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रंगोत्सव पर सुनिए चतुरंग : SWARGOSHTHI – 209 : CHATURANG



‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी पाठकों / श्रोताओं को रंगोत्सव के पर्व पर हार्दिक मंगलकामना



 
स्वरगोष्ठी – 209 में आज

भारतीय संगीत शैलियों का परिचय : 7 : चतुरंग

संगीत के चार अलंकरणों से सुसज्जित चतुरंग






‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ की एक और नवीन कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पाठकों और श्रोताओं के अनुरोध पर आरम्भ की गई इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत हम भारतीय संगीत की उन परम्परागत शैलियों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे बीच उपस्थित हैं। भारतीय संगीत की एक समृद्ध परम्परा है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक इस संगीत-धारा में अनेकानेक धाराओं का संयोग हुआ। इनमें से भारतीय संगीत के मौलिक सिद्धान्तों के अनुकूल जो धाराएँ थीं उन्हें स्वीकृति मिली और वह आज भी एक संगीत शैली के रूप स्थापित है और उनका उत्तरोत्तर विकास भी हुआ। विपरीत धाराएँ स्वतः नष्ट भी हो गईं। पिछली कड़ी से हमने भारतीय संगीत की प्रचलित खयाल शैली के अन्तर्गत ‘तराना’ गायकी का सोदाहरण परिचय प्रस्तुत किया था। आज के अंक में हम खयाल शैली के अन्तर्गत गाये जाने वाले ‘चतुरंग’ गीतों पर चर्चा करेंगे। सुप्रसिद्ध गायक पण्डित जसराज का राग श्याम कल्याण में निबद्ध एक चतुरंग हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके अलावा वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘दिल ही तो है’ का राग भैरवी पर आधारित एक गीत भी सुनवा रहे हैं, जिसमें पार्श्वगायक मन्ना डे ने तराना और चतुरंग का आकर्षक प्रयोग किया था। 


ठारहवीं शताब्दी में सुल्तान मुहम्मद शाह रँगीले के दरबारी संगीतज्ञ नियामत खाँ ‘सदारंग’ द्वारा शास्त्रीय संगीत की एक शैली के रूप में विकसित और स्थापित खयाल शैली आज की सर्वाधिक लोकप्रिय शैली है। सदारंग की खयाल रचनाएँ अनेक पीढ़ियों से हस्तान्तरित होते हुए आज भी प्रचलित हैं। सदारंग तानसेन के वंशज थे। उनकी और उनके वंशजों की गायकी ध्रुपद शैली की थी। खयाल शैली पर ध्रुपद का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। खयाल शैली की तुलना जब ध्रुपद से की जाती है तो पहला अन्तर इसके साहित्य में परिलक्षित होता है। अधिकतर ध्रुपद रचनाओं के साहित्य में आध्यात्मिक भाव प्रमुख होता है, जबकि खयाल रचनाओं में श्रृंगार रस और लौकिक भाव की प्रधानता होती है। खयाल और ध्रुपद के साहित्य की भाषा में भी यह अन्तर स्पष्ट हो जाता है। श्रृंगार रस की अधिकता और चमत्कारपूर्ण दरबारी गायकी के कारण खयाल को अनेक अलंकारों से सजाया जाता है। खयाल शैली में विभिन्न प्रकार के तानों का प्रयोग किया जाता है। इस शैली में विविध अलंकरणों की प्रवृत्ति के कारण तराना, रागमाला, तालमाला, चतुरंग, त्रिवट आदि गायकी का विकास हुआ। पिछले अंक में हमने तराना शैली पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम ‘चतुरंग’ की चर्चा करेंगे। चतुरंग गायकी का वह रागबद्ध और तालबद्ध प्रकार है, जिसमें संगीत के चार अंग एक ही रचना में शामिल होते हैं। मध्यकाल के संगीत विद्वान मतंग द्वारा एक ऐसे प्रबन्ध गायन का प्रतिपादन किया गया था, जिसके अन्तर्गत एक रचना में चार खण्डों को चार रागों, चार ताल और चार भिन्न भाषाओं के पदों में गायन किया जाता था। वर्तमान में प्रचलित रागमाला, तालमाला और चतुरंग की गायकी इसी शैली के विकसित रूप हैं। वर्तमान चतुरंग में राग और ताल एक-एक प्रकार के ही होते हैं। इसके साथ ही चतुरंग में पद का साहित्य, तराने के बोल, सरगम और तबला या मृदंग के बोलों का एक क्रम में संयोजन होता है। ‘संगीत रत्नाकर’ नामक ग्रन्थ में भी एक ऐसी ही गायकी का उल्लेख है। संगीतज्ञ पण्डित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने भी अनेक उत्कृष्ट चतुरंग रचनाएँ की थी। अब हम आपको वरिष्ठ संगीतज्ञ पण्डित जसराज के स्वरों में राग श्याम कल्याण में निबद्ध चतुरंग सुनवा रहे हैं।


चतुरंग : राग श्याम कल्याण : पण्डित जसराज : द्रुत तीनताल





फिल्मों में चतुरंग का प्रयोग कुछेक संगीतकारों ने ही किया है। 1963 में संगीतकार रोशन को एक अवसर मिला, अपना श्रेष्ठतम संगीत देने का। फिल्म थी 'दिल ही तो है', जिसमे राज कपूर और नूतन नायक-नायिका थे। यह गीत राज कपूर पर फिल्माया गया था। फिल्म के प्रसंग के अनुसार एक संगीत मंच पर एक नृत्यांगना के साथ बहुत बड़े उस्ताद को गायन संगति करनी थी। अचानक उस्ताद के न आ पाने की सूचना मिलती है। आनन-फानन में चाँद (राज कपूर) को दाढ़ी-मूंछ लगा कर मंच पर बैठा दिया जाता है। रोशन ने इस प्रसंग के लिए गीत का जो संगीत रचा, उसमे उपशास्त्रीय संगीत की इतनी सारी शैलियाँ डाल दीं कि उस समय के किसी फ़िल्मी पार्श्वगायक के लिए बेहद मुश्किल काम था। मन्ना डे ने इस चुनौती को स्वीकार किया और गीत ‘लागा चुनरी में दाग, छुपाऊं कैसे....’ को अपना स्वर देकर गीत को अमर बना दिया। इस गीत के उत्तरार्द्ध में राग भैरवी का तराना शामिल किया गया है। इसी तराना के बीच में 'पखावज के बोल', 'सरगम', नृत्य के बोल', 'कवित्त', 'टुकड़े', यहाँ तक कि तराना के बीच में हल्का सा ध्रुवपद का अंश भी इस गीत में शामिल है। संगीत के इतने सारे अंग मात्र सवा पाँच मिनट के गीत में डाले गए हैं। जिस गीत में संगीत के तीन अंग होते हैं, उन्हें 'त्रिवट' और जिनमें चार अंग होते हैं, उन्हें 'चतुरंग' कहा जाता है। मन्ना डे के गाये इस गीत को फिल्म संगीत में चतुरंग के प्रयोग का एक श्रेष्ठ उदाहरण माना जा सकता है। यह गीत भारतीय संगीत में 'सदासुहागिन राग' के विशेषण से पहचाने जाने वाले राग -"भैरवी" पर आधारित है। कुछ विद्वान् इसे राग "सिन्धु भैरवी" पर आधारित मानते हैं, किन्तु जाने-माने संगीतज्ञ पं. रामनारायण ने इस गीत को "भैरवी" आधारित माना है। गीत की एक विशेषता यह भी है कि गीतकार साहिर लुधियानवी ने कबीर के एक निर्गुण पद की भावभूमि पर इसे लिखा है। आइए इस कालजयी गीत को सुनते हैं। आप यह गीत सुनिए और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति 


राग भैरवी : ‘लागा चुनरी में दाग छुपाऊँ कैसे...’ : मन्ना डे : फिल्म – दिल ही तो है







संगीत पहेली


‘स्वरगोष्ठी’ के 209वें अंक की पहेली में आज हम आपको कण्ठ संगीत का एक अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से कोई दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 210 के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – भारतीय संगीत की किस वरिष्ठ गायिका की आवाज़ है? विदुषी गायिका का नाम बताइए।

2 – संगीत के इस अंश में किस राग का आभास हो रहा है? राग का नाम बताइए।

3 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।

आप उपरोक्त तीन में से किसी दो प्रश्न का उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 7 मार्च, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 211वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के विजेता



‘स्वरगोष्ठी’ की 207वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको विदुषी परवीन सुलताना की आवाज़ में राग हंसध्वनि के तराना का एक अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछे थे। आपको इनमे से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। यह हमारे लिए अत्यन्त सुखद था कि सभी प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- तराना, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- राग हंसध्वनि और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- द्रुत तीनताल। इस बार की पहेली में पूछे गए प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


अपनी बात



मित्रो, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हमारी लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ जारी है। श्रृंखला के आज के अंक से हमने आपसे चतुरंग गीत पर चर्चा की। इस श्रृंखला में आप भी योगदान कर सकते हैं। भारतीय संगीत की किसी शैली पर अपना परिचयात्मक आलेख अपने नाम और परिचय के साथ हमारे ई-मेल पते पर भेज दें। आप अपनी फरमाइश या अपनी पसन्द का आडियो क्लिप भी हमें भेज सकते हैं। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। अगले अंक भी हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।

प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 



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