Skip to main content

ई मेल के बहाने यादों के खजाने - आज बारी है रोमेंद्र सागर जी की पसंद के गीत के

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस साप्ताहिक अंक में आप सभी का स्वागत है। 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का एक ऐसा स्तंभ है जिसमें हम आप ही की बात करते हैं, और आप ही के पसंद के गीत सुनवाते हैं। फ़िल्मी गीत हर किसी के जीवन से जुड़ा होता है। कुछ गीत अगर हमें अपने बचपन की यादें ताज़ा कर देते हैं तो कुछ जवानी के दिनों के। कुछ गीतों से हमारा पीछे छोड़ आया प्यार वापस ज़िंदा हो जाता है तो कुछ गीत हमारे जुदाई के दिनों के हमसफ़र बन जाते हैं। हम भी यही चाहते हैं कि आप अपनी इन खट्टी मीठी यादों को हमारे साथ बाँटें इस साप्ताहिक अंक के ज़रिए। कोई तो गीत ऐसा ज़रूर होगा जिसे सुनकर आपको कोई ख़ास बात अपनी ज़िंदगी की एकदम से याद आ जाती होगी! तो लिख भेजिए हमें oig@hindyugm.com के पते पर, ठीक उसी तरह से जिस तरह हमारे दूसरे साथी लिख भेज रहे हैं।

और अब आज के फ़रमाइशी गीत की बारी। इस बार लिखने वाले हैं हमारे रोमेन्द्र सागर साहब। रोमेन्द्र जी लिखते हैं ----

"अनीता सिंह जी की फरमाईश को देखा तो कुछ अपना भी मन मचल सा गया !एक गीत है मुकेश की आवाज़ में ...फिल्म "मन तेरा तन मेरा" से ....बोल कुछ इस तरह से हैं :- "ज़िंदगी के मोड़ पर हम तुम मिले और खो गए ,अजनबी थे और फिर हम अजनबी से हो गए ..."

वाह रोमेन्द्र जी, किस भूले बिसरे गीत की आपने याद दिला दी है! सिर्फ़ गीत ही नहीं, मेरा ख़याल है कि 'मन तेरा तन मेरा' फ़िल्म का नाम भी लोग भूल चुके होंगे। यह १९७१ की फ़िल्म थी जिसके निर्देशक थे बी. आर. इशारा, जिन्होंने इस गीत को लिखा भी है। भले ही बी. आर. इशारा ने इस गीत को लिखा है, लेकिन इशारा साहब जाने जाते हैं बतौर फ़िल्म निर्देशक। ७० के दशक में उनकी बनाई फ़िल्में काफ़ी लोकप्रिय हुए थे। १९६९ और १९९६ के बीच उन्होंने कुल ३४ हिंदी फ़िल्मों का निर्माण/निर्देशन किया। उन्होंने ही अभिनेत्री परवीन बाबी को अहमदाबाद विश्वविद्यालय से खोज निकाला था। ७० के दशक में बनीं उनकी कुछ उल्लेखनीय फ़िल्में रहीं 'चेतना', 'मान जाइए', 'एक नज़र', 'मिलाप', और 'दिल की राहें'। ८० के दशक में 'वो फिर आयेगी' काफ़ी चर्चित हॊरर फ़िल्म थी।

और अब बात करते हैं इस गीत के संगीतकार सपन-जगमोहन की। दरअसल यह भी एक संगीतकार जोड़ी है सपन सेनगुप्ता और जगमोहन बक्शी की। सपन - जगमोहन ने हिंदी फ़िल्मों में पदर्पण किया १९६३ की फ़िल्म 'बेगाना' के ज़रिए और उसी फ़िल्म से चर्चा में आ गये थे। रफ़ी के गाये और शैलेन्द्र के लिखे "फिर वो भूली सी याद अई है" को ज़बरदस्त कामयाबी मिली थी। इसी फ़िल्म में मुकेश का "न जाने कहाँ खो गया वो ज़माना" अधिक लोकप्रिय तो नहीं हुआ, पर आगे चलकर मुकेश सपन जगमोहन के मुख्य गायक के रूप में जाने गये। 'मन तेरा तन मेरा' में मुकेश के गाये इस गीत को ज़्यादा तो नहीं सुना गया लेकिन दर्द की भावयुक्त अभिव्यक्ति के कारण सुनने में अच्छा लगता है। रूपक ताल में कम्पोज़ इस गीत के अंतरे के बाद और मुखड़े पर वापस लौटने के बीच का सरोद का तीव्र प्रयोग बहुत प्रभावशाली बन पड़ा है। तो आइए इस सुंदर लेकिन विस्मृत गीत को सुनें और शुक्रिया अदा करें रोमेन्द्र सागर जी का जिन्होंने इस गीत की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित किया।

गीत - ज़िंदगी के मोड़ पर हम तुम मिले और खो गये (मन तेरा तन मेरा)


तो ये था आज का 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने'। अगले हफ़्ते आप ही में से फिर किसी दोस्त की यादों और गीत के साथ उपस्थित होंगे। अब आप से अगली मुलाक़ात होगी रविवार की नियमित कड़ी में, इन दिनों चल रहे 'गीत गड़बड़ी वाले' शृंखला के अंतर्गत। तब के लिए अनुमति दीजिए, नमस्कार!

सुजॉय चट्टर्जी

Comments

अचानक "आवाज़: पर अपनी पसंद देख अच्छा लगा !गीत तो खूबसूरत है ही , आपकी सविस्तार जानकारी ने तो सोने पर सुहागा का काम कर दिखाया ...या यूँ कहे कि रसगुल्ले के संग चाशनी ( भई - त्योहारों का मौसम है ) हार्दिक धन्यवाद !!
< सागर >

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की