Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2011

ओल्ड इस गोल्ड -शनिवार विशेष - 'वन्देमातरम' गीत का एक और नवीन प्रयोग

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में मैं, कृष्णमोहन मिश्र आप सभी का हार्दित स्वागत करता हूँ। मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग एवं उस्ताद अलाउद्दीन खां कला अकादमी के संयुक्त प्रयासों से चन्देल राजाओं की संस्कृति-समृद्ध भूमि, खजुराहो में महत्वाकांक्षी "खजुराहो नृत्य समारोह" प्रतिवर्ष आयोजित होता है| इस वर्ष समारोह की तीसरी संध्या में 'भरतनाट्यम' नृत्य शैली की विदुषी नृत्यांगना डाक्टर ज्योत्सना जगन्नाथन ने अपने नर्तन को 'भारतमाता की अर्चना' से विराम दिया| उन्होंने बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की कालजयी कृति -'वन्देमातरम ....' का चयन किया| इस गीत में भारतमाता के जिस स्निग्ध स्वरुप का वर्णन कवि ने शब्दों के माध्यम से किया है, विदुषी नृत्यांगना ने उसी स्वरुप को अपनी भंगिमाओं, हस्तकों, पद्संचालन आदि के माध्यम से मंच पर साक्षात् साकार कर दिया| आमतौर पर शास्त्रीय नर्तक/नृत्यांगना, नृत्य का प्रारम्भ 'मंगलाचरण' से तथा समापन द्रुत या अतिद्रुत लय की किसी नृत्य-संरचना से करते हैं| सुश्री ज्योत्सना ने 'वन्देमातरम' से अपने नर्तन को विराम देकर एक स

सुनो कहानी: अल्ताफ़ फ़ातिमा की गैर मुल्की लडकी

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में जयशंकर प्रसाद की कहानी ' ममता ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं अल्ताफ़ फ़ातिमा की कहानी " ग़ैर- मुल्की लडकी ", जिसको स्वर दिया है प्रीति सागर ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 17 मिनट 20 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। अल्ताफ़ फ़ातिमा जन्म 1929 में लखनऊ में। माता-पिता: जहाँ मुम्ताज़ और फज़ले मुहम्मद अमीन वर्तमान निवास: लाहौर पाकिस्तान हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी "अब कैसी चुप्पी साधी है बडी बी ने।" ( अल्ताफ़ फ़ातिमा की "गैर मुल्की लड़की" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) यदि

बेहद प्रयोगधर्मी है शोर इन द सिटी का संगीत

Taaza Sur Taal (TST) - 10/2011 - Shor In The City 'ताज़ा सुर ताल' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार! पिछले कई हफ़्तों से 'टी.एस.टी' में हम ऐसी फ़िल्मों की संगीत समीक्षा प्रस्तुत कर रहे हैं जो लीक से हटके हैं। आज भी एक ऐसी ही फ़िल्म को लेकर हाज़िर हुए हैं, जो २०१० में पुसान अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव और दुबई अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के लिए मनोनीत हुई थी। इस फ़िल्म के लिये निर्देशक राज निदिमोरु और कृष्णा डी.के को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी मिला न्यु यॉर्क के MIAAC में। वैसे भारत के सिनेमाघरों में यह फ़िल्म २८ अप्रैल को प्रदर्शित हो रही है। शोभा कपूर व एकता कपूर निर्मित इस फ़िल्म का शीर्षक है 'शोर इन द सिटी'। 'शोर इन द सिटी' तुषार कपूर, सेन्धिल रामामूर्ती, निखिल द्विवेदी, पितोबश त्रिपाठी, संदीप किशन, गिरिजा ओक, प्रीति देसाई, राधिका आप्टे और अमित मिस्त्री के अभिनय से सजी है। फ़िल्म का पार्श्वसंगीत तैयार किया है रोशन मचाडो नें। फ़िल्म के गीतों का संगीत सचिन-जिगर और हरप्रीत नें तैयार किया हैं। हरप्रीत के दो गीत उनकी सूफ़ी संकलन 'तेरी जुस्तजू

लपक झपक तू आ....सुनिए ये अनूठा अंदाज़ भी मन्ना दा के गायन का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 645/2010/345 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी मित्रों का मैं कृष्णमोहन मिश्र स्वागत करता हूँ गायक मन्ना डे पर केन्द्रित शृंखला 'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' में। कल की कड़ी में आपसे मन्ना डे और मोहम्मद रफ़ी के अन्तरंग सम्बन्धों के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी हमने बाँटने का प्रयास किया था| आज की कड़ी में हम उनके प्रारम्भिक दिनों के कुछ और साथियों से अन्तरंग क्षणों की चर्चा करेंगे। मन्ना डे की संगीत शिक्षा, संगीत के प्रति उनका समर्पण, हर विधा को सीखने-समझने की ललक और इन सब गुणों से ऊपर साथी कलाकारों से मधुर- आत्मीय सम्बन्ध, उन्हें उत्तरोत्तर सफलता की ओर लिये जा रहा था। प्रारम्भिक दौर में मन्ना डे का ध्यान पार्श्वगायन से अधिक संगीत रचना की ओर था। उन दिनों मन्ना डे संगीतकार खेमचन्द्र प्रकाश के सहायक थे। एक बार खेमचन्द्र प्रकाश के अस्वस्थ हो जाने पर मन्ना डे नें फिल्म 'श्री गणेश महिमा' का स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन भी किया था। मन्ना डे को वो पुत्रवत मानते थे। उन दिनों एक नया चलन शुरू हुआ था। हर अभिनेता चाहता था कि उसकी आवाज़ से म

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...एक मुश्किल प्रतियोगिता के दौर में भी मन्ना दा ने अपनी खास पहचान बनायीं

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 644/2010/344 म न्ना डे को फिल्मों में प्रवेश तो मिला किन्तु एक लम्बे समय तक वो चर्चित नहीं हो सके। इसके बावजूद उन्होंने उस दौर की धार्मिक-ऐतिहासिक फिल्मों में गाना, अपने से वरिष्ठ संगीतकारों का सहायक रह कर तथा अवसर मिलने पर स्वतंत्र रूप से भी संगीत निर्देशन करना जारी रखा। अभी भी उन्हें उस एक हिट गीत का इन्तजार था जो उनकी गायन क्षमता को सिद्ध कर सके। थक-हार कर मन्ना डे ने वापस कोलकाता लौट कर कानून की पढाई पूरी करने का मन बनाया। उसी समय मन्ना डे को संगीतकार सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में फिल्म 'मशाल' का गीत -"ऊपर गगन विशाल, नीचे गहरा पाताल......." गाने का अवसर मिला। गीतकार प्रदीप के भावपूर्ण साहित्यिक शब्दों को बर्मन दादा के प्रयाण गीत की शक्ल में आस्था भाव से युक्त संगीत का आधार मिला और जब यह गीत मन्ना डे के अर्थपूर्ण स्वरों में ढला तो गीत ज़बरदस्त हिट हुआ। इसी गीत ने पार्श्वगायन के क्षेत्र में मन्ना डे को फिल्म जगत में न केवल स्थापित कर दिया बल्कि रातो-रात पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया। 'मशाल' के प्रदर्शन अवसर पर गीतों का जो रिकार

क्यों अखियाँ भर आईं, भूल सके न हम तुम्हे....सुनिए मन्ना दा का स्वरबद्ध एक गीत भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 643/2010/343 'अ पने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' - मन्ना डे पर केन्द्रित इस शृंखला में मैं, कृष्णमोहन मिश्र आप सभी का एक बार फिर स्वागत करता हूँ। कल की कड़ी में हमने आपसे मन्ना डे को फ़िल्मी पार्श्वगायन के क्षेत्र में मिले पहले अवसर के बारे में चर्चा की थी। दरअसल फिल्म 'रामराज्य' का निर्माण 1942 में शुरू हुआ था किन्तु इसका प्रदर्शन 1943 में हुआ। इस बीच मन्ना डे ने फिल्म 'तमन्ना' के लिए सुरैया के साथ एक युगल गीत भी गाया। इस फिल्म के संगीत निर्देशक मन्ना डे के चाचा कृष्ण चन्द्र डे थे। सुरैया के साथ गाये इस युगल गीत के बोल थे- 'जागो आई उषा, पंछी बोले....'। कुछ लोग 'तमन्ना' के इस गीत को मन्ना डे का पहला गीत मानते हैं। सम्भवतः फिल्म 'रामराज्य' से पहले प्रदर्शित होने के कारण फिल्म 'तमन्ना' का गीत मन्ना डे का पहला गीत मान लिया गया हो। इन दो गीतों के रूप में पहला अवसर मिलने के बावजूद मन्ना डे का आगे का मार्ग बहुत सरल नहीं था। एक बातचीत में मन्ना डे ने बताया कि पहला अवसर मिलने के बावजूद मुझे काफी प्रतीक्षा करन

अजब विधि का लेख किसी से पढ़ा नहीं जाये....जब वयोवृद्ध महर्षि वाल्मीकि की आवाज़ बने युवा मन्ना डे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 642/2010/342 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी मित्रों को कृष्णमोहन मिश्र का नमस्कार! स्वरगंधर्व मन्ना डे पर केन्द्रित लघु शृंखला 'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' की कल पहली कड़ी में आपने मन्ना डे की बाल्यावस्था, उनकी शिक्षा-दीक्षा, अभिरुचि और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त की। आपने यह भी जाना कि वो अपने कैरियर के दोराहे पर खड़े होकर बैरिस्टर बनने की अपेक्षा संगीतकार या गायक बनने के मार्ग पर चलना अधिक उपयुक्त समझा। मन्ना डे के इस निर्णय से उनके पिता बहुत संतुष्ट नहीं थे, बावजूद इसके उन्होंने अपने पुत्र के इस निर्णय में कोई बाधा नहीं डाली। अपने अंध-संगीतज्ञ चाचा कृष्णचन्द्र डे के साथ 1940 में मन्ना डे मुम्बई (तब बम्बई या बॉम्बे) के लिए रवाना हुए। उस समय उनके पास बाउल गीत, रवीन्द्र संगीत, थोडा-बहुत ख़याल, ठुमरी, दादरा आदि की संचित पूँजी थी | साथ में चाचा के.सी. डे का वरदहस्त उनके सर पर था। प्रारम्भ में मन्ना डे अपने चाचा के सहायक के रूप में कार्य करने लगे। गीतों की धुन बनाने में सहयोग देने, धुन तैयार होने पर उसकी स्वरलिपि लिखन

दूर है किनारा....आईये किनारे को ढूंढती मन्ना दा की आवाज़ के सागर में गोते लगाये हम भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 641/2010/341 'ओ ल्ड इस गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का इस स्तंभ में फिर एक बार स्वागत करता हूँ। युं तो इस शृंखला का वाहक मैं और सजीव जी हैं, लेकिन समय समय पर आप में से कई श्रोता-पाठक इस स्तंभ के लिए उल्लेखनीय योगदान करते आये हैं, चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो! यह हमारा सौभाग्य है कि हाल में हमारी जान-पहचान एक ऐसे वरिष्ठ कला संवाददाता व समीक्षक से हुई, जो अपने लम्बे करीयर के बेशकीमती अनुभवों से हमारा न केवल ज्ञानवर्धन कर रहे हैं, बल्कि 'सुर-संगम' स्तंभ में भी अपना अमूल्य योगदान समय समय पर दे रहे हैं। और अब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए एक पूरी की पूरी शृंखला के साथ हाज़िर हैं। आप हैं लखनऊ के श्री कृष्णमोहन मिश्र। मिश्र जी का परिचय कुछ शब्दों में संभव नहीं, इसलिए आप यहाँ क्लिक कर उनके बारे में विस्तृत रूप से जान सकते हैं। तो दोस्तों, आइए अगले दस अंकों के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आनंद लें श्री कृष्णमोहन मिश्र जी के साथ। एक और बात, कृष्णमोहन जी नें इस शृंखला के हर अंक में इतने सारे तथ्य भरे हैं कि अलग से "

सुर संगम में आज - लोकप्रिय तालवाद्य घटम की चर्चा

सुर संगम - 17 - घटम जब विक्कु अपना अरंगेत्रम् देने मंच पर जा रहे थे, तब 'गणेश' नामक एक बच्चे ने उनका घटम तोड़ दिया। इसे घटना को वे आज भी अपने करियर के लिए शुभ मानते हैं। सु प्रभात! सुर-संगम के आज के अंक में मैं, सुमित चक्रवर्ती आपका स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत में ताल की भूमिका सबसे महत्त्व्पूर्ण मानी गयी है। ताल किसी भी तालवाद्य से निकलने वाली ध्वनि का वह तालबद्ध चक्र है जो किसी भी गीत अथवा राग को गाते समय गायक को सुर लगाने के सही समय का बोध कराता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में जहाँ कुछ ताल बहुत रसद हैं वहीं कुछ ताल बहुत ही जटिल व जटिल भी हैं। तालों के लिए कई वाद्‍यों का प्रयोग किया जाता है जिनमें तबला, ढोलक, ढोल, मृदंगम, घटम आदि कुछ नाम हम सब जानते हैं। आज के इस अंक में हम चर्चा करेंगे एक बहुत ही लोकप्रिय तालवाद्य - घटम के बारे में। घटम मूलतः दक्षिण भारत के कार्नाटिक संगीत में प्रयोग किया जाने वाला तालवाद्य है। राजस्थान में इसी के दो अनुरूप मड्गा तथा सुराही के नामों से प्रचलित हैं। यह एक मिट्टी का बरतन है जिसे वादक अपनी उँगलियो, अंगूठे, हथेलियों व हाथ की एड़ी से इसके बाहरी

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - एक मुलाक़ात शब्बीर कुमार से

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 38 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज शनिवार की इस विशेष प्रस्तुति के लिए हम लेकर आये हैं फ़िल्म जगत के जाने-माने पार्श्वगायक शब्बीर कुमार से एक छोटी सी मुलाक़ात। छोटी इसलिए क्योंकि शब्बीर साहब का हाल ही में विविध भारती ने भी एक साक्षात्कार लिया था, जिसमें बहुत ही विस्तार से शब्बीर साहब नें अपने जीवन के बारे में और अपने संगीत करीयर के बारे में बताया था। बचपन की बातें, किस तरह से संगीत में उनकी दिलचस्पी हुई, रफ़ी साहब के वे कैसे फ़ैन बने, रफ़ी साहब से उनकी पहली मुलाक़ात कब और किस तरह से हुई, रफ़ी साहब के अंतिम सफ़र में वो किस तरीके से शरीक हुए, वो ख़ुद एक पार्श्वगायक कैसे बने, ये सब कुछ विविध भारती के उस साक्षात्कार में आ चुका है। आप में से जो श्रोता-पाठक उस कार्यक्रम को सुनने से चूक गये थे, उनके लिए इस साक्षात्कार का लिखित रूप हमनें 'विविध भारती लिस्नर्स क्लब' में पोस्ट किया था। ये रहे उसके लिंक्स: 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-१ ' 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-२ ' 'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२

हर घर के कोने में एक पोस्ट बॉक्स होता है... रितुपर्णा घोष लाये हैं संगीत की एक अजीब दावत "मेमोरीस इन मार्च" में

Taaza Sur Taal (TST) - 09/2011 - Memories In March 'ताज़ा सुर ताल' के आज के अंक में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का स्वागत करता हूँ। दोस्तों, जिस तरह से समाज का नज़रिया बद्लता रहा है, उसी तरह से हमारी फ़िल्मों की कहानियों में, किरदारों में भी बदलाव आते रहे हैं। "फ़िल्म समाज का आइना है" वाक़ई सही बात है। एक विषय जो हमेशा से ही समाजिक विरोध और घृणा का पात्र रहा है, वह है समलैंगिक्ता। भले ही सुप्रीम कोर्ट नें समलैंगिक संबंध को स्वीकृति दे दी है, लेकिन देखना यह है कि हमारा समाज कब इसे खुले दिल से स्वीकार करता है। फ़िल्मों की बात करें तो पिछ्ले कई सालों से समलैंगिक चरित्र फ़िल्मों में दिखाये जाते रहे हैं, लेकिन उन पर हास्य-व्यंग के तीर ही चलाये गये हैं। जब अंग्रेज़ी फ़िल्म 'ब्रोकबैक माउण्टेन' नें समलैंगिक संबंध को रुचिकर रूप में प्रस्तुत किया तो हमारे यहाँ भी फ़िल्मकारों ने साहस किया, और सब से पहले निर्देशक ओनिर 'माइ ब्रदर निखिल' में इस राह पर चलकर दिखाया। अभी हाल ही में 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' में भी समलैंगिक संबंध को दर्शाया गया लेकिन फ़िल्म के न

माथे पे लगाइके बिंदिया, अखियन उड़ाइके निंदिया....हास्य अभिनेता देवन वर्मा ने भी पार्श्व गायन में अपनी आवाज़ आजमाई

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 640/2010/340 दो स्तों नमस्कार! इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' रोशन है फ़िल्मी सितारों के गाये नग़मों से। पिछली नौ कड़ियों में हमनें नौ सितारों के गाये गीत सुनवाये और कई सितारों के नाम लिये जिनकी आवाज़ फ़िल्मी गीतों में सुनाई दी हैं। फ़िल्मी सितारों द्वारा गाये गीतों की परम्परा ४० के दशक में शुरु हुई थी, जो अब तक जारी है। आइए कुछ और नाम लें। अनिल कपूर नें गाया था फ़िल्म 'चमेली की शादी' का शीर्षक गीत। कल्याणजी-आनंदजी के ही निर्देशन में राजकुमार साहब नें सलमा आग़ा के साथ फ़िल्म 'महावीरा' के एक गीत में संवाद बोले। ९० के दशक के शुरुआत में श्रीदेवी नें 'चांदनी' का शीर्षक गीत गा कर काफ़ी लोकप्रियता हासिल की थी। माधुरी दीक्षित की भी आवाज़ गूंजी कविता कृष्णामूर्ती और पंडित बिरजु महाराज के साथ 'देवदास' फ़िल्म के "काहे छेड़े मोहे" गीत में। शाहरुख़ ख़ान नें 'जोश' में "अपुन बोला", आमिर ख़ान नें 'ग़ुलाम' में "आती क्या खण्डाला", सलमान ख़ान नें 'हेल्लो ब्रदर' में "सोने की डाल पर चांदी

कायदा कायदा आखिर फायदा.....कभी कभी कायदों को हटाकर भी जीने का मज़ा है समझा रहीं हैं रेखा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 639/2010/339 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! 'सितारों की सरगम' शृंखला में कल आपनें शत्रुघ्न सिंहा का गाया गीत सुना था ॠषीकेश मुखर्जी निर्देशित फ़िल्म 'नरम गरम' से, राहुल देव बर्मन का स्वरबद्ध किया और गुलज़ार साहब का लिखा। आज की कड़ी में भी जो गीत आप सुनने जा रहे हैं, उसे इसी टीम, यानी कि ॠषी दा, पंचम दा और गुलज़ार साहब, नें बनाया है। यह है १९८० की बेहद कामयाब फ़िल्म 'ख़ूबसूरत' से अभिनेत्री रेखा का गाया गीत "कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा", जिसमें सपन चक्रवर्ती नें उनका साथ दिया है। युं तो गुलज़ार साहब बच्चों वाले गीत लिखने में और उनमें अजीब-ओ-गरीब उपमाएँ व रूपक देने में माहिर हैं, लेकिन इस गीत में तो उन्हें ऐसी खुली छूट व आज़ादी मिली कि वो तो अपनी कल्पना को पता नहीं किस हद तक लेके गये हैं। 'ख़ूबसूरत' के मुख्य कलाकार थे रेखा, दीना पाठक, अशोक कुमार, राकेश रोशन, शशिकला प्रमुख। कहानी तो आपको पता ही है, अगर आप में से किसी नें इस फ़िल्म को अब तक नहीं देखा है, तो हमारा सुझाव है कि आज ही इसे देखें। वाक़ई एक लाजवाब फ़िल्म

एक बात सुनी है चाचा जी बतलाने वाली है....और सुनिए कि चाचा शत्रुघ्न ने इस बार "खामोश" नहीं कहा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 638/2010/338 फ़ि ल्मी सितारों की आवाज़ें इन दिनों गूंज रही है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में, और शृंखला है 'सितारों की सरगम'। आज जिस आवाज़ की बारी है, उस आवाज़ की हम किसी गीत में कल्पना भी नहीं कर सकते, क्यों यह बुलंद आवाज़ तो लोगों को "ख़ामोश" करवाती आई है। इसलिए इस शख़्स द्वारा गाये गीत की कल्पना करना ज़रा मुश्किल हो जाता है। शत्रुघ्न सिंहा। जी हाँ, ॠषीकेश मुखर्जी निर्देशित १९८१ की फ़िल्म 'नरम गरम' में शत्रु साहब नें सुषमा श्रेष्ठ के साथ मिलकर एक युगल गीत गाया था, जो काफ़ी मशहूर भी हुआ। चाचा और भतीजी द्वारा गाया गया यह एक बड़ा ही मज़ेदार गीत है जिसके बोल हैं "एक बात सुनी है चाचा जी बतलाने वाली है, घर में एक अनोखी चीज़ आने वाली है"। चाचा बनें हैं शत्रु साहब और भतीजी हैं किरण वैरले। ये वही किरण हैं जिन्होंने 'नमकीन' फ़िल्म में छोटी बहन की भूमिका अदा की थी। भतीजी के उपर लिखे सवाल का चाचा जी यह कहते हुए जवाब देते हैं कि "हाँ रे भइया नें फिर कोई लड़की देखी है, तेरी चाची बुलडोज़र आने वाली है"। याद है न इस

पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए.....किशोर दा के साथ खूब रंग जमाया गायिका हेमा मालिनी ने इस गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 637/2010/337 'सि तारों की सरगम' लघु शृंखला में कल संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में आप नें सुना था अमिताभ बच्चन का गाया फ़िल्म 'लावारिस' का गीत। कल के ही अंक में आप नें जाना कि कल्याणजी-आनंदजी नें कई फ़िल्मी कलाकारों से गीत गवाये हैं। अशोक कुमार और अमिताभ बच्चन के गाये गीतों का ज़िक्र हमनें किया। फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' के "एक था गुल और एक थी बुलबुल" में इन्होंने नंदा से संवाद बुलवाये। इसी तरह शंकर जयकिशन नें भी 'संगम' के गीत "बोल राधा बोल" में वैयजंतीमाला, 'मेरा नाम जोकर' के गीत "तीतर के दो आगे तीतर" में सिमी गरेवाल और 'ऐन ईवनिंग् इन पैरिस' के गीत "आसमान से आया फ़रिश्ता" में शर्मीला टैगोर की आवाज़ ली। आइए आज कल्याणजी-आनंदजी के संगीत में आपको सुनवाते हैं ड्रीम-गर्ल की आवाज़। जी हाँ, ड्रीम-गर्ल यानी हेमा मालिनी। हेमा जी नें बेशुमार फ़िल्मों में यादगार अभिनय तो किया ही, लेकिन आज हम उन्हें याद कर रहे हैं एक गायिका के रूप में। हेमा मालिनी के गाये गीतों की अगर ब