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Showing posts from 2016

अलविदा 2016 - ’वर्षान्त विशेष’ में 2016 के फ़िल्म-संगीत का अन्तिम भाग

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला 2016 का फ़िल्म-संगीत   भाग-5 रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। हम इन दिनों हर शनिवार आपके लिए लेकर आ रहे हैं वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। पिछले सप्ताह तक हम इस श्रृंखला में जनवरी से लेकर सितंबर तक का सफ़र तय कर चुके हैं। और आज हम आ पहुँचे हैं अपनी मंज़िल पर। तो आइए आज इसकी पाँचवीं और अन्तिम कड़ी में चर्चा करें उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए अक्टुबर, नवंबर और दिसंबर के महीनों में। गु लज़ार और शंकर-अहसान-लॉय जब किसी फ़िल्म में साथ में काम करते हैं तो जादू तो चल ही जाता है। 7 अक्टुबर को प्रदर्शित फ़िल्म ’मिर्ज़्या’ में भी वही जाद

जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है.. "मीर" के एकतरफ़ा प्यार की कसक और हरिहरण की आवाज़ 'कहकशाँ’ की अन्तिम कड़ी में

कहकशाँ - 27 (अंतिम कड़ी) मीर तक़ी मीर की ग़ज़ल, हरिहरण की आवाज़    "पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों

"अभी भी ग़ज़ल के कद्रदान बहुत हैं, हमें नाउम्मीद नहीं होना चाहिए" - चन्दन दास : एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है  एपिसोड - 43 नववर्ष विशेष  दोस्तों एक और साल अपने पंख समेट कर उड़ जाने की तैयारी में है, नया साल अभी दहलीज़ पर ही खड़ा है, ऐसे में इस जाते हुए साल के खूबसूरत लम्हों को याद करने और उनके लिए शुक्रगुजार होने का मौसम है, और ऐसे में साथ मिला जाए कुछ जादू भरी ग़ज़लों का तो सोने पे सुहागा, ग़ज़ल गायिकी की बात हो और चन्दन दास का जिक्र न आये ये तो संभव ही नहीं. आवाज़ और अदायगी में इतनी सच्चाई बहुत कम कलाकारों को नसीब हुई है, आईये साल २०१६ के अपने इस अंतिम एपिसोड में आज रूबरू होते हैं, चन्दन दास जी से. बस प्ले का बटन दबाएँ और मौसिकी के इस जादूगर से हुई हमारी इस दिलचस्प बातचीत का आनंद लें.... ये एपिसोड आपको कैसा लगा, अपने विचार आप 09811036346 पर व्हाट्सएप भी कर हम तक पहुंचा सकते हैं, आपकी टिप्पणियां हमें प्रेरित भी करेगीं और हमारा मार्गदर्शन भी....इंतज़ार रहेगा. एक मुलाकात ज़रूरी है के इस एपिसोड के प्रायोजक थे अमेजोन डॉट कॉम, अमोज़ोन पर अब आप खरीद सकते हैं, ये प्रेरणादायक पुस्तक, जिसने बहुत से पाठकों की ज़िन्दगी बदल दी है, खरीदने के लिए

वर्षान्त विशेष - 2016 का फ़िल्म-संगीत (भाग-4)

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला 2016 का फ़िल्म-संगीत   भाग-4 रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। हम इन दिनों हर शनिवार आपके लिए लेकर आ रहे हैं वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। अब तक इस श्रृंखला में हमने वर्ष के प्रथमार्ध का सफ़र तय कर लिया है, और आज से हम इसके द्वितीयार्ध का सफ़र शुरु करेंगे। तो आइए आज इसकी चौथी कड़ी में चर्चा करें उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों में। भ ले 1990 का दौर समाप्त हो चुका हो, पर इस दौर में भी कभी-कभार कुछ फ़िल्में ऐसी बन रही हैं जिनके गीत-संगीत में 90 के दशक की छाप मिलती है। जुलाई के शुरुआती सप्ताह में

राग भैरवी : SWARGOSHTHI – 298 : RAG BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 298 में आज नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 11 : 98वें जन्मदिवस पर स्वरांजलि “दिया ना बुझे री आज हमारा...” नौशाद : जन्मतिथि - 25 दिसम्बर, 1919   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे राग भैरवी पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला में हम भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। श्रृंखला की इस समापन कड़ी का प्रसारण हम आज 25 दिसम्बर को नौशाद अली की 98वीं जयन्ती के अवसर पर कर रहे हैं और तमाम संगीत-प्रेमियों की ओर से स्वरांजलि अर्पित करते हैं। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार म