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धितंग धितंग बोले, मन तेरे लिए डोले....सलिल दा की ताल पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 768/2011/208

'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनो जारी लघु शृंखला 'पुरवाई' की आठवीं कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। आज हम आपके लिए लेकर आये हैं बंगाल की एक लोकगाथा, या रूपकथा (fairy-tale) भी कह सकते हैं। इस कहानी का शीर्षक है 'सात भाई चम्पा और एक बहन पारुल'। चम्पा और पारुल बंगाल में पाये जाने वाले पेड़ हैं। बहुत समय पहले सुन्दरपुर में एक राजा अपनी सात रानियों के साथ रहता था। वह राजा बहुत ही नेक और साहसी था और इमानदारी को हर चीज़ से उपर रखता था। इसलिए प्रजा भी उन्हें बहुत प्यार करती थी। पर उनके पहली छह रानियाँ बहुत ही स्वार्थी और क्रूर थीं और छोटी रानी से जलती थीं क्योंकि वह राजा की प्यारी थी। राजा के मन में बस एक दुख था कि उनका कोई सन्तान नहीं था। किसी भी रानी से उन्हें सन्तान प्राप्ति नहीं हुई। जैसे जैसे दिन गुज़रते गए, राजा एक सन्तान की आस में बेचैन होते गए। जब एक दिन उन्हें पता चला कि छोटी रानी गर्भवती है, तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। राजा नें एक दिन छोटी रानी को सोने का एक घण्टा के साथ सोने की एक चेन बांध कर दिया और कहा कि जैसे ही बच्चे का जन्म हो तो इस घण्टे को बजाना, और मैं तुरन्त तुम्हारे पास आ जाउंगा। यह कह कर राजा अपने कक्ष में चला गया। उधर बच्चे के जन्म के समय बाकी छह रानियाँ वहाँ मौजूद थीं। उनसे छोटी रानी का सुख देखा नहीं गया। छोटी रानी नें सात लड़के और एक लड़की को जन्म दिया। छोटी रानी तो बेहोश थी, बाकी रानियों ने मिल कर नवजातों को बगीचे में ले जा कर दफ़ना दिया। वापस आकर उन दुष्ट रानियों नें छोटी रानी के बगल में सात चूहे और एक केंकड़ा रख दिया। बड़ी रानी नें फिर घण्टा बजाया और राजा दौड़ कर वहाँ आया। चूहों और केंकड़े को देख कर रजा गुस्से से तिलमिला उठा, छोटी रानी को जादूगरनी और चुड़ैल कहते हुए अपने महल से जिकाल दिया। इस दुखभरी कहानी का और कोई न सही पर प्रकृति चश्मदीद गवाह थी। प्रकृति को यह अन्याय सहन नहीं हुई। इसके विरोध में प्रकृति नें उस राज्य में पेड़ों पर फूल खिलाने बन्द कर दिए, नदियाँ सूख गईं। राज्य में सूखा पड़ गया, राजा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। फिर एक दिन सुबह राज-पुरोहित भागा भागा राजा के पास आया और कहा - "महाराज, आश्चर्य की बात है कि जहाँ पूरे राज्य में कहीं कोई फूल नहीं खिला है, केवल आपके बगीचे में सात चम्पा और एक पारुल फूल खिले हुए हैं। पर जैसे ही मैं फूल तोड़ने लगा तो ऊंचाई पर चढ़ गए और कहा कि केवल राजा उन्हें तोड़ सकता है।" राजा भागते भागते बगीचे में गए, और जैसे ही उन फूलों को देखा तो उन्हें ऐसा लगा कि जैसे वो उन्हीं की सन्तानें हैं। राजा को देख कर पारुल नें अपने साथ भाई चम्पा फूलों को भी जगाया। उन फूलों नें राजा को आदेश दिया कि उनकी छोटी रानी को बुलाया जाए, केवल वो ही उन्हें छू सकती हैं। छोटी रानी को ढूंढ़ कर लाया गया और एक एक कर सारे फूल उनकी कदमों में गिर गए; पारुल एक सुन्दर राजकुमारी में परिवर्तित हो गई और साथ चम्पा भाई रूपान्तरित हो गए सात सुन्दर राजकुमारों में। फिर राजा अपनी छोटी रानी और आठ बच्चों के साथ सुखी-सुखी जीवन बिताने लगे।

दोस्तों, आप शायद यह सोच रहे होंगे कि हमने आपको चम्पा और पारुल की यह कहानी क्यों सुनाई? वह इसलिए कि आज हम जिस गीत की धुन पर आधारित गीत सुनवाने जा रहे हैं उस मूल गीत में भी इन्हीं चम्पा भाइयों और पारुल का ज़िक्र है। बल्कि दो गीत हैं, पहला गीत है "धितांग धितांग बोले, ए मादोले तान तोले, कार आनोन्दे उच्छोले आकाश भोरे जोछोनाय..... आय रे आय, लगन बोये जाय, मेघ गुर गुर कोरे चाँदेर शिमानाय, पारुल बोन डाके चम्पा छुटे आए..."। और दूसरा गीत है "सात भाई चम्पा जागो रे जागो रे...." (पारुल अपने सात चम्पा भाइयों को जगाते हुए यह गीत गा रही है)। इस धितांग धितांग बोले गीत की धुन पर आधारित गीत सलिल चौधरी नें ज़िया सरहदी निर्देशित 'महबूब प्रोडक्शन्स' की फ़िल्म 'आवाज़' के एक गीत में किया था, जिसके बोल थे "धितंग धितंग बोले, मन तेरे लिए डोले"। प्रेम धवन के लिखे और लता मंगेशकर और साथियों के गाये इस गीत में जहाँ बंगाल के संगीत की छाया है, वहीं इसके संगीत संयोजन में सलिल दा नें कई प्रान्तों के संगीत का प्रयोग किया है। लावणी की ताल से शुरु कर गोवा के लोक-संगीत की रिदम की तरफ़ कितनी सुन्दरता से ले गए हैं। पंकज राज अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में इस गीत के बारे में लिखते हैं कि "कैरेबियन बीट २-४ इस गीत में दादरा ताल ६-८ मात्रा बन कर अचम्भित कर देती है। ढोलक की तेज़ गति से लावणी का आभास देकर झटके से कोमल सुरों के साथ एकॉर्डियन और हारमोनियम की तरंग और फिर कोरस के साथ "आए रे आए प्यार के दिन आए" के साथ लहराते सुरों में इस गीत को बांधना सलिल की रचनात्मकता का अनुपम उदाहरण है।" तो दोस्तों, आइए इस गीत का आनन्द लिया जाए।



चलिए आज से खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
येसुदास की आवाज़ में ये गीत है जिसके मुखड़े में "मधुबन" शब्द आता है, पर ये पहला नहीं है

पिछले अंक में
अमित जी बहुत से हिंट दे देंगें तो आप पक्के हो जायेंगें कि फलां गीत है, जरा सा संशय रहने दीजिए, वैसे कल आपके बहुत सी कोशिशों में से एक सही निशाने पर टिका है बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

मधुबन खुशबू देता है
श्याम रंग रंगा रे
indu puri said…
चंपा और पारुल की कहानी बड़ी प्यारी लगी,शायद अब मैं इन पेड़ों को देखूं तो उन सात भाईयों और एक बहन का रूप आँखों के सामने आ जाये.मेरा क्या है कल्पनाओं के घोड़े किस दिशा में दौड जाए खुद नही जानती क्योंकि
ऐसीच हूँ मैं तो
और दिए गये हिंट पर तो वो ही एक गाना याद आ रहा है 'मधुबन खुशबु देता ......सूरज न बन पाए तो बनकर दीपक जलता चल,फूल मिले या अंगारे सच की राह पर चलता चल.
और.... इस राह पर चलने से बड़े जख्मी हुए हैं मेरे भी पाँव.बस एक सुकून है मन में.
वो पाए जो चलकर देखे तो.........
अमित जी के दूसरे विकल्प वाले गीत में लोक-ताल-वाद्य ‘खोल’ का अत्यंत आकर्षक प्रयोग है। अब तो इस वाद्य का इस्तेमाल धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। कल के अंक में इस गीत को सुनने की प्रतीक्षा है।
गाना प्ले नहीं हो पता, ईरर ओपनिंग फाइल का मैसेज आ जाता है, क्या करूँ ?
अभिषेक जी आप गूगल क्रोम पर साईट खोल कर देखिये सफलता मिलेगी

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