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शम्मी जी की सुल्तान अहमद को स्थापित करने की मदद और निस्वार्थ त्याग का मूल्य सुल्तान अहमद ने चुकाया उन्हें तलाक़ देकर!


तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 17
 
शम्मी



’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक केन्द्रित है सुप्रसिद्ध अभिनेत्री शम्मी पर। 
  

धिकतर कलाकारों का संघर्ष उनके करीअर के शुरुआती समय में होता है, पर आज हम जिन कलाकार की कहानी प्रस्तुत करने जा रहे हैं, उनका संघर्ष फ़िल्म जगत में स्थापित होने के बाद शुरु होता है। आप हैं अभिनेत्री शम्मी, जिन्हें हम बहुत से फ़िल्मों व टीवी धारावाहिकों में देख चुके हैं। शम्मी को फ़िल्म जगत में प्रवेश के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा। अपने एक पारिवारिक सूत्र के ज़रिए वो फ़िल्मों में आ गईं और एक के बाद एक फ़िल्म में काम करते हुए इंडस्ट्री में स्थापित हो गईं। 1949 में यह सफ़र शुरु करते हुए वो 70 के दशक में पहुँच गईं। अब वो 40 वर्ष की आयु पर आ चुकी थीं और उन्होंने शादी करके घर-परिवार संभालने का निर्णय लिया। इसी दौरान उनकी मित्रता एक आकांक्षी निर्देशक सुल्तान अहमद से हुई, जो फ़िल्म जगत में स्थापित होने के लिए संघर्षरत थे। शम्मी की फ़िल्म जगत में उस समय काफ़ी जान-पहचान थी, उन्हें लोग इज़्ज़त करते थे। इस वजह से सुल्तान अहमद को इंडस्ट्री में काम दिलाने में शम्मी जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। ’प्यार का रिश्ता’ (’73), 'हीरा’ (’73), ’गंगा की सौगंध’ ('78) जैसी फ़िल्मों में सुल्तान अहमद को दाख़िला शम्मी जी की वजह से ही मिली। शम्मी जी के दोस्त राजेश खन्ना, सुनिल दत्त और आशा पारेख जैसे नामी अभिनेता सुल्तान अहमद की फ़िल्मों में काम करने के लिए राज़ी हो गए। शम्मी और सुल्तान अहमद भी एक दूसरे के क़रीब आने लगे और दोनों ने शादी कर ली। शम्मी ने फिर सुल्तान अहमद की फ़िल्मों के बाहर अभिनय करना भी बन्द कर दिया और परिवार की तरफ़ ध्यान देने लगीं। शादी के सात साल बाद भी शम्मी माँ नहीं बन सकीं। इसी दौरान शम्मी और सुल्तान अहमद ने एक घर ख़रीदने का निर्णय लिया। हालाँकि सुल्तान अहमद ने यह मकान शम्मी जी के नाम से ही ख़रीदना चाहा, पर शम्मी जी ने यह कहा कि इसे उनकी ननद के नाम ख़रीदना चाहिए क्योंकि उनकी ननद के पास न कोई नौकरी थी और न कोई सहारा। कोई औरत अपने पैसों से ख़रीदा हुआ घर अपनी ननद के नाम कर दे, ऐसा आज तक किसने सुना है कहीं!! ऐसी थीं शम्मी जी। उधर सुल्तान अहमद के भाई का परिवार भी उनके साथ ही रहता था। क्योंकि भाई की पत्नी अशिक्षित थीं, इसलिए शम्मी जी उनके बच्चे का ख़याल रखती थीं और उन्होंने उस बच्चे का दाख़िला शिमला के एक अच्छे स्कूल में करवाया। इस तरह से शम्मी जी ने उस परिवार की निस्वार्थ सेवा की।

शम्मी जी की सुल्तान अहमद को फ़िल्म जगत में स्थापित करने की मदद तथा उनके परिवार के लिए किया गया निस्वार्थ त्याग और सेवा का मूल्य सुल्तान अहमद ने चुकाया उन्हें तलाक़ देकर। सुल्तान अहमद का एक दूसरी औरत से संबंध स्थापित हुआ जिस वजह से शम्मी जी के साथ रिश्ते में दरार पड़ गई। अपने आत्मसम्मान को बरक़रार रखते हुए शम्मी जी एक दिन साल 1980 में अपना घर, अपना पैसा, अपनी गाड़ी, अपना परिवार, सब कुछ छोड़ कर अपनी माँ के पास अपने पुराने घर में चली आईं। इस घटना की वजह से सुल्तान अहमद पर फ़िल्म जगत की कई बड़ी हस्तियाँ नाराज़ हुईं जिनमें नरगिस और सुनिल दत्त शामिल थे। अब शम्मी जी के लिए फ़िल्म जगत में दूसरी पारी शुरु करने की बारी थी अपने आप को दुबारा अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए। फ़िल्म जगत में लोग उनकी इज़्ज़त करते थे, सुनिल दत्त के सहयोग से आठ दिनों के अन्दर उन्हें 'The Burning Train' में एक रोल दिलवाया। राजेश खन्ना ने भी ’रेड रोज़’, ’आँचल’, ’कुदरत’, ’आवारा बाप’ और ’स्वर्ग’ जैसी फ़िल्मों में उन्हें रोल दिलवाये जिस वजह से वो एक बार फिर से सबकी नज़र में आ गईं और फिर एक बार उनकी गाड़ी चल पड़ी। इस सफलता को देखते हुए शम्मी जी ने ’पिघलता आसमान’ नामक एक फ़िल्म बनाने की सोची। राजेश खन्ना नायक थे और उन्हीं के ज़रिए इसमाइल श्रॉफ़ निर्देशक चुने गए। पर खन्ना और श्रॉफ़ के बीच किसी मतभेद की वजह से खन्ना इस फ़िल्म से निकल गए। शशि कपूर ने शम्मी जी की ख़ातिर फ़िल्म को स्वीकार कर लिया पर इसमाइल श्रॉफ़ अपनी आदतों से बाज़ नहीं आए। अन्त में निर्देशन का कोई तजुर्बा न होते हुए भी शम्मी जी को ख़ुद इस फ़िल्म को निर्देशित करना पड़ा, और फ़िल्म बुरी तरह से पिट गई, और शम्मी जी का सारा पैसा डूब गया। वो फिर एक बार ज़ीरो पर पहुँच गईं।

अब उनकी तीसरी पारी के शुरु होने की बारी थी। उनके करीअर को फिर एक बार पुनर्जीवित करने के लिए राजेश खन्ना ने दूरदर्शन के कुछ कार्यक्रमों को प्रोड्युस करने के लिए शम्मी जी का नाम रेकमेण्ड कर दिया। टेलीविज़न जगत में वो बेहद लोकप्रिय हो उठीं। ’देख भाई देख’, ’ज़बान सम्भाल के’, ’श्रीमान श्रीमती’, ’कभी ये कभी वो’ और ’फ़िल्मी चक्कर’ जैसे धारावाहिकों ने कामयाबी के झंडे गाढ़ दिए। और इस कामयाबी से वो फिर एक बार फ़िल्मों में भी नज़र आने लगीं। ’कूली नंबर वन’, ’हम’, ’मर्दों वाली बात’, ’गुरुदेव’, ’गोपी किशन’, ’हम साथ-साथ हैं’ और ’इम्तिहान’ जैसी फ़िल्में इस दौर की रहीं। टीवी और इन फ़िल्मों में अभिनय की वजह से उनकी आर्थिक स्थिति सुधर गई और आजकल 86 वर्ष की आयु में भी वो सक्रीय हैं और फ़िल्मों में अभिनय करना चाहती हैं। 83 वर्ष की आयु में वो ’शिरीं फ़रहाद की निकल पड़ी’ फ़िल्म में नज़र आई थीं। ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की तरफ़ से हम शम्मी जी की सहनशीलता, संघर्ष करने के जसबे और हर बार अपने आप को मुसीबतों से बाहर निकालने के दृढ़ संकल्प के लिए सलाम करते हैं और उनकी दीर्घ आयु की कामना करते हैं। शम्मी जी, तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी!!




आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी, हमे अवश्य लिखिए। हमारा यह स्तम्भ प्रत्येक माह के दूसरे शनिवार को प्रकाशित होता है। यदि आपके पास भी इस प्रकार की किसी घटना की जानकारी हो तो हमें पर अपने पूरे परिचय के साथ cine.paheli@yahoo.com मेल कर दें। हम उसे आपके नाम के साथ प्रकाशित करने का प्रयास करेंगे। आप अपने सुझाव भी ऊपर दिये गए ई-मेल पर भेज सकते हैं। आज बस इतना ही। अगले शनिवार को फिर आपसे भेंट होगी। तब तक के लिए नमस्कार। 

प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी  



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