Skip to main content

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (२६)- प्रदीप चटर्जी नाम से कोई गीतकार नहीं -हरमंदिर सिंह 'हमराज़'

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में एक बार फिर आप सभी का हम स्वागत करते हैं। इस साप्ताहिक स्तंभ में हम साधारणतः 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' पेश किया करते हैं। कई बार यादों के ख़ज़ानें तो नहीं शामिल हो पाते, लेकिन जो भी पेश होता है वो ईमेल के बहाने से ही होता है। हर बार की तरह इस बार भी हम आप सभी से गुज़ारिश करते हैं कि इस शीर्षक को सार्थक करने के लिए आप अपने जीवन से जुड़ी किसी यादगार घटना या संस्मरण हमारे साथ बांटिये जिसे हम इस मंच के माध्यम से पूरी दुनिया के साथ बांट सके। ईमेल भेजने के लिए हमारा आइ.डी है oig@hindyugm.com।

दोस्तों, इसमें कोई शक़ नहीं कि इंटरनेट ने तथ्य तकनीकी और दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, और ऐसी क्रांति आई है, ऐसा बदलाव लाया है कि अब इंटरनेट के बिना सब काम काज जैसे ठप्प सा हो जाता है। लेकिन जिस तरह से हर अच्छे चीज़ के साथ कुछ बुरी चीज़ें भी समा जाती हैं, ऐसा ही कुछ इंटरनेट के साथ भी है। जी नहीं, हम अश्लील वेबसाइटों की बात नहीं कर रहे; हम तो बात कर रहे हैं ग़लत जानकारियों की जो इंटरनेट पर अपलोड होते रहते हैं। दरअसल बात यह है कि इंटरनेट पर हर कोई अपना तथ्य अपलोड कर सकता है, अपने ब्लॊग या वेबसाइट या किसी सोशल नेटवर्किंग् साइट के ज़रिए। ऐसे में किसी भी दी जा रही जानकारी की सत्यता पर प्रश्न-चिन्ह लग जाता है। अब कैसे हर बात पर यकीन करें कि जो बात हम किसी वेबसाइट पर पढ़ रहे हैं, वह सच भी है या नहीं! तभी तो 'रिसर्च-पेपर्स' या डाक्टरेट की थीसिस में इंटरनेट से प्राप्त तथ्यों का रेफ़रेन्स मान्य नहीं होता। हम भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आलेख लिखते वक़्त जब इंटरनेट पर शोध करते हैं किसी गीत या फ़िल्म पर, तब हमें भी कुछ गड़बड़ी वाले तथ्य नज़र आ जाते हैं, और ऐसा नहीं है कि हम ख़ुद कभी ग़लतियाँ नहीं करते, हमसे भी कई बार जाने-अंजाने ग़लतियाँ हो जाती हैं, और वही बात हम पर भी लागू हो जाती है।

दोस्तों, पिछले दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर चितलकर रामचन्द्र पर केन्द्रित लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' आयोजित की गई थी, जिसमें फ़िल्म 'पैग़ाम' का गीत शामिल हुआ था, जिसके बोल थे "दौलत ने पसीने को आज लात है मारी", जिसके गीतकार का नाम हमने बताया था कवि प्रदीप। अब क्योंकि कुछ वेबसाइटों पर इस फ़िल्म के गीतकार का नाम प्रदीप चटर्जी दिया गया है, तो हमारे कुछ मित्रों ने भी पहेली का जवाब देते वक़्त प्रदीप चटर्जी का नाम लिखा, जिस वजह से काफ़ी संशय पैदा हो गया गीतकार के नाम का। हम भी यकीन के साथ नहीं कर पाये कि क्या कवि प्रदीप और प्रदीप चटर्जी एक ही इंसान हैं या दो अलग। इंटरनेट पर काफ़ी खोजबीन करने के बाद भी जब मेरे हाथ कुछ ठोस ना लगा, तो मैंने सोचा कि क्यों ना उस इंसान से मदद माँगी जाये जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी हिंदी फ़िल्म गीत कोष तैयार करने में लगा दी है! जी हाँ, ठीक समझे आप, मैं हरमंदिर सिंह 'हमराज़' साहब की ही बात कर रहा हूँ। उन्होंने १९३१ से लेकर शायद १९९० तक के सभी फ़िल्मों के सभी गीतों को 'गीत-कोष' के रूप में प्रकाशित किया है और दशकों से 'लिस्नर्स बुलेटिन' नामक पत्रिका भी चला रहे हैं कानपुर से। तो मैंने जब हमराज़ जी को ईमेल भेजकर जानना चाहा कि आख़िर कवि प्रदीप और प्रदीप चटर्जी का क्या माजरा है और 'नास्तिक' और 'पैग़ाम' जैसी फ़िल्मों के गीतकार कौन हैं, तो उन्होंने तुरंत मेरे ईमेल का जवाब देते हुए कुछ ऐसा लिखा ---

"प्रदीप चटर्जी के नाम से कोई गीतकार १९३१ से लेकर अब तक इस फ़िल्म इण्डस्ट्री में नहीं हुए हैं। वो कवि प्रदीप ही थे, दादा साहब फाल्के सम्मानित, जिन्होंने 'नास्तिक' और 'पैग़ाम' में गीत लिखे हैं। यहाँ हर कोई आज़ाद है इंटरनेट पर लोगों को गुमराह करने के लिए। लखनऊ में एक डॊ. डी. सी. अवस्थी रहते हैं जिन्हें कवि प्रदीप पर शोध करने के लिए डाक्टरेट की डिग्री दी गई है।"

तो दोस्तों, आशा है आप सभी का संशय अब दूर हो गया होगा, प्रदीप चटर्जी नामक कोई गीतकार नहीं है, प्रदीप के नाम से जितने भी गीत आते हैं, वो सब कवि प्रदीप के ही लिखे हुए हैं, जिनका जन्म मध्य प्रदेश में हुआ है और जो बंगाली तो बिल्कुल नहीं हैं, इसलिए चटर्जी होने का सवाल ही नहीं। हाँ, आपकी जानकारी के लिए यह बता दूँ कि पंडित प्रदीप चटर्जी एक शास्त्रीय गायक ज़रूर हैं और यूट्युब में आप उनका गायन सुन सकते हैं। ख़ैर, अब आपको एक गीत सुनवाने की बारी है। कवि प्रदीप का लिखा एक ऐसा गीत आज सुनिए जिसे आप ने बहुत दिनों से नहीं सुना होगा, ऐसा हम दावा करते हैं। क्योंकि कवि प्रदीप का उल्लेख सी. रामचन्द्र पर केन्द्रित शृंखला में आयी है, इसलिए आज जिस गीत को हमने चुना है, उसे कवि प्रदीप ने लिखा और सी. रामचन्द्र ने ही स्वरबद्ध किया है। यह साल १९६० की फ़िल्म 'आँचल' का गीत है जिसे आशा भोसले, सुमन कल्याणपुर और सखियों ने गाया है। "नाचे रे राधा", यह एक नृत्य गीत है, बड़ा ही मीठा गाना है, हमें उम्मीद है कि गीत सुनते वक़्त आपके क़दम भी थिरक उठेगे, मचल उठेंगे। गीत की एक और खासियत है कि इसके दो वर्ज़न हैं, दोनों में वही आवाज़ें हैं लेकिन बोल अलग हैं। आइए ये दोनों वर्ज़न सुना जाये एक एक करके। गीत का संगीत संयोजन भी कमाल का है, बेहद सुरीला है। 'आँचल' वसंत जोगलेकर निर्देशित फ़िल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, नंदा, निरुपा रॊय और ललिता पवार। नंदा को इस फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था और ललिता पवार भी इसी पुरस्कार के लिए नामांकित हुई थीं।

गीत - नाचे रे राधा -१ (आँचल)


गीत - नाचे रे राधा -२ (आँचल)


तो दोस्तों, ये था इस हफ़्ते का 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने', आपको यह गीत सुनकर कैसा लगा ज़रूर बताइएगा, और हमें ईमेल ज़रुर कीजिएगा अपने सुझावों और अपने जीवन की किसी यादगार घटना के साथ, oig@hindyugm.com के पते पर।

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की