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"दग़ा देके चले गए..." - सितारा देवी को श्रद्धा-सुमन, उन्हीं के गाये इस गीत के ज़रिए



एक गीत सौ कहानियाँ - 46
 
सितारा देवी का स्मरण करती एक विशेष प्रस्तुति 

दग़ा देके चले गए...



 
 
'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 46-वीं कड़ी में आज हम श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं कथक दिवा सितारा देवी को उन्हीं के गाये और उन्हीं पर फ़िल्माए गए फिल्म 'आज का हिन्दुस्तान' के गीत "दग़ा देकर चले गए..." के माध्यम से। 



25 नवंबर 2014 को कथक नृत्य के आकाश का सबसे रोशन 'सितारा' हमेशा हमेशा के लिए अस्त हो गया। कथक नृत्यांगना सितारा देवी नहीं रहीं। कुछ कलाकार ऐसे हुए हैं जिनके नाम के साथ कोई कलाविधा ऐसी घुल-मिल गई कि वे एक दूसरे का पर्याय ही बन गए। सितारा देवी और कथक नृत्य का कुछ ऐसा ही रिश्ता रहा। निस्संदेह सितारा देवी का कथक में जो योगदान है, वह अविस्मरणीय है, अद्वितीय है, तभी तो उन्होंने पद्मविभूषण स्वीकार करने से मना कर दिया था क्योंकि उनके हिसाब से वो भारतरत्न की हक़दार रही हैं। यह तो सभी जानते हैं कि सितारा देवी का कथक नृत्य जगत में किस तरह का योगदान रहा है, पर शायद कम ही लोग जानते होंगे कि सितारा देवी ने बहुत सारी हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय भी किया है, नृत्य भी किए हैं, और यही नहीं अपने उपर फ़िल्माए गीतों को ख़ुद गाया भी है। यह 30 और 40 के दशकों का दौर था। उस समय सितारा देवी अपनी दो बड़ी बहनों - अलकनन्दा और तारा देवी - की तरह स्टेज पर नृत्य करने लगी थीं और मशहूर भी हो गई थीं। एक बार फ़िल्म निर्देशक निरंजन शर्मा 'उषा हरण' नामक फ़िल्म बना रहे थे जिसमें सुल्ताना नायिका थीं और एक अन्य चरित्र के लिए वो एक ऐसी नई लड़की की तलाश कर रहे थे जिसे शास्त्रीय नृत्य का ज्ञान हो। यह तलाश उन्हें बनारस खींच लाया। सितारा देवी के नृत्य को देखते ही निरंजन शर्मा को वो पसन्द आ गईं और 'उषा हरण' में अभिनय करने हेतु सितारा देवी आ गईं बम्बई नगरी, और इस तरह से वर्ष 1933 से शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र। फिर इसके बाद अगले दो दशकों तक इन्होंने जम कर फ़िल्मों में अभिनय किया, गीत गाये और नृत्य तो किए ही। 40 के दशक की बहुत सी फ़िल्मों में वो मुख्य नायिका भी बनीं। 50 के दशक में उन्होंने चरित्र अभिनेत्री के रूप में फ़िल्मों में नृत्य करती नज़र आईं। महबूब ख़ान की महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'मदर इण्डिया' में मशहूर गीत "होली आई रे कन्हाई..." में उनका नृत्य सभी ने देखा। पर अफ़सोस कि यही उनकी अभिनीत आख़िरी फ़िल्म रही। इसके बाद उन्होंने फ़िल्म जगत से किनारा कर लिया और कथक नृत्य की सेवा में ही अपना पूरा ध्यान लगा दिया।

"दग़ा देके चले गए बलमवा जमुना के पुल पार..." 1940 की फ़िल्म 'आज का हिन्दुस्तान' का गीत है जिसे सितारा देवी ने कान्तिलाल के साथ मिल कर गाया था और इन्हीं दोनों पर यह फ़िल्माया भी गया था। दीनानाथ मधोक का लिखा यह गीत है, जिसके संगीतकार थे खेमचन्द्र प्रकाश। इस गीत को तो लोगों ने याद नहीं रखा, पर कुछ हद तक यह गीत सितारा देवी के जीवन के एक पहलू की तरफ़ इशारा ज़रूर करता है। 1944 में सितारा देवी ने फ़िल्मकार के. आसिफ़ से प्रेम-विवाह किया, पर कुछ ही सालों में दोनों के बीच मतभेद उत्पन्न होने लगा। 'मदर इण्डिया' के बाद फ़िल्म-लाइन को त्यागने का विचार भी इसी मतभेद के कारण उत्पन्न हुआ था। सितारा देवी के जीवनकाल में सुप्रसिद्ध फिल्म इतिहासकार शिशिर कृष्ण शर्मा को दिए एक साक्षात्कार में सितारा देवी ने बताया था- "वैसे देखा जाए तो के. आसिफ़ हर तरफ़ से एक शरीफ़, होनहार और तरक्कीपसन्द इंसान थे और मेरी बहुत अच्छी तरह से देखभाल भी करते थे, पर उनकी एक बात जो मुझे अच्छी नहीं लगती थी, वह था उनका रंगीला मिज़ाज। हमारी शादी के दो-तीन साल बाद ही उन्होने लाहौर जाकर दूसरी शादी कर ली। 1950 में उन्होंने 'मुग़ल-ए-आज़म' की नीव रखी और उस फ़िल्म में अभिनय कर रही निगार सुल्ताना से शादी कर ली; यह उनकी तीसरी शादी थी। और मैं, जो उनकी कानूनी पत्नी थी, मुझे उनसे अलग होना पड़ा। 1958 में मैं ईस्ट अफ़्रीका गई प्रोग्राम करने के लिए। वहाँ हम जिस गुजराती परिवार के यहाँ ठहरे हुए थे, उसी परिवार के प्रताप बारोट से हमारी दोस्ती हुई जो बाद में विवाह में बदल गई। प्रताप बारोट गायिका कमल बारोट और निर्देशक चन्द्रा बारोट के भाई थे। 1970 में मेरा और प्रताप का तलाक़ हो गया। हमारा एकलौता बेटा रणजीत बारोट मुम्बई में रहता है और संगीत जगत में एक जाना-माना नाम है। ख़ैर, के. आसिफ़ अपनी तीसरी शादी से भी सन्तुष्ट नहीं हुए और 1960 में गुरुदत्त को लेकर 'लव ऐण्ड गॉड' फ़िल्म के निर्माण के दौरान दिलीप कुमार की छोटी बहन अख्तर से शादी कर डाली जो उनकी चौथी शादी थी। 9 मार्च 1971 के दिन बम्बई के शनमुखानन्द हॉल में प्रोग्राम करने के बाद जब रात को 2 बजे घर पहुँची तो ख़बर मिली कि के. आसिफ़ अब इस दुनिया में नहीं रहे। उस वक़्त वो सिर्फ़ 48 साल के थे। उनकी मौत के बाद उनकी कानूनी पत्नी होने की हैसियत से मैंने ही हिन्दू परम्परा के अनुसार शय्यादान आदि शेष कार्य सम्पन्न किए।" इस तरह से दग़ा देके चले जाने वाले के. आसिफ़ को सितारा देवी ने अपने दिल से कभी नहीं दूर किया और एक पत्नी का फ़र्ज़ अन्तिम समय तक निभाया। और आज सितारा देवी भी इस दुनिया को दग़ा देकर हमेशा-हमेशा के लिए चली गईं, और अपने पीछे छोड़ गईं एक पूरा का पूरा एक कला संस्थान जो आने वाली कई पीढ़ियों को नृत्य सिखाता रहेगा। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की तरफ़ से सितारा देवी को नमन।

फिल्म - आज का हिन्दुस्तान : 'दगा देके चले गए हो जमुना के उस पार...' : स्वर- सितारा देवी और कान्तिलाल : संगीत - खेमचन्द्र प्रकाश : गीत - दीनानाथ मधोक 



'एक गीत सौ कहानियाँ' के इस अंक में ब्लॉग, 'बीते हुए दिन' से सन्दर्भ लिया है। इसके लिए हम इस ब्लॉग और 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के मित्र शिशिर कृष्ण शर्मा के प्रति आभार प्रकट करते हैं। अब आप भी 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तम्भ के वाहक बन सकते हैं। अगर आपके पास भी किसी गीत से जुड़ी दिलचस्प बातें हैं, उनके बनने की कहानियाँ उपलब्ध हैं, तो आप हमें भेज सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि आप आलेख के रूप में ही भेजें, आप जिस रूप में चाहे उस रूप में जानकारी हम तक पहुँचा सकते हैं। हम उसे आलेख के रूप में आप ही के नाम के साथ इसी स्तम्भ में प्रकाशित करेंगे। आप हमें ईमेल cine.paheli@yahoo.com के पते पर भेजें।  


खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र




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