Skip to main content

तुम्हे बांधने के लिए मेरे पास और क्या है मेरा प्रेम है....पंडित नरेद्र शर्मा की साहित्यिक उपलब्धियों से कुछ कम नहीं उनका फ़िल्मी योगदान भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 521/2010/221

मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस नये सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। हिंदी साहित्य की अगर हम बात करें तो हमारे देश ने एक से एक महान साहित्यकारों को जन्म दिया है। ये वो साहित्यकार हैं जिनकी कलम ने समूचे जगत को बेशकीमती साहित्य प्रदान किया हैं। इन साहित्यकारों में से कई साहित्यकार ऐसे हैं जिन्होंने ना केवल अपने कलम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि अपने कलम के जादू से हिंदी फ़िल्म संगीत जगत को कुछ ऐसे नायाब गीत भी दिए हैं कि जिन्हें पा कर यह फ़िल्मी जगत धन्य हो गया है। ऐसे स्तरीय प्रतिभावान साहित्यकारों के लिखे गीतों ने फ़िल्म संगीत को कम ही सही, लेकिन एक बहुत ऊँचे स्तर तक पहुँचाया है। आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं कुछ ऐसे ही हिंदी भाषा के साहित्यकारों के फ़िल्मों के लिए लिखे हुए गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'दिल की कलम से'। इस शृंखला में हम ना केवल इन साहित्यकारों के लिखे गीत आपको सुनवाएँगे, बल्कि इन महान प्रतिभाओं के जीवन से जुड़ी कुछ बातें भी बताएँगे जिन्हें फ़िल्मी गीतकार के रूप में पाना हमारा सौभाग्य रहा है। "ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है", इस परम सत्य को उजागर करने वाले पंडित नरेन्द्र शर्मा से हम इस शृंखला की शुरुआत कर रहे हैं। पंडित जी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन सच तो यह है कि वो कहीं गये ही नहीं हैं, बल्कि बिखर गये हैं। उनके गीतों, कविताओं, और साहित्य से जब चाहे उन्हें पाया जा सकता है। पंडित नरेन्द्र शर्मा एक व्यक्ति नहीं, एक साथ कई व्यक्ति थे - श्रेष्ठ कवि, महान साहित्यकार, फ़िल्मी और ग़ैर फ़िल्मी गीतकार, दार्शनिक, आयुर्वेद के ज्ञाता, हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी के विद्वान, और उससे भी उपर एक महामनव। हमारे बौने हाथ उनकी उपलब्धियों को छू भी नहीं सकते।

पंडित नरेन्द्र शर्मा के लिखे फ़िल्मी गीतों में से हमने जिस गीत को आज चुना है, वह है फ़िल्म 'रत्नघर' का। संगीतकार सुधीर फड़के के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर की सुमधुर आवाज़ में यह गीत है "तुम्हे बांधने के लिए मेरे पास और क्या है मेरा प्रेम है"। बहुत ही मीठा गीत है। लेकिन इस मीठे गीत को सुनवाने से पहले आइए आपको पंडित नरेन्द्र शर्मा से जुड़ी कुछ और बातें बतायी जाए। सन् १९८९ की ११ फ़रवरी को पंडित जी का निधन हो गया था। एक आत्मा अपने पार्थिव देह को त्याग कर आकाश में विलीन हो गई जिसने यह देह ७६ साल पहले उत्तर प्रदेश के जहांगीरपुर में धारण किया था। वह दिन था २८ फ़रवरी १९१३। चार वर्ष की बालावस्था में ही अपने पिता की उंगली उनके हाथों से छूट गई और वो अपने परिवार में और भी लाडले हो गए। बचपन से ही कविताएँ उनकी साथी बने रहे और शिक्षा पूरी कर होते होते कवि के रूप में उन्हें ख्याति मिलने लगी। १९४३ में भगवती चरण वर्मा के साथ वे बम्बई आ गए और यहाँ आकर जुड़ गए फ़िल्म जगत से। उन्होंने पहली बार बॊम्बे टॊकीज़ की फ़िल्म 'हमारी बात' में गीत लिखे जिनके संगीतकार थे अनिल बिस्वास और अभिनेत्री थीं देविका रानी। पारुल घोष की आवाज़ इस फ़िल्म का "मैं उनकी बन जाऊँ रे" गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। बतौर गीतकार पंडित जी को प्रसिद्धी मिली बॊम्बे टॊकीज़ की ही फ़िल्म 'ज्वार भाटा' से जिसमें भी अनिल दा ही संगीतकार थे। इस फ़िल्म को अभिनय सम्राट दिलीप कुमार की पहली फ़िल्म होने का भी गौरव प्राप्त है। अरुण कुमार और साथियों के गाए "सांझ की बेला पंछी अकेला" गीत ने कवि और साहित्यकार पंडित नरेन्द्र शर्मा को एक फ़िल्मी गीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। फिर उसके बाद उन्होंने कई फ़िल्मों में गीत लिखे, जिनमें उल्लेखनीय हैं - उद्धार, आंधियाँ, अफ़सर, भाभी की चूड़ियाँ, रत्नघर, सत्यम शिवम सुंदरम, सुबह, प्रेम रोग। तो आइए 'दिल की कलम से' शृंखला की पहली कड़ी में सुनते हैं पंडित नरेन्द्र शर्मा के लिखे फ़िल्म 'रत्नघर' के इस सुंदर गीत को। मैंने इस गीत को इसलिए चुना है क्योंकि पंडित जी के लिखे तमाम गीतों में यह मेरा सब से पसंदीदा गीत है।



क्या आप जानते हैं...
कि 'विविध भारती' को यह नाम देने वाले और कोई नहीं बल्कि पंडित नरेन्द्र शर्मा ही थे।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०२ /शृंखला ०३
ये है गीत का प्रिल्यूड -


अतिरिक्त सूत्र - आवाज़ है रफ़ी साहब की इस गीत में.

सवाल १ - बताएं किस साहित्यकार का लिखा हुआ है ये गीत- २ अंक
सवाल २ - प्रहलाद शर्मा निर्देशित इस फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
तीसरी शृंखला की शुरूआत फीकी रही. केवल अवध जी ही एक अंक कमा पाए. आप सबकी दिवाली बहुत बढ़िया से मनी होगी. अब नए संग्राम के लिए कमर कस लीजिए :)

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Music Director : Shankaer Jaikishan
ShyamKant said…
Lyricist- Virendra Mishra
AVADH said…
महागुरु के उत्तर के बाद भी धृष्टता कर रहा हूँ.
मुझे लगता है कि संगीतकार हैं रवि (रवि शंकर शर्मा).
ग़ालिब ने कहा था कि "हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे/ कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाजेबयां और".
मेरे ख्याल से इस पहेली के साहित्यकार वोह हैं जिन्होंने ग़ालिब की इस सोच से उल्टा अपने पश्चात के लेखकों के बारे में मान लिया था कि उनसे अधिक अच्छे भी हो सकते हैं.
अवध लाल
AVADH said…
आज का गीत मैंने पहली बार सुना. सच है कितनी मधुर है लाता दीदी की आवाज़ और सुन्दर शब्द पंडित जी के.
पंडित नरेन्द्र शर्मा जी मेरी जानकारी के अनुसार विविध भारती के मुख्य संचालक (Director General)भी रहे. जैसा कि बताया गया है उन्होंने न केवल दिलीप कुमार की पहली फिल्म में गीत लिखे बल्कि Top Trinity के अन्य दोनों अर्थात देव आनंद और राज कपूर के भी निकटवर्ती रहे जिसका प्रमाण हैं इन दोनों की निर्मित फिल्मों में उनके गीत - अफसर और आंधियां (देव आनंद) और सत्यम शिवम सुन्दरम तथा प्रेम रोग (राज कपूर)
अवध लाल
chintoo said…
Film- Dhoop Chhaon
chintoo said…
This post has been removed by the author.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की