं, जगमगाएँगे"। तीसरा गीत एक जिंगल है शबाना आज़्मी की आवाज़ में। गणित के BODMAS नियम को दर्शाया गया है इसमें, एक नया प्रयोग। शबाना जी की आवाज़ गीत के रूप में सुनने का अनुभव सुखद रहा। अंग्रेज़ी शीर्षक वाला दूसरी फ़िल्म है ’Rebellious Flower' जो ओशो के शुरुआती जीवन की कहानी पर आधारित है। संगीतकार हैं अमानो मनीष। संदीप श्रिवास्तव की आवाज़ में "प्यासी है नदिया, प्यासा है जोगिया" गीत एक सुन्दर कर्णप्रिय रचना है जिसे लिखा है फ़िल्म के निर्माता-लेखक जगदीश भारती ने। गीत में एक जोगी की तुलना नदी के साथ किया गया है, दोनों ही प्यासे हैं अपने प्रेमी/प्रेमिका से मिलने के लिए। इसी तिकड़ी के दूसरे गीत "कोई चकोरवा अपने गोहार मा जगाय दिए जाए" की भी क्या बात है, एक और उत्तम रचना! प्रेम अनाड़ी की आवाज़ में "उड़ उड़ चला रे भ‍इया" लोक शैली में बना गीत एक अरसे के बाद सुनने को मिला किसी फ़िल्म में। और प्राचि दुबाले की आवाज़ में "काहे व्याकुल भये रे मनवा" दर्द के रंग में रंगी एक शास्त्रीय संगीत आधारित रचना है। कुल मिलाकर इस फ़िल्म का गीत-संगीत स्तरीय रहा। अक्षय कुमार अभिनीत ’एअरलिफ़्ट’ फ़िल्म इस साल की एक चर्चित फ़िल्म रही, पर इसके कुल चार गीतों में केवल एक गीत ही लोगों की ज़ुबाँ पर चढ़ा। अरिजीत सिंह, अमाल मलिक और तुलसी कुमार की आवाज़ों में "तू कभी सोच ना सके" एक कर्णप्रिय गीत है। कुमार के बोल और अमाल मलिक का संगीत। ’जुगनी’ फ़िल्म का संगीत पंजाबी सूफ़ीयाना शैली का रहा, पर ऐल्बम में विविधता की कमी है। संगीतकार हैं क्लिण्टन सेरेजो। सिर्फ़ एक गीत के लिए काशिफ़ साहिब का संगीत लिया गया है जिसे ए. आर. रहमान ने गाया है, पर गीत में कोई दम नहीं लगा। ’जुगनी’ का बस एक गीत जो दिल को छूता है, वह है रेखा भारद्वाज की आवाज़ में "बोलड़ियाँ"। ’क्या कूल हैं हम 3’, ’मस्तीज़ादे’, ’साला खड़ूस’, ’भल्ला ऐट हल्ला डॉट कॉम’ और ’घायल-वन्स अगेन’ जैसी फ़िल्में कब आईं कब गईं पता नहीं चला, और इनके गीत-संगीत में भी चर्चायोग्य कोई बात नहीं मिली।

फ़रवरी के प्रथम सप्ताह प्रदर्शित हुई ’सनम तेरी क़सम’ जिसके संगीतकार हैं हिमेश रेशम्मिया। हिमेश
की गीतों में मेलडी की उम्मीद की जा सकती है, इस ऐल्बम में भी वो हमें निराश नहीं करते। फ़िल्म के ना चलने से इसके गाने ज़्यादा सुने नहीं गए, पर अगर फ़िल्म हिट होती तो यकीनन इसके गाने और पायदान उपर चढ़ते। अंकित तिवारी व पलक मुछाल की आवाज़ों में फ़िल्म का शीर्षक गीत सुरीला है; हिमेश की आवाज़ में "बेवजह" एक सुन्दर फ़्युज़न गीत है जिसमें बोल और गायकी देसी है जबकि संगीत संयोजन रॉक शैली का है; अरिजीत सिंह की आवाज़ में "तेरा चेहरा" में पूरे गीत में तबले की ताल सुन्दर बन पड़ा है; श्रीरामचन्द्र और नीति मोहन के डबल वर्ज़न "हाल-ए-दिल मेरा पूछो ना सनम" में एक अजीब सी हौन्टिंग् फ़ील है जिसे सुन कर ऐसा लगता है जैसे पुनर्जनम की कहानी पर बनी किसी फ़िल्म का गीत है। कुल मिला कर हिमेश को थम्प्स-अप!! दूसरी तरफ़ ’फ़ितूर’ जिसमें अमित त्रिवेदी का संगीत है और स्वानन्द किरकिरे के बोल, कुछ ख़ास नहीं लगी। बोल सुन्दर हैं, संगीत भी ठीक-ठाक है, पर पता नहीं क्यों दिल को छू नहीं सकी, कोई नई बात नहीं लगी सिवाय ज़ेब बंगश के गाए "हमिनास्तु" गीत के जो कश्मीर के लोक-गीत पर आधारित है। फ़रवरी में "इश्क़" शब्द वाले तीन फ़िल्म प्रदर्शित हुए - ’लखनवी इश्क़’, ’डायरेक्ट इश्क़’ और ’इश्क़ फ़ॉरेवर’। राज आशू स्वरबद्ध ’लखनवी इश्क़’ में मोहम्मद इरफ़ान का गाया और नीरज गुप्ता का लिखा "तू आइना है मेरा आ मुझे मुझसे मिला" सॉफ़्ट रोमान्टिक गीतों की श्रेणी के लिए फ़िट है; सुनिधि चौहान का गाया शादी गीत "प्यारी बन्नो बैठी चुन्नी की छाँव" लोक रंग लिए सुन्दर गीत है जिसे सुनते हुए फ़िल्म ’काला पत्थर’ के गीत "मेरी दूरों से आई बारात" की याद आ जाती है। ’डायरेक्ट इश्क़’ के गाने दिल तक नहीं पहुँचे। ’इश्क़ फ़ॉरेवर’ महत्वपूर्ण फ़िल्म है संगीत की दृष्टि से क्योंकि इस फ़िल्म से वापस लौट रहे हैं नदीम सैफ़ी (नदीम-श्रवण जोड़ी के) और गीत लिखे हैं उसी समीर ने। नदीम-श्रवण के 90 के दशक के संगीत की छाया तले इस फ़िल्म के गीतों में उल्लेखनीय रचनाएँ हैं फ़िल्म का शीर्षक गीत ज़ुबीन नौटियाल और पलक मुछाल की आवाज़ों में, "इश्क़ की बारिश" (जावेद अली, श्रेया घोषाल), "बिलकुल सोचा ना" (राहत फ़तेह अली ख़ान, पलक मुछाल), और "मेरे आँखों से निकले आँसू" (राहत फ़तेह अली ख़ान, श्रेया घोषाल)।

पुलकित सम्राट और यामी गौतम अभिनीत ’सनम रे’ प्रदर्शित हुई 12 फ़रवरी। इस फ़िल्म में कई
संगीतकार हैं। मिथुन के संगीत और गायन में फ़िल्म का शीर्षक गीत "सनम रे सनम रे, तू मेरा सनम हुआ रे..." बेहद हिट हुआ है। अमाल मलिक इन दिनों सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं। ’एअरलिफ़्ट’ के उस हिट गीत के बाद इस फ़िल्म में भी "हुआ है आज पहली बार" गीत के ज़रिए काफ़ी छाये रहे। गीत अमाल, भाई अरमान और पलक मुछाल की आवाज़ों में है। जीत गांगुली के संगीत में दो गीत हैं - पहला श्रेया घोषाल का गाया "तुम बिन जिया जाये कैसे" जो चित्रा के गाए ’तुम बिन’ के शीर्षक गीत जैसा ही है करीब करीब; और दूसरा गीत है शान की आवाज़ में "छोटे छोटे तमाशे", अरसे बाद शान की आवाज़ सुन कर अच्छा लगा। कुल मिलाकर ’सनम रे’ का संगीत अच्छा माना जा सकता है, पर फ़िल्म के ना चलने से यह ऐल्बम लम्बी रेस का घोड़ा नहीं बन सका। एक और रोमान्टिक फ़िल्म ’लवशुदा’ रिलीज़ हुई 19 फ़रवरी जिसमें मिथुन का संगीत है। कुल पाँच गीतों में आतिफ़ असलम का गाया "मर जायें" ही सुनने लायक है। बाक़ी चार गीत डान्स पार्टी गीत हैं जो केवल पार्टियों की ही शान बढ़ा सकते हैं। ’लवशुदा’ के बाद आई ’लव शगुन’ जिसके गीतों में उल्लेखनीय है कुणाल गांजावाला और ॠषी सिंह का गाया "ऐ ख़ुदा शुक्रिया जो तूने दिया"। ’नीरजा’ जैसी फ़िल्म में गीतों की गुंजाइश नहीं, फिर भी इसमें चार गाने शामिल किए गए हैं प्रसून जोशी के लिखे और विशाल खुराना के स्वरबद्ध किए। उल्लेखनीय है शेखर रवजियानी की आवाज़ में क़व्वाली शैली वाला "गहरा इश्क़" और सुनिधि चौहान का गाया "ऐसा क्यों माँ"। ’धारा 302' में संगीतकार साहिल मुल्ती ख़ान ने चार गीत कम्पोज़ किए। जावेद अली की आवाज़ में सूफ़ी शैली में "ख़ुदा रहम कर" और अभीक चटर्जी की आवाज़ में दर्द भरा रोमान्टिक गीत "बेवजह" दो अच्छी रचनाएँ हैं। के. डी. सत्यम निर्देशित ’बॉलीवूड डायरीज़’ में एक नए गीतकार-संगीतकार जोड़ी नज़र आई है - गीतकार डॉ. सागर और संगीतकार विपिन पतवा। और ख़ास बात यह कि फ़िल्म के सभी चार गानें इसी जोड़ी के हैं। अरिजीत सिंह की आवाज़ में "मनवा बेहरुपिया" की धुन "तू न जाने आसपास है ख़ुदा" से मिलने के बावजूद यह गीत सुन्दर बना है। "मन का मिरगा" भी शब्दों की दृष्टि से नया प्रयोग है (हिरण को मिरगा कहा गया है)- इसके दो संस्करण हैं, पहले में मुख्य स्वर जावेद बशीर का है, दूसरे में नेहा राजपाल की मुख्य भूमिका है। "ख़्वाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए" गीत भी शब्दों और संगीत की दृष्टि से एक सुन्दर रचना है; इसके भी दो संस्करण है, पापोन और सौमेन चौधरी की आवज़ों में। प्रतिभा सिंह बाघेल का गाया "पिया की नगरी से जाने कौन आया है" भी सुनने लायक गीत है। कुल मिलाकर एक स्तरीय ऐल्बम! फ़रवरी का महीना समाप्त हुआ ’तेरे बिन लादेन - डेड ऑर अलाइव’ से, जिसके ज़रिए संगीतकार राम सम्पत और गीतकार मुन्ना धीमन वापस लौटे हैं। राम सम्पत का गाया "हम आइटम वाले हैं", या फिर अली ज़फ़र का लिखा, स्वरबद्ध किया, गाया और फ़िल्माया गया गीत "सिक्स पैक ऐब्स", या फिर अक्षय वर्मा और ईमोन क्रोसोन का लिखा और गाया "मारा गया है" में डान्स पार्टियों तक ही सीमित रही।


तो दोस्तों, ये था 2016 के प्रथम दो महीनों (जनवरी, फ़रवरी) में प्रदर्शित हिन्दी फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। अगले सप्ताह इसी स्तंभ में हम 2016 के गीतों की चर्चा जारी रखेंगे। तब तक के लिए अपने इस दोस्त सुजॉय चटर्जी को दीजिए अनुमति, नमस्कार!


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी  

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