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घर के उजियारे सो जा रे....याद है "डैडी" की ये लोरी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 789/2011/229

'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' - पुरुष गायकों की गाई फ़िल्मी लोरियों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की नवी कड़ी में आप सभी का मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ फिर एक बार स्वागत करता हूँ। आज की कड़ी के लिए हमनें जिस गीत को चुना है वह है १९८९ की फ़िल्म 'डैडी' का। फ़िल्म की कहानी पिता-पुत्री के रिश्ते की कहानी है। यह कहानी है पूजा की जिसे जवान होने पर पता चलता है कि उसका पिता ज़िन्दा है, जो एक शराबी है। पूजा किस तरह से उनकी ज़िन्दगी को बदलती है, कैसे शराब से उसे मुक्त करवाती है, यही है इस फ़िल्म की कहानी। बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है इस फ़िल्म की। पूजा को उसके नाना-नानी पाल-पोस कर बड़ा करते हैं और उसे अपनी मम्मी-डैडी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं। उसके नाना, कान्ताप्रसाद के अनुसार उसके डैडी की मृत्यु हो चुकी है। पर जब पूजा बड़ी होती है तब उसे टेलीफ़ोन कॉल्स आने लगते हैं जो केवल 'आइ लव यू' कह कर कॉल काट देता है। कान्ताप्रसाद को जब आनन्द नामक कॉलर का पता चलता है तो उसे पिटवा देते हैं और पूजा से न मिलने की धमकी देते हैं। पर एक दिन जब पूजा का एक बदमाश इज़्ज़त लूटने की कोशिश करता है तो आनन्द उसकी जान बचाता है और पूजा को पता चल जाता है यह बदसूरत और शराबी आनन्द ही उसका पिता है। पूजा और आनन्द की ज़िन्दगी किस तरह से मोड़ लेती है, यही है इस फ़िल्म की कहानी।

महेश भट्ट की इस फ़िल्म के माध्यम से पूजा भट्ट नें फ़िल्म के मैदान में कदम रखा था। डैडी की भूमिका में थे अनुपम खेर। बड़ी ख़ूबसूरत फ़िल्म है 'डैडी' और इस फ़िल्म के लिए अनुपम खेर को उस साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के 'फ़िल्मफ़ेयर क्रिटिक्स अवार्ड' से सम्मानित किया गया था। सूरज सनीम को सर्वश्रेष्ठ संवाद का 'फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड' से नवाज़ा गया था। और दोस्तों, सूरज सनीम नें ही इस फ़िल्म के तमाम गानें लिखे थे जिन्हें ख़ूब सराहना मिली। ख़ास तौर से तलत अज़ीज़ के गाये दो गीत - "आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे, मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगे" और "घर के उजियारे सो जा रे, डैडी तेरा जागे तू सो जा रे"। और यही दूसरा गीत, जो कि एक लोरी है, आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं। 'डैडी' के संगीतकार थे राजेश रोशन। राजेश रोशन की अन्य फ़िल्मों के संगीत से बिल्कुल भिन्न है 'डैडी' का संगीत। एक कलात्मक फ़िल्म में जिस तरह का संगीत होना चाहिए, राजेश जी नें बिल्कुल वैसा संगीत इस फ़िल्म के लिए तैयार किया था। और तलत अज़ीज़ की आवाज़ भी अनुपम खेर पर सटीक बैठी है। शायद जगजीत सिंह की आवाज़ भी सही रहती। अच्छा दोस्तों, जगजीत सिंह से याद आया कि तलत अज़ीज़ का पहला ऐल्बम, जो १९७९ में जारी हुआ था, उसका शीर्षक था 'Jagjit Singh presents Talat Aziz'। इस ऐल्बम तलत के लिए एक स्टेपिंग् स्टोन था, जिसे ख़ूब मकबूलियत हासिल हुई। मूलत: एक ग़ज़ल गायक, तलत अज़ीज़ नें कुछ गिनी-चुनी फ़िल्मों में भी पार्श्वगायन किया है जिनमें शामिल हैं 'उमरावजान', 'बाज़ार', 'औरत औरत औरत', 'धुन' और 'डैडी'। तो आइए सुना जाए तलत अज़ीज़ की मुलायम आवाज़ में इस लोरी को।



पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -
आज की पहली बिल्कुल सीधे सीधे पूछ रहे हैं। कुमार सानू और अनुराधा पौडवाल की गाई हुई एकमात्र फ़िल्मी लोरी है यह, बताइए कौन सी है?

पिछले अंक में


खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Sujoy Chatterjee said…
Chandrakant ji, is lori ki gaayika alka yagnik hain, anuradha paudwal nahi. thodi aur koshish keejiye.

Regards,
Sujoy

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