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Showing posts from September, 2009

रात के राही थम न जाना....लता की पुकार, साहिर के शब्दों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 218 'मे री आवाज़ ही पहचान है' शृंखला की आज की कड़ी में लता जी के जिस दुर्लभ नग़मे की बारी है, उसके गीतकार और संगीतकार हैं साहिर लुधियानवी और सचिन देव बर्मन, जिन्होने एक साथ बहुत सारी फ़िल्मों के गानें बनाए हैं। और लगे हाथ आप को यह भी बता दें कि बहुत जल्द हम इस गीतकार- संगीतकार जोड़ी के गीतों से सजी एक पूरी की पूरी शृंखला आप की सेवा में प्रस्तुत करने जा रहे हैं। तो आज जिस गीत को हमने चुना है, या युं कहें कि आज के लिए जिस गीत को लता जी के अनन्य भक्त नागपुर निवासी अजय देशपाण्डे ने हमें चुन कर भेजा है, वह गीत है फ़िल्म 'बाबला' का, "रात के राही थक मत जाना, सुबह की मंज़िल दूर नहीं"। एक बहुत ही आशावादी गीत है जिसके हर एक शब्द में यही सीख दी गई है कि दुखों से इंसान को कभी घबराना नहीं चाहिए, हर रात के बाद सुबह को आना ही पड़ता है। इस तरह आशावादी रचनाएँ बहुत सारी यहाँ बनी हैं और जिनमें से बहुत सारे बेहद लोकप्रिय भी हुए हैं। लेकिन फ़िल्म 'बाबला' के इस गीत को बहुत ज़्यादा नहीं सुना गया है और समय के साथ साथ मानो इस गीत पर धूल सी जम गयी है। आ

दुखियारे नैना ढूँढ़े पिया को... इन्दीवर के बोल और लता के स्वर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 217 'मे री आवाज़ ही पहचान है' के तहत इन दिनों आप सुन रहे हैं लता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीत जिन्हे चुनकर हमें भेजा है नागपुर निवासी अजय देशपाण्डे ने। अब तक आप ने जिन संगीतकारों की रचनाएँ इस शृंखला में सुने, वे थे खेमचंद प्रकाश, मास्टर ग़ुलाम हैदर, हुस्नलाल भगतराम, पंडित गोबिन्दराम और सी. रामचन्द्र। आज जिस संगीतकार की बारी है, वो एक ऐसे संगीतकार रहे जिनके साथ लता जी का भाई बहन का गहरा रिश्ता बना और इन दोनों ने मिलकर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने को कुछ इस तरह समृद्ध किया कि आज दशकों बाद भी उन तमाम सुरीली मोतियों से रोशन है यह ख़ज़ाना। इन दोनों ने ख़ास कर फ़िल्मी ग़ज़लों की धारा ही बदल दी और उन्हे आम गीतों की तरह लोकप्रिय बनाया। जी हाँ, हम आज संगीतकार मदन मोहन की ही बात कर रहे हैं। अपने मदन भ‍इया के बारे में लता जी ने समय समय पर कई इंटरव्यू में कहे हैं, आज भी हम ऐसी ही एक इंटरव्यू के अंश लेकर उपस्थित हुए हैं। लता जी का यह इंटरव्यू अमीन सायानी ने कुछ साल पहले लिया था। " मदन भ‍इया के बारे में मैं यही कहूँगी कि जब भी रिकार्डिंग होती थी त

घायल जो करने आए वही चोट खा गए........"गुमनाम" के शब्द और "रेशमा" आपा का दर्द

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४९ ब ड़े दिनों के बाद ऐसा हुआ कि महफ़िल में हाज़िरी लगाने के मामले में सीमा जी पिछड़ गईं और महफ़िल का मज़ा कोई और लूट गया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पिछली महफ़िल की प्रश्न-पहेली की। वैसे अगर शरद जी के लिए कुछ कहना हो तो हम यही कहेंगे कि "बड़े दिनों के बाद उन बेवतनों को याद वतन की मिट्टी आई है।" यूँ तो आप महफ़िल से कभी भी गायब नहीं हुए लेकिन ऐसा आना भी क्या आना कि आने की खबर न हो। वैसे तो हम सीधे-सादे गणित में अंकों का हिसाब लगाया करते हैं, लेकिन इस बार हमने सोचा कि क्यों न अंकों के मायाजाल में थोड़ा उलझा जाए। तो अगर हम ४७वीं कड़ी की प्रश्न-पहेली के अंकों को देखें तो हिसाब कुछ यूँ था: सीमा जी: ४ अंक, शरद जी: २ अंक और शामिख जी: १ अंक। अब हम इन अंकों को एक चक्रीय क्रम में आगे की ओर सरका देते हैं। फिर जो हिसाब बनता है, वही पिछली कड़ी की अंक-तालिका है यानि कि सीमा जी: १ अंक, शरद जी: ४ अंक और शामिख जी: २ अंक। अब बारी है आज के प्रश्नों की| तो ये रहे प्रतियोगिता के नियम और उसके आगे दो प्रश्न: ५० वें अंक तक हम हर बार आपसे दो सवाल पूछेंगे जिसके जवाब उस दिन के या फिर पि

मुस्कुराहट तेरे होंठों की मेरा सिंगार है....लता जी का हँसता हुआ चेहरा संगीत प्रेमियों के लिए ईश्वर का प्यार है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 216 आ ज २८ सितंबर का दिन फ़िल्म संगीत के लिए एक बेहद ख़ास दिन है। क्यों शायद बताने की ज़रूरत नहीं। लता जी को ईश्वर दीर्घायु करें, उन्हे उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें, लता जी के जन्मदिन पर हम तह-ए-दिल से उन्हे मुबारक़बाद देते हैं। आज है साल २००९। आज से ८० साल पहले १९२९ को लता जी का जन्म हुआ था मध्य प्रदेश के इंदौर में। दोस्तों आज मौका है लता जी के जन्मदिन का, तो क्यों ना आज हम उन्ही से जानें उनकी जनम के बारे में। एक बार अमीन सायानी ने लता जी का एक इंटरव्यू लिया जिसमें उन्होने लता जी को कई 'कॊन्ट्रोवर्शियल' सवालों के जाल से घेर लिया था, लेकिन लता जी हर बार जाल को चीरते हुए बाहर निकल आईं थीं। उन सवालों में से एक सवाल यह भी था - "कुछ लोगों का ख़याल है कि कुछ सस्पेन्स सा आप ने क्रीएट किया हुआ है कि आप कहाँ पैदा हुईं थीं। कुछ कहते हैं गोवा में पैदा हुईं थीं, कुछ कहते हैं धुले में, कुछ इंदौर में, तो कुछ कहीं और का बताते हैं। तो आप बताइए कि आप कहाँ पैदा हुईं थीं?" लता जी का बेझिझक जवाब था - "नहीं, इसमें कोई सस्पेन्स नहीं है अमीन भाई, मेरा जनम इंदौर

जश्न है जीत का...सा रे गा मा चुनौती से नाबाद लौटे प्रोमिसिंग गायक अभिजीत घोषाल अपने "ड्रीम्स" लेकर अब पहुँच गए हैं "लन्दन"

ताजा सुर ताल (25) ताजा सुर ताल में आज सुनिए उभरते हुए गायक अभिजीत घोषाल का "लन्दन ड्रीम्स" सुजॉय - सजीव, क्या आपने एक बात पर ग़ौर किया है? सजीव - कौन सी बात? सुजॉय - यही कि आजकल जो भी फ़िल्में बन रही हैं, उनमें से ज़्यादातर के शीर्षक अंग्रेज़ी हैं। जैसे कि 'ब्लू', 'ऑल दि बेस्ट', 'वेक अप सिद', 'व्हट्स योर राशी?', 'वांटेड', 'थ्री', वगैरह वगैरह । सजीव - बात तो सही है तुम्हारी। तो क्या आज हम किसी ऐसी ही फ़िल्म का गीत सुनवाने जा रहे हैं जिसका शीर्षक अंग्रेज़ी में है? सुजॉय - बिल्कुल ठीक समझे आप। आज हम चर्चा करेंगे 'लंदन ड्रीम्स‍' की और इस फ़िल्म का एक गीत भी बजाएँगे। इस फ़िल्म के निर्माता हैं आशिन शाह, निर्देशक हैं विपुल शाह, संगीत शंकर अहसान लोय का, गीतकार प्रसून जोशी, और इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं सलमान ख़ान, अजय देवगन, आसिन थोट्टुम्कल, रणविजय सिंह, बृंदा पारेस्ख, ओम पुरी, ख़ालिद आज़्मी और आदित्य रोय कपूर। सजीव - यानी कि मल्टि-स्टारर फ़िल्म है यह। और ये जो रणविजय है, ये वही है ना MTV Roadies वाले? सुजॉय - हाँ बिल्कुल

मैं हूँ कली तेरी तू है भँवर मेरा, मैं हूँ नज़र तेरी तू है जिगर मेरा...लता का एक दुर्लभ गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 215 ल ता मंगेशकर के गाए कुछ भूले बिसरे और दुर्लभ गीतों पर आधारित हमारी विशेष शृंखला आप इन दिनों सुन रहे हैं 'मेरी आवाज़ ही पहचान है'। अब तक आप ने कुल ४ गानें सुने हैं जो ४० के दशक की फ़िल्मों से थे। आइए आगे बढ़ते हुए प्रवेश करते हैं ५० के दशक में। सन् १९५१ में एक फ़िल्म आयी थी 'सौदागर'। 'वेस्ट हिंद पिक्चर्स' के बैनर तले बनी इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे नासिर ख़ान और रेहाना। पी. एल. संतोषी के गीत थे और सी. रामचन्द्र का संगीत। दोस्तों, इससे पहले हम ने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पी. एल. संतोषी और सी. रामचन्द्र के जोड़ी की बातें भी कर चुके हैं और 'शिन शिना की बबला बू' फ़िल्म के गीत "तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोये" सुनवाते वक़्त संतोषी साहब और रेहाना से संबंधित एक क़िस्सा भी बताया था। अगर आप ने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हाल ही में क़दम रखा है तो उस आलेख को यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। इस गीत के अलावा पी. एल. संतोषी, सी. रामचन्द्र और लता जी की तिकड़ी का जो एक और गीत हमने आप को यहाँ सुनवाया है व

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का शक्ति विशेषांक

इंटरनेटीय कवि सम्मेलन का 15वाँ अंक रश्मि प्रभा खुश्बू इन दिनों पूरे भारतवर्ष में दुर्गा पूजा की धूम है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देवी दुर्गा शक्तिरूप हैं। शक्ति का एक नाम ऊर्जा भी है। भारतीय दर्शन में ऊर्जा को ही अंतिम सत्य माना गया है। यदि हम पदार्थों के विभाजन की क्वार्क संकल्पना से भी सूक्ष्मत्तम किसी अविभाजित ईकाई की कल्पना करें तो वह भी ऊर्जा का ही समग्र रूप होगा। यानी ऊर्जा मूल में है, शक्ति मूल में है। शायद तभी कहते हैं कि तमाम तरह के गुणधर्मों से युक्त शिव भी बिना शक्ति के शव (मृत) है। हम इस शक्ति के विभिन्न रूपों से हमेशा ही अपने जीवन में एकाकार होते रहते हैं। इस बार का पॉडकास्ट कवि सम्मेलन शक्ति के व्यापक रूपों की पड़ताल करने की एक कोशिश है। पिछली बार की तरह अपनी समर्थ आवाज़ और संचालन से शक्ति के विभिन्न स्वरों को पिरोने का काम किया है कवयित्री रश्मि प्रभा ने और तकनीकी ताना-बाना खुश्बू का है। श्रोताओं को याद होगा कि सितम्बर माह के इस कवि-सम्मेलन के लिए हमने 'शक्ति' को विषय के रूप में चुना था। अब तो यह आप ही बतायेंगे कि इसे सफल बनाने में हमारी टीम ने कितनी शक्ति लगा

इतना भी बेकसों को न आसमान सताए...पंडित गोविन्दराम के सुरों के लिए स्वर मिलाये लता ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 214 "मु झसे चलता है सर-ए-बज़्म सुखन का जादू, चांद ज़ुल्फ़ों के निकलते हैं मेरे सीने से, मैं दिखाता हूँ ख़यालात के चेहरे सब को, सूरतें आती हैं बाहर मेरे आइने से। हाँ मगर आज मेरे तर्ज़-ए-बयाँ का ये हाल, अजनबी कोई किसी बज़्म-ए-सुखन में जैसे, वो ख़यालों के सनम और वो अलफ़ाज़ के चांद, बेवतन हो गए अपने ही वतन में जैसे। फिर भी क्या कम है, जहाँ रंग ना ख़ुशबू है कोई, तेरे होंठों से महक जाते हैं अफ़कार मेरे, मेरे लफ़ज़ों को जो छू लेती है आवाज़ तेरी, सरहदें तोड़ के उड़ जाते हैं अशार मेरे। तुझको मालूम नहीं या तुझे मालूम भी हो, वो सिया बख़्त जिन्हे ग़म ने सताया बरसों, एक लम्हे को जो सुन लेते हैं तेरा नग़मा, फिर उन्हें रहती है जीने की तमन्ना बरसों। जिस घड़ी डूब के आहंग में तू गाती है, आयतें पढ़ती है साज़ों की सदा तेरे लिए, दम ब दम ख़ैर मनाते हैं तेरी चंग़-ओ-रबाब, सीने नए से निकलती है दुआ तेरे लिए। नग़मा-ओ-साज़ के ज़ेवर से रहे तेरा सिंगार, हो तेरी माँग में तेरी ही सुरों की अफ़शाँ, तेरी तानों से तेरी आँख में रहे काजल की लक़ीर, हाथ में तेरे ही गीतों की हिना हो रखशाँ।"

बोर - हरिशंकर परसाई

सुनो कहानी: हरिशंकर परसाई की "बोर" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में काका हाथरसी की कहानी "प्यार किया तो मरना क्या" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य " बोर ", जिसको स्वर दिया है नितिन व्यास ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 12 मिनट 33 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी मैंने कहा, "तुझे बालों की पडी है, यहाँ मेरी गर्दन कट रही है।" ( हरिशंकर परसाई की "बोर" से एक अंश ) नीच

चाहे चोरी चोरी आओ चाहे चुप चुप आओ....सुनिए लता का ये दुर्लभ अंदाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 213 जा री है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर लता मंगेशकर के गाए हुए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीतों की एक बेहद ख़ास शृंखला 'मेरी आवाज़ ही पहचान है'। १९४७ और १९४८ की दो फ़िल्मों के गीत सुनने के बाद आज हम एक साल और आगे बढ़ते हैं, यानी कि १९४९ में। लता जी के संगीत सफ़र का शायद सब से महत्वपूर्ण साल रहा होगा यह। क्यों ना हो, 'महल', 'बरसात', 'बाज़ार', 'एक थी लड़की', 'लाहौर', और 'बड़ी बहन' जैसी फ़िल्मों में एक से एक सुपरहिट गीत गा कर लता जी एक दम से अग्रणी पार्श्व गायिका बन गईं। उनके इस तरह से छा जाने पर जैसे फ़िल्म संगीत की धारा ने एक नया मोड़ ले लिया हो! इन तमाम फ़िल्मों के संगीतकार थे खेमचंद प्रकाश, शंकर जयकिशन, विनोद, श्यामसुंदर, और हुस्नलाल भगतराम। १९४९ में फ़िल्म जगत की पहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल भगतराम के संगीत से सज कर कुल १० फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिनके नाम हैं - अमर कहानी, बड़ी बहन, बलम, बंसरिया, हमारी मंज़िल, जल तरंग, जन्नत, नाच, राखी, और सावन भादों। 'बड़ी बहन' में तो लता जी के गाए "चल

क्या टूटा है अन्दर अन्दर....इरशाद के बाद महफ़िल में गज़ल कही "शहज़ाद" ने...साथ हैं "खां साहब"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४८ पि छली कड़ी में पूछे गए दो सवालों में से एक सवाल था "गुलज़ार" साहब के उस मित्र का नाम बताएँ जिसने गुलज़ार साहब के बारे में कहा था कि "कहीं पहले मिले हैं हम"। जहाँ तक हमें याद है हमने महफ़िल-ए-गज़ल की ३६वीं कड़ी में उन महाशय का परिचय "मंसूरा अहमद" के रूप में दिया था। जवाब के तौर पर सीमा जी, शरद जी और शामिख जी में बस सीमा जी ने हीं "मंसूरा अहमद" लिखा, बाकियों ने "मंसूरा" को शायद टंकण में त्रुटि समझकर "मंसूर" कर दिया। चाहते तो हम "मंसूर" को गलत उत्तर मानकर अंकों में कटौती कर देते, लेकिन हम इतने भी बुरे नहीं। इसलिए आप दोनों को भी पूरे अंक मिल रहे हैं। लेकिन आपसे दरख्वास्त है कि आगे से ऐसी गलती न करें। वैसे अगर आपने कहीं "मंसूर अहमद" पढ रखा है तो कृप्या हमें भी अवगत कराएँ ताकि हमें उनके बारे में और भी जानकारी मिले। अभी तो हमारे पास उन कविताओं के अलावा कुछ नहीं है। हाँ तो इस बात को मद्देनज़र रखते हुए पिछली कड़ी के अंकों का हिसाब कुछ यूँ बनता है: सीमा जी: ४ अंक, शरद जी: २ अंक, शामिख जी: १ अंक। अ

अब कोई जी के क्या करे जब कोई आसरा नहीं...दर्द में डूबी लता की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 212 "कु छ लोगों के बारे में कहा जाता है कि फ़लाना व्यक्ति इतनी भाग्यशाली है कि मिट्टी को भी हाथ लगाए तो वह सोना बन जाती है। कुमारी लता मंगेशकर के लिए यह बात शत प्रतिशत सही बैठती है। कितनी ही नगण्य संगीत रचना क्यों न हो, लता जी की आवाज़ उसे ऊँचा कर देती है।" दोस्तों, ये अल्फ़ाज़ थे गुज़रे दौर के बहुत ही प्रतिभाशाली और सुरीले संगीतकार एस. एन त्रिपाठी साहब के। 'मेरी आवाज़ ही पहचान है' शृंखला की दूसरी कड़ी में आप सभी का हम हार्दिक स्वागत करते हैं। दोस्तों, अगर मदन मोहन और लता जी के साथ की बात करें तो आम धारणा यही है कि मदन साहब ने लता जी को पहली बार सन् १९५० की फ़िल्म 'अदा' में गवाया था और तभी से उनकी जोड़ी जमी। जी हाँ यह बात सच ज़रूर है, लेकिन क्या आपको पता है कि सन् १९४८ में लता जी और मदन मोहन ने साथ साथ एक युगल गीत रिकार्ड करवाया था? चलिए आप को ज़रा तफ़सील से आज बताया जाए। हुआ युं कि मास्टर विनायक ने लता को काम दिलाने के लिए संगीतकार ग़ुलाम हैदर साहब के पास ले गए। हैदर साहब लता की आवाज़ और गायकी के अंदाज़ से इतने प्रभावित हुए कि वो उसे

ऑस्कर जीत के बाद लौटे हैं रहमान मगर इस बार रंग है "ब्लू"

ताजा सुर ताल (24) ताजा सुर ताल में आज में आज सुनिए हिंदुस्तान की अब तक की सबसे महंगी फिल्म "ब्लू" का एक गुस्ताख गीत सुजॉय - सजीव, लगता है कि अब वह वक़्त आ गया है कि हमारे यहाँ भी पारंपरिक फ़िल्मी कहानियों से आगे निकलकर हॉलीवुड की तरह नए नए विषयों पर फ़िल्में बनने लगी हैं। सजीव - किस फ़िल्म की तरफ़ तुम्हारा इशारा है सुजॉय? सुजॉय - अक्षय कुमार की नई फ़िल्म 'ब्लू'। इस ऐक्शन फ़िल्म की कहानी केन्द्रित है समुंदर के नीचे छुपे हुए ख़ज़ाने की जिसकी रखवाली कर रहे हैं शार्क मछलियाँ। अमेरिकी लेखक जोशुआ लुरी और ब्रायान सुलिवन ने इस कहानी को लिखा है और गायिका कायली मिनोग ने भी अतिथी कलाकार के रूप में इस फ़िल्म में एक गीत गाया है जो उन्ही पर फ़िल्माया गया है। सजीव - हाँ, मैने भी सुना है इस फ़िल्म के बारे में। क्यों ना थोड़ी सी जानकारी और दी जाए इस फ़िल्म से संबंधित! कहानी ऐसी है कि सागर और सैम दो भाई हैं, जिन्हे गुप्तधन ढ़ूंढने का ज़बरदस्त शौक है। सागर की पत्नी मोना के साथ वे बहामा के लिए निकल पड़ते हैं समुंदर के २०० फ़ीट नीचे छुपे किसी ख़ज़ाने को ढ़ूंढने के लिए। लेकिन उनकी मुलाक