Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2013

अतिथि संगीतज्ञ का पृष्ठ : पण्डित श्रीकुमार मिश्र

स्वरगोष्ठी – 114 में आज अतिथि संगीतकार का पृष्ठ स्वर एक राग अनेक   ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के इस विशेष अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी संगीत-प्रेमी पाठकों और श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, आज का यह अंक एक विशेष अंक है। विशेष इसलिए कि यह अंक संगीत-जगत के एक जाने-माने संगीतज्ञ प्रस्तुत कर रहे हैं। दरअसल इस वर्ष के कार्यक्रमों की समय-सारिणी तैयार करते समय ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ ने माह के पाँचवें रविवार की ‘स्वरगोष्ठी’ किसी संगीतज्ञ लेखक से प्रस्तुत कराने का निश्चय किया था। आज माह का पाँचवाँ रविवार है और आपके लिए आज का यह अंक देश के जाने-माने इसराज व मयूर वीणा-वादक और संगीत-शिक्षक पण्डित श्रीकुमार मिश्र प्रस्तुत कर रहे है। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक के लिए उन्होने तीन ऐसे राग- पूरिया, सोहनी और मारवा का चयन किया है, जिनमें समान स्वरों का प्रयोग किया जाता है। लीजिए, श्रीकुमार जी प्रस्तुत कर रहे हैं, इन तीनों रागों में समानता और कुछ अन्तर की चर्चा, जिनसे इन रागों में और उनकी प्रवृत्ति में अन्तर आ जाता है।  ‘रे डियो प्लेबैक इण्ड

स्वाधीनता संग्राम और फ़िल्मी गीत (भाग-4)

विशेष अंक : भाग 4 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में फिल्म संगीत की भूमिका   'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार! मित्रों, इन दिनों हर शनिवार को आप हमारी विशेष श्रृंखला 'भारत के स्वाधीनता संग्राम में फ़िल्म-संगीत की भूमिका' पढ़ रहे हैं। पिछले सप्ताह हमने इस विशेष श्रृंखला का तीसरा भाग प्रस्तुत किया था। आज प्रस्तुत है, इस श्रृंखला का चौथा व अन्तिम भाग। अब तक आपने पढ़ा - पहला भाग द्रितीय भाग तृतीय भाग गतांक से आगे... फ़िल्म  ज गत के संगीतकारों में एक उल्लेखनीय नाम चित्रगुप्त का भी रहा है। उनका संगीतकार बनने का सपना तब पूरा हुआ जब ‘ न्यू दीपक पिक्चर्स ’ के रमणीक वैद्य ने 1946 की दो स्टण्ट फ़िल्मों में उन्हें संगीत देने का निमन्त्रण दिया। ये फ़िल्में थीं ‘ लेडी रॉबिनहुड ’ और ‘ तूफ़ान क्वीन ’ । इन दो फ़िल्मों के गीतकार थे क्रम से ए . करीम और श्याम हिन्दी। दोनों फ़िल्मों के मुख्य कलाकार लगभग एक ही थे – नाडिया , प्रकाश , शान्ता पटेल , अनन्त प्रभु प्रमुख। ‘ लेडी रॉबिनहुड ’ में एक देशभक्ति गीत था “ भारत की नारी जाग उठी

तन रंग लो जी आज मन रंग लो... होली के गीतों से तन मन भीगोने वाला गीतकार

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 40 कारवाँ सिने-संगीत का  होली के हजारों रंग भरने वाले गीतकार शकील बदायूनी के सुपुत्र जावेद बदायूनी से बातचीत ‘लाई है हज़ारों रंग होली...’ भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का रस-रंग के उल्लासपूर्ण परिवेश में हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और इस दिन हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ स्तम्भ के अन्तर्गत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख करते हैं। परन्तु आज होली पर्व के विशेष अवसर के कारण हम दो वर्ष पूर्व सुजॉय चटर्जी द्वारा सुप्रसिद्ध गीतकार शकील बदायूनी के बेटे जावेद बदायूनी से की गई बातचीत का पुनर्प्रकाशन कर रहे हैं। आप जानते ही हैं कि शकील बदायूनी ने फिल्मों में कई लोकप्रिय होली गीत रचे थे, जो आज भी गाये-गुनगुनाए जाते हैं।  हो ली है!!! 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के दोस्तों, नमस्कार, और आप सभी को रंग

राग रंग तरंग, होली की उमंग

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  राग आधारित होली के गीत  स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

युवाओं को एक नए भारत की सृष्टि के लिए आन्दोलित करता एक संगीतमय प्रयास

प्लेबैक वाणी -38 - संगीत समीक्षा - बीट ऑफ इंडियन यूथ संगीत केवल मनोरंजन की वस्तु नहीं है। इसका मूल उद्देश्य इंसान के मनोभावों को एक कैनवास, एक प्लेटफॉर्म देना है। इसकी कोशिश यह होनी चाहिए कि समय-समय पर डूबती उम्मीदों को तिनके भर का हीं सही लेकिन सहारा मिलता रहे। आज अपने देश में हालात यह हैं कि हर इंसान या तो डरा हुआ है या बुझा हुआ है। युवा पीढी रास्ते में या तो भटक रही है या रास्ते को हीं दुलाती मार रही है। इस पीढी की आँखें खोलने के लिए संगीत की कमान थामे कुछ फ़नकार आगे आए हैं। उन्हीं फनकारों की संगीतमय कोशिश का नाम है ’बीट ऑफ इंडियन यूथ’। इस एलबम में कुल ९ भाषाओँ के १३ गाने हैं, जो कि एक विश्व रिकॉर्ड है. एल्बम गिनिस बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने की कगार पर है. एलबम की एक और प्रमुख खासियत यह है कि इसे डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम का साथ और आशिर्वाद हासिल है। पहला गाना इन्हीं ने लिखा है। कम साज़ों के साथ शुरू होता ’द वीज़न’ बच्चे की मासूमियत में घुले हुए डॉ कलाम के शब्दों के सहारे खड़ा होता है और फिर सजीव सारथी के शुद्ध हिन्दी के शब्द इसके असर क