Skip to main content

यो यो और मीका भी बने मस्त कलंदर के दीवाने

ताज़ा सुर ताल 2014-11

दोस्तों नए गीतों की दुनिया में एक बार फिर से स्वागत है आप सबका। आज सबसे पहले बात हनी सिंह, जी हाँ वही 'यो यो' वाले।  यूं तो भारतीय श्रोताओं के लिए रैप गायन शैली को बहुत पहले ही बाबा सेहगल सरीखे गायक परोस चुके हैं, पर जो कामियाबी यो यो ने हासिल की उसका कोई सानी नहीं।  हनी सिंह ने बहुत से नए पंजाबी गायकों को हिट गीत दिए गाने के लिए और उनपर अपने रैप का जो तड़का लगाया उसे सुन युवा श्रोता झूम उठे।  उनके रैप के शब्द भी ऐसे जैसे इस दौर के युवाओं की बात हो रही हो बिना अलग लाग लपेट।  सबसे अच्छी खासियत उनकी ये रही कि समय के साथ साथ वो अपने संगीत में भी नए प्रयोग लाते रहे।  लुंगी डांस  के लिए रजनीकान्त का अंदाज़ चुरा लिया तो कभी गुलज़ार साहब के क्लास्सिक तेरे बिना ज़िन्दगी से  को रैप के सांचे में ढाल लिया।  उनका ताज़ा प्रयोग रहा हिंदी फ़िल्मी संगीत के आज के सबसे हिट गायक मिका सिंह के साथ जुगलबंदी करना। मिका और यो यो साथ आये हैं एक सूफियाना गीत के साथ. वैसे इस गीत दमा दम मस्त कलंदर का भी इतिहास पुराना है।  मूल रूप से अमीर खुसरो के रचे  इस इबादत को बाबा बुल्लेशाह ने अपने ख़ास अंदाज़ से संवारा। पीर शाहबाज़ कलंदर को समर्पित इस कव्वाली को नुसरत साहब, नूर जहाँ, आबिदा परवीन से लेकर रुना लैला तक ने अपने अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में गाकर लोकप्रियता के चरम तक पहुंचाया। यहाँ तक कि रॉक  बैंड जूनून और आज के दौर के शंकर महादेवन और रेखा भारद्वाज भी इस कव्वाली की रूहानियत से बच नहीं पाये। मिका और हनी सिंह के गाये इस ताज़ा संस्करण में भी दोनों कलाकारों ने अपना सबसे बहतरीन काम किया है।  संगीत संयोजन भी उच्च स्तर  का है।  लीजिये आप भी सुनिये और झूमिए झूलेलाल का नाम लेकर 



गीतकार कौसर मुनीर का लिखा सय्यारा  गीत यक़ीनन आज भी श्रोताओं को उतना ही लुभाता है।  बहुत दिनों के बाद उनका लिखा एक नया गीत सामने आया है।  कौसर के शब्दों में एक ख़ास किस्म की ताज़गी मिलती है हर बार।  प्रस्तुत गीत को स्वरबद्ध किया है जीत गांगुली ने जो आशिकी  के बाद इन दिनों दिन बा दिन अपने  काम को निखारते जा रहे हैं। अरिजीत सिंह की आवाज़ का वही जादू भरा असर है इस रोमांटिक गीत में जो है फ़िल्म यंगिस्तान  से. सुनिये और दीजिये इज़ाज़त, मिलते हैं अगले सप्ताह।  
  

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की