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बिन तोड़े पीसे कड़वी सुपारी का स्वाद चखा कुहू, वी डी और ऋषि ने मिलकर

Season 3 of new Music, Song # 13

देखते ही देखते आवाज़ संगीत महोत्सव अपने तीसरे संस्करण में तेरहवें गीत पर आ पहुंचा है, हमारे बहुत से श्रोताओं की शिकायत रही है कि हम कुछ ऐसे गीत नहीं प्रस्तुत करते जो आज कल के फ़िल्मी गीतों को टक्कर दे सकें, तो इसे हमारे संगीतकारों ने एक चुनौती के तौर पर लिया है, और आपने गौर किया होगा कि इस सत्र में हमने बहुत से नए जोनरों पर नए तजुर्बे किये हैं. ऐसी ही एक कोशिश आज हो रही है, एक फ़िल्मी आइटम गीत जैसा कुछ रचने की, पर यहाँ भी हमने अपनी साख नहीं खोयी है. "बाबूजी धीरे चलना" से "बीडी जलाई ले" तक जाने कितने ऐसे आइटम गीत बने हैं जो सरल होते हुए भी कहीं न कहीं गहरी चोट करते है. ये गीत भी कुछ उसी श्रेणी का है. दोस्तों, इश्क मोहब्बत को फ़िल्मी गीतकारों ने दशकों से नयी नयी परिभाषाओं में बाँधा है, हमारे "इन हाउस" गीतकार विश्व दीपक तन्हा ने भी एक नया नाम दिया है इस गीत में मोहब्बत को. ऋषि एस, जो अमूमन अपने मेलोडियस गीतों के लिए जाने जाते हैं एक अलग ही दुनिया रचते हैं इस गीत में, और कुहू अपनी आवाज़ का एक बिलकुल ही नया रंग लेकर उतर जाती है गीत की मस्ती में. यही हमारे इन कलाकारों की सबसे बड़ी खासियत है कि ये हमेशा ही कुछ नया करने की चाह में रहते हैं और दोहराव से बचना चाहते हैं, बिलकुल वैसे ही जैसे पुराने दौर के फनकार होते थे इन मामलों में. तो सुनिए आज का ये ओर्जिनल गीत.

गीत के बोल -

ये कड़वी कड़वी कड़वी……
कड़वी सुपारी….

अब मैं
छिल-छिल मरूँ…
या घट-घट जिऊँ
तिल-तिल मरूँ
या कट-कट जिऊँ

जिद्दी आँखें….
आँके है कम जो इसे,
फाँके बिन तोड़े पिसे,
काहे फिर रोए, रिसे…

कड़वी सुपारी है,
मिरची करारी है…
कड़वी सुपारी है…… हाँ

कड़वी सुपारी है,
चुभती ये आरी है…
कड़वी सुपारी है…… हाँ

तोलूँ क्या? मोलूँ क्या?
क्या खोया …बोलूँ क्या?
घोलूँ क्या? धो लूँ क्या?
ग़म की जड़ी……

होठों के कोठों पे
जूठे इन खोटों पे
हर लम्हा सजती है
हर लम्हा रजती है…

टुकड़ों की गठरी ये
पलकों की पटरी पे
जब से उतारी है
…… नींदें उड़ीं!!

आशिक तो यारों
बला का जुआरी है
तभी तो कभी तो
बने ये भिखारी है……

मानो, न मानो
पर सच तो यही है
मोहब्बत बड़ी हीं
कड़वी सुपारी है…

गीत अब यहाँ उपलब्ध है

कड़वी सुपारी है मुजीबु पर भी, जहाँ श्रोताओं ने इसे खूब सराहा है देखिये यहाँ

मेकिंग ऑफ़ "कड़वी सुपारी" - गीत की टीम द्वारा

ऋषि एस: ये गीत फिर से एक कोशिश है एक नए जौनर पर काम करने की जिस पर मैंने पहले कभी काम नहीं किया, ये तीसरी बार है जब, वी डी, कुहू और मैंने एक साथ काम किया है. मैंने गीत का खाका रचा और इन दोनों ने उसमें सांसें फूंक दी है...बस यही कहूँगा

कुहू गुप्ता:काफी समय से हम लोग कुछ अलग तरह का गाना करना चाह रहे थे और एक दिन ऋषि इस गाने को ले आये जो बॉलीवुड मायने में कुछ कुछ एक आइटम नंबर जैसा था. मुझे उनका ये एक्सपेरिमेंट बहुत पसंद आया और कडवी सुपारी का राज़ खुलने का तरीका भी जो विश्व दीपक ने बखूबी लिखा है. ऋषि का हर गाना सुनने में बड़ा आसान लगता है लेकिन जब गाने बैठो तो तरह तरह की तकलीफें होती हैं :) ख़ासकर इस गाने में मुझे vibratos और volume dynamics एक ही साथ लेनी थी जो मेरे लिए एक चुनौती थी. आशा करती हूँ इस तकनीक को मैं वैसा निभा पायी हूँ जैसा ऋषि ने गाना बनाते वक्त सोचा था. इस तरह का आईटम नंबर गाना और वो भी ओरिजिनल, मेरे लिए एक बहुत ही नया और नायाब अनुभव था और गाना पूरा होने के बाद बहुत संतुष्टि भी हुई.

विश्व दीपक तन्हा:इस गाने के बोल पहले लिखे गए या फिर ट्युन पहले तैयार हुआ.. इसका फैसला आसान नहीं। हर बार की तरह ऋषि जी ने मुझे ट्युन भेज दिया और इस बार पूरे गाने का ट्युन था.. ना कि सिर्फ़ मुखरे का। मैंने दो-चार बार पूरा का पूरा ट्युन सुना .. और शब्दों की खोज में लग गया। कुछ देर बाद न जाने कैसे मेरे दिमाग में "कड़वी सुपारी है" की आमद हुई और फिर मैं भूल हीं गया कि मैं कोई गाना लिखने बैठा था और उस रात गाने के बदले एक कविता की रचना हो गई। अगली रात जब ऋषि जी ने पूछा कि गाना किधर है तो मैंने अपनी मजबूरी बता दी। फिर उन्होंने कहा कि अच्छा कविता हीं दो.. मैं कुछ करता हूँ। और फिर उस रात हम दोनों ने मिलकर आधी पंक्तियाँ कविता से उठाकर ट्युन पर फिट कीं और आधी नई लिखी गईं। और इस तरह मज़ाक-मज़ाक में यह गाना तैयार हो गया :) गाना किससे गवाना है, इसके बारे में कोई दो राय थी हीं नहीं। दर-असल कुहू जी ने हमसे पहले हीं कह रखा था कि उन्हें एक आईटम-साँग करना है। ऋषि जी के ध्यान में यह बात थी और इसी कारण यह गाना शुरू किया गया था। फ़ाईनल प्रोडक्ट आने के बाद जब कुहू जी को सुनाया गया तो उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी और रिकार्ड होने के बाद हमारे आश्चर्य की। उम्मीद करता हूँ कि हमारा यह प्रयास सबों को पसंद आएगा। यह गाना एक प्रयोग है, इसलिए इसे पर्याप्त समय दें..
कुहू गुप्ता
पुणे में रहने वाली कुहू गुप्ता पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। गायकी इनका जज्बा है। ये पिछले 6 वर्षों से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रही हैं। इन्होंने राष्ट्रीय स्तर की कई गायन प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया है और इनाम जीते हैं। इन्होंने ज़ी टीवी के प्रचलित कार्यक्रम 'सारेगामा' में भी 2 बार भाग लिया है। जहाँ तक गायकी का सवाल है तो इन्होंने कुछ व्यवसायिक प्रोजेक्ट भी किये हैं। वैसे ये अपनी संतुष्टि के लिए गाना ही अधिक पसंद करती हैं। इंटरनेट पर नये संगीत में रुचि रखने वाले श्रोताओं के बीच कुहू काफी चर्चित हैं। कुहू ने हिन्द-युग्म ताजातरीन एल्बम 'काव्यनाद' में महादेवी वर्मा की कविता 'जो तुम आ जाते एक बार' को गाया है, जो इस एल्बम का सबसे अधिक सराहा गया गीत है। इस संगीत के सत्र में भी यह इनका पांचवा गीत है।

ऋषि एस
ऋषि एस॰ ने हिन्द-युग्म पर इंटरनेट की जुगलबंदी से संगीतबद्ध गीतों के निर्माण की नींव डाली है। पेशे से इंजीनियर ऋषि ने सजीव सारथी के बोलों (सुबह की ताज़गी) को अक्टूबर 2007 में संगीतबद्ध किया जो हिन्द-युग्म का पहला संगीतबद्ध गीत बना। हिन्द-युग्म के पहले एल्बम 'पहला सुर' में ऋषि के 3 गीत संकलित थे। ऋषि ने हिन्द-युग्म के दूसरे संगीतबद्ध सत्र में भी 5 गीतों में संगीत दिया। हिन्द-युग्म के थीम-गीत को भी संगीतबद्ध करने का श्रेय ऋषि एस॰ को जाता है। इसके अतिरिक्त ऋषि ने भारत-रूस मित्रता गीत 'द्रुजबा' को संगीत किया। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में भी एक गीत का निर्माण किया। भारतीय फिल्म संगीत को कुछ नया देने का इरादा रखते हैं।

विश्व दीपक तन्हा
विश्व दीपक हिन्द-युग्म की शुरूआत से ही हिन्द-युग्म से जुड़े हैं। आई आई टी, खड़गपुर से कम्प्यूटर साइंस में बी॰टेक॰ विश्व दीपक इन दिनों पुणे स्थित एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। अपनी विशेष कहन शैली के लिए हिन्द-युग्म के कविताप्रेमियों के बीच लोकप्रिय विश्व दीपक आवाज़ का चर्चित स्तम्भ 'महफिल-ए-ग़ज़ल' के स्तम्भकार हैं। विश्व दीपक ने दूसरे संगीतबद्ध सत्र में दो गीतों की रचना की। इसके अलावा दुनिया भर की माँओं के लिए एक गीत को लिखा जो काफी पसंद किया गया।
Song - Kadvi Supari
Voice - Kuhoo Gupta
Backup voice - Rishi S
Music - Rishi S
Lyrics - Vishwa Deepak Tanha
Graphics - samarth garg


Song # 13, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm

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Comments

लीजिए जनाब, आईटम गीत की भी कमी पूरी ही गयी....एक गीतकार के तौर पर कहूँ इस तरह के गीतों में बहुत मज़ा आता है, एक तो आपको शरारत करने की छूट होती है और दूसरा कुछ इन्नोवेटिव भी करने का मौका होता है बिलकुल वैसे ही जैसा वी डी ने इस गाने में किया है....proud of u vd, ऋषि और कुहू की ये कोशिश निश्चित ही बधाई के योग्य है.....in fact i should say that i am proud of my whole musical family of awaaz :) keep it up guys
AVADH said…
मैं भी सजीव की बात से पूरा इत्तेफाक रखता हूँ.
बिलकुल ५०- ६० के दशक के गीत और गीता दत्त की आवाज़ की तरह के गाने का मज़ा मिला.
Kudos to all you guys.Way to go. Keep it up.
अवध लाल
Biswajeet said…
Kuhu, aapki awaz bahut mithi hai, kadwi supari song bhi mithi lag rahi hai. Rishi ke har composition mein nayapan, nayi tazgi dekhne mil rahe hai. Aur VD sahb ke bare mein kya kahu, enke kalam se jo chiz nikalti hai wo bahut khubsoorat hoti hai
abhipsa said…
ek professional, commercial and mind blowing geet hindyugmpar sunane ko mila... geet sachmuch hi class likha gyaa... composition is good.. commercially recorded hota to programming ki kami bhi door ho jaati... mujhe bahut accha lagaa geet sunkar

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