भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में सुनीता शानू की देखी पहली फिल्म के संस्मरण के साझीदार रहे। आज का संस्मरण रेडियो प्लेबैक इण्डिया के नियमित पाठक बैंगलुरु के पंकज मुकेश का है। यह भी प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्ठि है।
‘मैं ना भूलूँगा...’
मेरे जीवन की पहली फिल्म, जो सिनेमाघर में देखी, वो है- ‘हमसे है मुक़ाबला’। प्रभुदेवा और नगमा अभिनीत इस फिल्म में ए.आर. रहमान का संगीत था। रहमान हिन्दी फिल्मी दुनिया में उस समय नये-नये आए थे, अपनी 2-3 सफल फिल्मों (रोजा, बाम्बे आदि) के बाद। संगीत के साथ-साथ प्रभुदेवा का डांस वाकई कमाल का था। हिन्दी डबिंग के गीतकार पी.के. मिश्रा के गाने भी बहुत मक़बूल हुए थे। ये फिल्म मैंने अपने स्कूल के 2-4 दोस्तों के साथ बिना किसी इच्छा के, देखने गया था। बात उस समय की है जब यह फिल्म पहली बार परदे पर प्रदर्शित हुई और अपने शहर बनारस (वाराणसी) में लगी थी। टेलीविजन पर लगभग हर फिल्मों से सम्बन्धित कार्यक्रम जैसे-चित्रहार, countdaown शो इत्यादि में ‘हमसे है मुकाबला’ के गीत खूब प्रसारित होते थे। यह सब देख कर मन तो जरूर करता था की फिल्म देखी जाए, मगर सिनेमाघर में जा कर फिल्म देखना मेरे जैसे दसवीं कक्षा का विद्यार्थी होने तथा एक अध्यापक का पुत्र होने के नाते खुद को रोकना भी पड़ता था। कारण, कहीं पापा को बुरा न लगे। उस समय बच्चों का फ़िल्में देखना अच्छा नहीं माना जाता था और आज भी यही होता है।
२-३ महीनों बात एक अवसर मिला। वह १४अगस्त का दिन था। अगले दिन स्वतंत्रता दिवस के कारण जल्दी छुट्टी होनी थी। उस दिन हम सभी छात्र स्कूल जाते, कुछ कार्यक्रम होते, कुछ में भाग लेते, तिरंगा फहराते और फिर छुट्टी। मेरे कुछ सहपाठी लोग फिल्म देखने की योजना बना रहे थे। तभी किसी ने मुझसे पूछा- ‘क्या तुम हमारे साथ फिल्म देखने चलोगे’? मेरे लिए एक असमंजस की बात थी। आज तक कभी गया नहीं, मगर सुझाव बुरा भी नहीं था, फिर भी कहा- ‘पापा से पूछ कर बताऊंगा’। दोस्तों ने कहा- ‘ठीक है अगर चलना हो तो सारे कार्यक्रम के बाद हमारे साथ चलना, १२ से ३ वाला शो देखेंगे’। पूरा दिन बीत गया कि कैसे पापा से अनुमति मांगूं, फिल्म देखने की? क्या सोचेंगे? बच्चा कहीं बिगड़ तो नहीं रहा, कोई देशभक्ति फिल्म भी तो नहीं लगी है इस समय, जो अनुमति मांगने में मेरी मदद करे। कैसे कहूँ? फिर मैंने सोचा, कल ही तुरंत स्कूल में सारे कार्यक्रम समाप्त होते ही पापा को बता दूंगा। अगर हाँ कहेंगे, तो जाऊंगा। पापा मेरे उसी स्कूल में अध्यापक भी थे, तो कोई परेशानी भी नहीं हुई। जब पापा से कहा तो बोले- ‘कैसे जाओगे? मैंने सब कुछ सही सही बता दिया और पापा ने कहा- ‘जाओ मगर संभल कर जाना, और साथ में कुछ पैसे भी दिए। शायद पापा को लगा होगा कि बेटा कभी फिल्म देखने नहीं गया और आज पहली बार अनुरोध किया तो मना करना ठीक नहीं होगा। मैं बहुत खुश हुआ था। हम सभी लोग अपनी अपनी साइकल से अपने स्कूल के ड्रेस- सफ़ेद रंग के शर्ट, पैंट, पी.टी.शू वाले सफ़ेद जूते मोज़े और शर्ट की जेब पर लगे प्लास्टिक के एक तिरंगे प्रतीक समेत सिनेमाघर की ओर चल पड़े। १०:३० बजे स्कूल से रवाना हुए और बीच में इधर उधर घूमते-रुकते ११:३० बजे मलदहिया स्थित आनंद मंदिर सिनेमाघर। उन दिनों टिकट-दर ८, १०, और बालकनी का १२ रुपये हुआ करता था।
फिल्म शुरु होने से पहले हम सभी के मन में दो बातें उत्सुकतावश घर कर गई थी। पहली, ये कि फिल्म "हम से है मुकाबला" एक तमिल फिल्म "कादलन" का हिंदी रूपांतरण था, इस तरह से हिंदी में संवाद रूपान्तरण के कारण सभी पात्रों के होंठों के हिलने में अंतर मिलेगा, क्योंकि संवाद मूलतः तमिल भाषा में थे और अगर हिंदी में सभी संवाद बनाये गए होंगे तो किस तरह से तमिलभाषी लोग हिंदी बोल पा रहे हैं। दूसरी बात यह थी की इस फिल्म के दो गीत "उर्वशी उर्वशी..." तथा "मुक्काला मुकाबला होगा..." में प्रभुदेवा की नृत्य गति बहुत तेज़ थी और ऐसा हम लोग सोचते थे कि पहले इन दोनों गानों का पूरा डांस देखेंगे फिर सोचेंगे की ऐसा डांस हमारे हिंदी फिल्मों के कलाकार गोविंदा कर पायेंगे या नहीं, क्योंकि टेलीविजन पर केवल बेस्ट सीन ही दिखाते। फिल्म पूरी देखने के बाद यकीन हुआ कि प्रभुदेवा का "फास्ट डांस" में कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
लीजिए, पंकज मुकेश की देखी पहली फिल्म ‘हमसे है मुक़ाबला’ से एक बेहद लोकप्रिय गीत- "उर्वशी उर्वशी..."
आपको पंकज मुकेश जी की देखी पहली फिल्म का संस्मरण कैसा लगा? हमें अवश्य लिखिएगा। आप अपनी प्रतिक्रिया radioplaybackindia@live.com पर भेज सकते हैं। आप भी हमारे इस आयोजन- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ में भाग ले सकते हैं। आपका संस्मरण हम रेडियो प्लेबैक इण्डिया के इस अनुष्ठान में सम्मिलित तो करेंगे ही, यदि हमारे निर्णायकों को पसन्द आया तो हम आपको पुरस्कृत भी करेंगे। आज ही अपना आलेख और एक चित्र हमे swargoshthi@gmail.com पर मेल करें। जिन्होने आलेख पहले भेजा है, उन प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपना एक चित्र भी भेज दें।
शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -
1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल यहाँ है.
2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में अपनी आवाज़ भरेंगें. और अपने दिलचस्प अंदाज़ में इसे पेश करेगें.
3. हमारी टीम अपने विवेक से सभी प्रतिभागी कवियों में से किसी एक कवि को उनकी किसी खास कविता के लिए सरताज कवि चुनेगें. आपने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से ये बताना है कि क्या आपको हमारा निर्णय सटीक लगा, अगर नहीं तो वो कौन सी कविता जिसके कवि को आप सरताज कवि चुनते.
चलिए अब लौटते हैं अभिषेक ओझा और शैफाली गुप्ता की तरफ जो आज आपके लिए लेकर आये हैं परिवर्तन और परिवर्तन के परिणामस्वरूप उपजे बोझ पर एक काव्यात्मक चर्चा जिसमें भाग ले रहे हैं १८ कवि. आज के कार्यक्रम की स्क्रिप्ट लिखी है हमारे प्लेबैक इंडिया के प्यारे सदस्य विश्व दीपक ने. तो दोस्तों सुनिए सुनाईये और छा जाईये...
रेडियो प्लेबैक इण्डिया के साप्ताहिक स्तंभ 'सिने पहेली' के सभी पाठकों और प्रतियोगियों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! आज की यह कड़ी समर्पित है हिंदी फ़िल्म जगत के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की पुण्य स्मृति को। एक साधारण कद-काठी के इंसान और अत्यंत साधारण चेहरे के धनी होने के बावजूद अपनी अभिनय क्षमता, अपने मैनरिज़्म और मनभावन मुस्कान की वजह से राजेश खन्ना बने इस देश का पहला-पहला सुपरस्टार। वैसे देखा जाए तो राजेश खन्ना के सफलतम फ़िल्मों का समयकाल बहुत अधिक लम्बा नहीं है। उनकी सुपरहिट फ़िल्मों का दौर 1967 से लेकर 1977 तक चला। लेकिन इस छोटे से समयकाल में उनकी इतनी सारी कामयाब फ़िल्में बनीं और उन्होंने सर्वसाधारण के दिलों पर ऐसा प्रभाव छोड़ा कि महज़ अभिनेता से वो एक लीजेंड बन गए। आज उनके जाने के बाद बार-बार उनकी अमर फ़िल्म 'आनंद' का वही अंतिम दृश्य आँखों के सामने उमड़ रहा है, जिसे याद करते हुए आँखें नम हो रही हैं। आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं।
आइए आज 'सिने पहेली' में आपसे पूछें बॉलीवूड के काका, राजेश खन्ना से जुड़े कुछ सवाल, उनकी फ़िल्मों और गीतों से जुड़ी कुछ पहेलियाँ। देखते हैं आप कितना जानते हैं काका को! जैसा कि पिछली कड़ी में हमने सूचित किया था, आज की कड़ी में हम पूछेंगे 10 सवाल, और हर सवाल के होंगे 10 अंक। अर्थात् आज की कड़ी के कुल अंक हैं पूरे 100। तो शुरू करें?
पहेली-1: बूझो तो जाने
राजेश खन्ना पर फ़िल्माया हुआ एक सुपरहिट गीत है जिसके मुखड़े और अंतरों में निम्नलिखित शब्द मौजूद हैं जो हिंदी फ़िल्मों के शीर्षक भी हैं।
राजेश खन्ना पर फ़िल्माया हुआ मोहम्मद रफ़ी का गाया एक मशहूर गीत है जिसके तीन अंतरों का अंग्रेज़ी में अनुवाद इस तरह से है।
"Night is yet to pass. There are still many moments left in the night. Even after achieving you, the passion to achieve you is still left."
"If your body's colour will scatter in the seasons, your beauty will brighten than before. The world is very jealous but not so much. If you come in my hug, time will stop."
"I'll offer my life at your feet now. Oh, beauty, I'll make you divine."
बताइये यह किस गीत के अंतरों का अनुवाद है।
पहेली-3: पहचान कौन!
राजेश खन्ना ने जिन तीन अभिनेत्रियों के साथ सर्वाधिक सफल काम किया है, वो हैं शर्मीला टैगोर, आशा पारेख और मुमताज़। लेकिन कई और अभिनेत्रियों के साथ भी उनकी बहुत सारी फ़िल्में बनीं हैं। नीचे चित्र को ध्यान से देखिये और बताइए कि यह किस अभिनेत्री के बाल्यकाल की तसवीर है और एक ऐसी फ़िल्म का नाम बताइए जिसमें राजेश खन्ना ने इस अभिनेत्री के साथ काम किया है।
पहेली-4: पहेली में पहेली
राजेश खन्ना पर फ़िल्माये इस गीत में पहेलियों की लड़ाई चल रही है। इस गीत में राजेश खन्ना जिस अभिनेत्री के साथ पहेलियों की लड़ाई लड़ रहे हैं, वो इस फ़िल्म में उनकी नायिका नहीं हैं। बताइए यह किस गीत की बात हो रही है?
पहेली-5: मिलते-जुलते
१. इन दोनों फ़िल्मों में राजेश खन्ना नायक हैं और नायिका भी एक ही अभिनेत्री हैं।
२. दोनों फ़िल्मों के संगीतकार एक हैं।
३. दोनों फ़िल्मों की कहानी का पार्श्व या मूल मुद्दा एक जैसा है।
४. दोनों फ़िल्मों में किसी एक गीत के दो संस्करण हैं, एक पुरुष कंठ में और एक महिला कंठ में।
बताइए राजेश खन्ना अभिनीत किन दो फ़िल्मों की बात हो रही है?
पहेली-6: सुनिए तो...
नीचे प्लेयर पे क्लिक करके सुनिए राजेश खन्ना पर फ़िल्माए हुए एक गीत का शुरुआती संगीत, और पहचानिए गीत को।
पहेली-7: खोज-बीन
नीचे दिखाए गए वर्ग पहेली जैसे चित्र में राजेश खन्ना अभिनीत एक फ़िल्म का नाम छुपा हुआ है। यह नाम उपर से नीचे या बायें से दायें हो सकता है। क्या आप उस फ़िल्म शीर्षक को खोज सकते हैं?
पहेली-8: फटा पोस्टर निकला हीरो
नीचे दिया हुआ चित्र राजेश खन्ना की एक फ़िल्म का पोस्टर है, जिसमें फ़िल्म का नाम हमने छुपा दिया है। आपको बताना है कि यह किस फ़िल्म का पोस्टर है?
पहेली-9: क्या डायलॉग है!
राजेश खन्ना का एक मशहूर संवाद है जो अंग्रेज़ी में है, और जिसका भाव कुछ इस तरह का है - "सादगी को अपना कर कितनी आसानी से ख़ुश रहा जा सकता है, पर सादगी को अपनाना कितना कठिन है"। क्या आप बता सकते हैं कि अंग्रेज़ी का मूल संवाद राजेश खन्ना के किस फ़िल्म का है?
पहेली-10: आख़िरी सवाल!
चलते चलते बस एक और सवाल काका के नाम। एक ऐसा फ़िल्मी गीत बताइए जिसमें राजेश खन्ना का ज़िक्र है।
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और अब ये रहे इस प्रतियोगिता में भाग लेने के कुछ आसान से नियम....
१. जवाब भेजने के लिए आपको करना होगा एक ई-मेल cine.paheli@yahoo.com के ईमेल पते पर। 'टिप्पणी' में जवाब न कतई न लिखें, वो मान्य नहीं होंगे।
२. ईमेल के सब्जेक्ट लाइन में "Cine Paheli # 30" अवश्य लिखें, और जवाबों के नीचे अपना नाम व स्थान लिखें।
३. आपका ईमेल हमें शनिवार 28 जुलाई शाम 5 बजे तक अवश्य मिल जाने चाहिए। इसके बाद की प्रविष्टियों को शामिल कर पाना हमारे लिए संभव न होगा।
४. आप अपने जवाब एक ही ईमेल में लिखें। किसी प्रतियोगी का पहला ईमेल ही मान्य होगा। इसलिए सारे जवाब प्राप्त हो जाने के बाद ही अपना ईमेल भेजें।
है न बेहद आसान! तो अब देर किस बात की, लगाइए अपने दिमाग़ पे ज़ोर और जल्द से जल्द लिख भेजिए अपने जवाब। महाविजेता बन कर 5000 रुपये के नकद इनाम पर लगाइए अपने नाम का मोहर!
'सिने पहेली - 29' के सही जवाब
१. कौन हूँ मैं क्या नाम है मेरा, मैं कहाँ से आई हूँ, मैं परियों की शहज़ादी मैं आसमाँ से आई हूँ (दर्द का रिश्ता)
२. एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा (1942 - A Love Story)
३. झील रखूँ कंवल रखूँ कि जाम रखूँ, तेरी आँखों का क्या नाम रखूँ (तीसरा किनारा)
४. रे मामा रे मामा रे (अंदाज़)
'सिने पहेली - 29' का परिणाम
इस सप्ताह 'सिने परिवार' से तीन नई खिलाड़ी जुड़ी हैं - सोनभद्र, यू.पी से नीरजा श्रीवास्तव, नई दिल्ली से तरुशिखा सुरजन और देहरादून से अदिति चौहान। आप सभी का हार्दोदिक स्वागत है इस प्रतियोगिता में। सवालों के जवाब देते हुए अदिति जी लिखती हैं, "मुझे तो सिर्फ़ पार्टिसिपेट करने का ही शौक है। वैसे भी जहाँ गोविंद सर और अल्पना मैडम जैसे जीनीयस हों तो हम जैसे कहाँ? हम अब इस पहेली में लगातार पार्टिसिपेट करेंगे।" अदिति जी, आपके इस स्पोर्टस्मैन स्पिरिट देख कर बहुत अच्छा लगा, और गोविंद सर और अल्पना मैडम, आप दोनों ने ग़ौर किया अदिति जी की टिप्पणी पर? ख़ैर, ये रहे इस सप्ताह के परिणाम...
1. सलमन ख़ान, अलीगढ़ --- 16 अंक
2. अल्पना वर्मा, अल-आइन, यू.ए.ई --- 16 अंक
3. प्रकाश गोविन्द, लखनऊ --- 16 अंक
4. रीतेश खरे, मुंबई --- 16 अंक
5. क्षिति तिवारी, इंदौर --- 16 अंक
6. नीरजा श्रीवास्तव, सोनभद्र (यू.पी) --- 16 अंक
7. गौतम केवलिया, बीकानेर --- 16 अंक
8. विजय कुमार व्यास, बीकानेर --- 16 अंक
9. तरुशिखा सुरजन, नई दिल्ली --- 12 अंक
10. पंकज मुकेश, बेंगलुरू --- 12 अंक
11. अदिति चौहान, देहरादून --- 8 अंक
सभी प्रतियोगियों को हार्दिक बधाई। अंक सम्बंधित अगर आपको किसी तरह की कोई शिकायत हो, तो cine.paheli@yahoo.com के पते पर हमें अवश्य सूचित करें।
'सिने पहेली' प्रतियोगिता के तीसरे सेगमेण्ट में अब तक का सम्मिलित स्कोर-कार्ड यह रहा...
विजय कुमार व्यास जी लगातार उपर चढ़ते जा रहे हैं। इस सेगमेण्ट की चौथी कड़ी से शुरुआत करने के बावजूद वो आज पहुँच चुके हैं छठे पायदान पर। हमें पूरी उम्मीद है कि विजय जी अगले सेगमेण्ट में अन्य खिलाड़ियों को कड़ी चुनौती देंगे।
तो आज बस इतना ही। अगले सोमवार (30 जुलाई) को तीसरे सेगमेण्ट के फ़ाइनल परिणाम लेकर हम फिर उपस्थित होंगे, पर 'सिने पहेली' का 31-वाँ अंक प्रस्तुत होगा शनिवार 4 अगस्त के दिन। 'सिने पहेली' को और भी ज़्यादा मज़ेदार बनाने के लिए अगर आपके पास भी कोई सुझाव है तो 'सिने पहेली' के ईमेल आइडी पर अवश्य लिखें। आप सब भाग लेते रहिए, इस प्रतियोगिता का आनन्द लेते रहिए, क्योंकि महाविजेता बनने की लड़ाई अभी बहुत लम्बी है। आज के एपिसोड से जुड़ने वाले प्रतियोगियों के लिए भी 100% सम्भावना है महाविजेता बनने का। इसलिए मन लगाकर और नियमित रूप से (बिना किसी एपिसोड को मिस किए) सुलझाते रहिए हमारी सिने-पहेली, करते रहिए यह सिने मंथन, और अनुमति दीजिए अपने इस ई-दोस्त सुजॉय चटर्जी को, आपकी और मेरी दोबारा मुलाक़ात होगी अगले सोमवार इसी स्तंभ में। स्वर्गीय राजेश खन्ना को पुन: श्रद्धांजली अर्पित करते हुए मैं आप से विदा ले रहा हूँ, नमस्कार!
आने वाले दिनों में एक नयी फिल्म आने वाली है ‘ फ्रॉम सिडनी विद लव’. बहुत सारे नवोदित कलाकार इसमें दिखाई देंगे.
इस फिल्म की स्टारकास्ट से लेकर निर्देशक तक अपनी पहली पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं. इस फिल्म का संगीत दिया है ‘ मेरे ब्रदर की दुल्हन’ से चर्चित हुए सोहेल सेन और थोर पेट्रिजऔर नबीन लस्कर ने.
इस एल्बम का पहला गाना ‘फीलिंग लव इन सिडनी’, इलेक्ट्रॉनिक साउंड के साथ हिप होप फीलिंग देता है.गाने का संगीत मधुर है. कानों को सुनने में अच्छा लगता है. पार्टियों में आने वाले दिनों में बहुत बजेगा ये.
अगला गाना ‘ हो जायेगा’ , मोहित चौहान और मोनल ठाकुर की आवाज में है. आपको इस गाने में ज्यादा धूम धडाका नही मिलेगा जो आजकल के गानों में रहता है.
अगला गाना भांगडा स्टाइल का गाना है. ‘खटका खटका’ गाने को मीका सिंह ने अपने आवाज से मस्ती में झूमने वाला बना दिया है. इस गाने में इस्तेमाल हुई ढोल की बीट्स और इलेक्ट्रॉनिक साउंड आपको नाचने के लिए मजबूर कर देंगी.
बंगाली शब्दों के साथ पलक ‘ नैनो ने ‘ गाने की शुरुआत करती हैं. मोहम्मद सलामत ने उनके साथ बखूबी निभाया है. गाना बहुत मधुर है. इस एल्बम का मुझे ये सबसे मधुर गाना लगा है. एक परफेक्ट गाना है जिसे सुनकर आप अपने साथी के साथ मानसून क स्वागत कर सकते हैं.
अगला गाना ‘आइटम ये हाय फाय’ नीरज श्रीधर की आवाज में है. गाना ठीक ठाक है. ये गाना भी एक डांस सोंग है.
अंत में गाना है ‘प्यारी प्यारी’. ब्रुकलीन शांती ने इसमें केलिप्सो का टेस्ट दिया है, जो एफ्रो – केरेबियन’ स्टाइल का संगीत है जिसकी उत्पत्ति हुई त्रिनिडाड और टोबैगो में.
कुल मिलाकर इस फिल्म का संगीत सुनने लायक है. रेडियो प्लेबैक इंडिया इसे देता है ३.५ के रेटिंग.
तमस
'सुनते हैं सुअर मारना बड़ा कठिन काम है. हमारे बस का नहीं होगा हुजूर. खाल-बाल उतारने का काम तो कर दें. मारने का काम तो पिगरी वाले ही करते हैं.' पिगरी वालों से करवाना हो तो तुमसे क्यों कहते?'यह काम तुम्ही करोगे.'' और मुराद अली ने पाँच रुपए का चरमराता नोट निकाल कर जेब में से निकाल कर नत्थू के जुड़े हाथों के पीछे उसकपी जेब में ढूँस दिया था.'
'प्रकाशो की आँखें क्षण भर के लिए अल्लाह रक्खा के चेहरे पर ठिठकी रहीं, फिर उसने धीरे से मिठाई का टुकड़ा उठाया. टुकड़े को हाथ में ले लेने पर भी वह उससे उठ नहीं रहा था. प्रकाशो का चेहरा पीला पड़ गया था और हाथ काँपने लगा था मानो उसे सहसा बोध हुआ कि वह क्या कर रही है और उसका माँ-बाप को पता चले तो वे क्या कहेंगे. पर उसी वक्त आग्रह और उन्माद से भरी अल्लाह रक्खा की आँखों ने उसकी ओर देखा और प्रकाशो का हाथ अल्लाहरखा के मुँह तक जा पहुँचा.'
ये अंश हैं १९७५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास तमस से. तमस भीष्म साहनी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है. वे इस उपन्यास से साहित्य जगत में बहुत लोकप्रिय हुए थे. १९८६ में गोविंद निहलानी ने दूरदर्शन धारावाहिक तथा एक फ़िल्म भी बनाई थी.
इस उपन्यास में आजादी के ठीक पहले भारत में हुए साम्प्रदायिकता के नग्न नर्तन का अंतरंग चित्रण है. 'तमस' केवल पाँच दिनों की कहानी है. वहशत में डूबे हुए पाँच दिनों की कहानी को भीष्म साहनी ने इतनी कुशलता से बुना है कि सांप्रदायिकता का हर पहलू तार-तार उद्घाटित हो जाता है और हर पाठक एक साँस में सारा उपन्यास पढ़ने के लिए बाध्य हो जाता है. उपन्यास में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं, उससे यह पांच दिवस की कथा न होकर बीसवीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षो की कथा हो जाती है. आजादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरग चित्रण भीष्म साहनी ने इस उपन्यास में किया है.
भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या एक युग पुरानी है और इसके दानवी पंजों से अभी तक इस देश की मुक्ति नहीं हुई है. आजादी से पहले विदेशी शासकों ने यहाँ की जमीन पर अपने पाँव मजबूत करने के लिए इस समस्या को हथकंडा बनाया था और आजादी के बाद हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल इसका घृणित उपयोग कर रहे हैं. और इस सारी प्रक्रिया में जो तबाही हुई है उसका शिकार बनते रहे हैं वे निर्दोष और गरीब लोग जो न हिन्दू हैं, न मुसलमान बल्कि सिर्फ इन्सान हैं, और हैं भारतीय नागरिक. भीष्म साहनी ने आजादी से पहले हुए साम्प्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण किया है और उन मनोवृत्तियों को उघाड़कर सामने रखा है जो अपनी विकृतियों का परिणाम जनसाधारण को भोगने के लिए विवश करती हैं
राजकमल प्रकाशन ने इस उपन्यास को प्रकाशित करा है. आपकी अपनी लायब्रेरी के लिए यह एक एतिहासिक संग्रह है.
‘स्वरगोष्ठी’ के एक और सुहाने, हरियाले और रिमझिम फुहारों से युक्त अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र उपस्थित हूँ। मल्हार अंग के रागों की श्रृंखला में पिछले दो अंकों में आपने मेघ मल्हार और मियाँ मल्हार रागों की स्वर-वर्षा का आनन्द प्राप्त किया। इस श्रृंखला में आज हम आपके लिए लेकर आए है, राग गौड़ मल्हार। पावस ऋतु का यह एक ऐसा राग है जिसके गायन-वादन से सावन मास की प्रकृति का सजीव चित्रण तो किया ही जा सकता है, साथ ही ऐसे परिवेश में उपजने वाली मानवीय संवेदनाओं की सार्थक अभिव्यक्ति भी इस राग के माध्यम से की जा सकती है। आकाश पर कभी मेघ छा जाते हैं तो कभी आकाश मेघरहित हो जाता है। इस राग के स्वर-समूह उल्लास, प्रसन्नता, शान्ति और मिलन की लालसा का भाव जागृत करते हैं। मिलन की आतुरता को उत्प्रेरित करने में यह राग समर्थ होता है। आज के अंक में हम आपको ऐसे ही भावों से युक्त कुछ मोहक रचनाएँ सुनवाएँगे। साथ ही राग गौड़ मल्हार के स्वरूप के बारे में संक्षिप्त जानकारी भी आपसे बाँटेंगे। परन्तु आगे बढ़ने से पहले आइए, राग गौड़ मल्हार की एक पारम्परिक बन्दिश- ‘गरजत बरसत भीजत आई लो...’ का आनन्द लेते है। यह बन्दिश पहले आप विदुषी मालविका कानन के स्वरों में सुनिए।
राग गौड़ मल्हार : ‘गरजत बरसत भीजत आई लो...’ : विदुषी मालविका कानन
राग गौड़ मल्हार में गौड़ और मल्हार अंग का अत्यन्त आकर्षक मेल होता है। वक्र सम्पूर्ण जाति के इस राग में दोनों निषाद स्वरों का प्रयोग किया जाता है। अन्य सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस राग में गान्धार स्वर का अत्यन्त विशिष्ट प्रयोग किया जाता है। राग गौड़ मल्हार को कुछ गायक-वादक खमाज थाट के अन्तर्गत, तो कुछ इसे काफी थाट के अन्तर्गत प्रयोग करते हैं। सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित रामाश्रय झा इस राग को विलावल थाट के अन्तर्गत प्रयोग करते हैं। अभी आपने विदुषी मालविका कानन के स्वरों में आपने जिस बन्दिश का रसास्वादन किया है वह भी विलावल थाट के अन्तर्गत है। आइए अब हम आपको यही बन्दिश सुप्रसिद्ध गायिका मालिनी राजुरकर के स्वरों में सुनवाते हैं। उन्होने द्रुत तीनताल में थोड़ी बढ़ी हुई लय में इसे एक अलग ही रस-रंग में प्रस्तुत किया है।
राग गौड़ मल्हार : ‘गरजत बरसत भीजत आई लो...’ : विदुषी मालिनी राजुरकर
राग गौड़ मल्हार की कुछ विशेषताओं की चर्चा करते हुए संगीत-शिक्षक और संगीत विषयक कई पुस्तकों के लेखक मिलन देवनाथ जी ने बताया कि इस राग के आरोह में शुद्ध गान्धार के साथ शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। जो गायक-वादक कोमल गान्धार का प्रयोग करते हैं वे इस राग को काफी थाट के अन्तर्गत प्रयोग करते हैं। श्री देवनाथ ने बताया कि इस राग में मध्यम पर न्यास करना और ऋषभ-पंचम की संगति आवश्यक होती है। यह प्रयोग मल्हार अंग का परिचायक होता है। उन्होने बताया कि गौड़ मल्हार में पण्डित विद्याधर व्यास और विदुषी किशोरी अमोनकर ने नि(कोमल),ध,नि,सा (मियाँ मल्हार) का जैसा मोहक परम्परागत प्रयोग किया है, वह सुनने योग्य है। आइए अब हम आपको युवा सितार-वादक अभीक मुखर्जी का बजाया राग गौड़ मल्हार में संक्षिप्त आलाप और उसके बाद तीनताल में निबद्ध एक बन्दिश सुनवाते हैं।
सितार पर राग गौड़ मल्हार : आलाप और तीनताल की बन्दिश : अभीक मुखर्जी
फिल्मों में राग गौड़ मल्हार का प्रयोग बहुत कम किया गया है। रोशन और बसन्त देसाई, दो ऐसे फिल्म संगीतकार हुए हैं, जिन्होने इस राग का बेहतर इस्तेमाल अपनी फिल्मों में किया है। पार्श्वगायक मुकेश ने १९५१ में फिल्म ‘मल्हार’ का निर्माण किया था। इस फिल्म के संगीतकार रोशन थे। फिल्म के शीर्षक संगीत के रूप में रोशन ने राग गौड़ मल्हार की उसी बन्दिश का चुनाव किया, जिसे ऊपर आपने दो प्रख्यात गायिकाओं से आपने अभी सुना है। लता मंगेशकर ने फिल्म में शामिल इस बन्दिश को स्वर दिया था। अच्छे संगीत के बावजूद फिल्म ‘मल्हार’ व्यावसायिक रूप से असफल रही और गीत भी अनसुने रह गए। लगभग एक दशक बाद रोशन ने फिल्म ‘बरसात की रात’ में थोड़े शाब्दिक फेर-बदल के साथ दोबारा प्रयोग किया। इस बार फिल्म और उसका संगीत, दोनों सफल सिद्ध हुआ। आइए अब आपको फिल्म ‘बरसात की रात’ का वही गीत सुनवाते हैं, जिसमें रोशन ने राग गौड़ मल्हार के स्वरों का प्रयोग कर गीत को सदाबहार बना दिया। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
फिल्म- बरसात की रात : ‘गरजत बरसत सावन आयो...’ : सुमन कल्याणपुर और कमल बारोट
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको सुनवा रहे हैं, राग आधारित एक फिल्मी गीत का अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी तीसरी श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ – यह गीत किस राग पर आधारित है?
२ – इस गीत के संगीतकार कौन है?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८२वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com पर अपना सन्देश भेज सकते हैं।
पिछली पहेली के उत्तर
‘स्वरगोष्ठी’ के ७८वें अंक की पहेली में हमने आपको १९९८ की फिल्म ‘साज’ का एक गीत सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मियाँ की मल्हार और दूसरे का सही उत्तर है- गायिका कविता कृष्णमूर्ति। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर जबलपुर की क्षिति तिवारी और लखनऊ के प्रकाश गोविन्द ने दिया है। इन दोनों प्रतिभागियों को दो-दो अंक दिये जा रहे हैं। मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने राग की पहचान करने में भूल की, परन्तु गायिका कविता कृष्णमूर्ति के स्वरों को ठीक पहचाना। इसलिए श्री त्रिपाठी को एक अंक प्रदान किया जा रहा है। तीनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
भूल सुधार
पिछले सप्ताह ७७वें अंक की पहेली के विजेताओं के नामों की घोषणा करने में हमसे एक चूक हो गई थी। इस पहेली के दोनों प्रश्नों के सही उत्तर देकर बेलफास्ट (यू.के.) के दीपक मशाल ने भी दो अंक अर्जित किये हैं। विजेताओं की सूची में दीपक जी को शामिल करते हुए इस भूल के लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक से हमने मल्हार के एक और प्रकार का आनन्द लिया। अगले अंक में भी हम यह सिलसिला जारी रखते हुए मल्हार के एक अन्य प्रकार की चर्चा करेंगे। वर्षा ऋतु से सम्बन्धित कोई राग अथवा रचना आपको प्रिय हो और आप उसे सुनना चाहते हों तो आज ही अपनी फरमाइश हमें मेल कर दें। इसके साथ ही यदि आप इनसे सम्बन्धित आडियो ‘स्वरगोष्ठी’ के माध्यम से संगीत-प्रेमियों के बीच साझा करना चाहते हों तो अपना आडियो क्लिप MP3 रूप में भेज दें। हम आपकी फरमाइश को और आपके भेजे आडियो क्लिप को ‘स्वरगोष्ठी’ आगामी किसी अंक में शामिल करने का हर-सम्भव प्रयास करेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९-३० पर आयोजित अपनी इस गोष्ठी में आप हमारे सहभागी बनिए।