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ठंडी हवा काली घटा आ ही गयी झूम के....गीता दत्त की पुकार पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 48

ज के 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम एक ऐसा गीत लेकर आए हैं जिसे सुन कर आप खुश हो जाएँगे. भाई, मुझे तो यह गीत बेहद पसंद है और जब भी कभी मैं इस गीत को सुन लेता हूँ तो दिल में एक खुशी की लहर सी दौड जाती है. आज की परेशानियाँ भरी ज़िंदगी में यह गीत कुछ देर के लिए ही सही लेकिन हमारे होंठों पे मुस्कान लाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. ठंडी हवाओं और काली घटाओं पर बहुत सारे गाने आज तक बने हैं, लेकिन यह गीत भीड से अलग अपनी एक मज़बूत पहचान रखता है. मिस्टर & मिसिस 55 फिल्म का यह गीत ओपी नय्यर के संगीत और मजरूह के बोलों से सज़ा है.

यूँ तो इस गीत के गायिकाओं में गीता दत्त और साथियों का नाम दर्ज किया गया है, लेकिन इस गीत में शामिल आवाज़ें अपने आप में कई राज़ छुपाये हुए है. इसमें कोई दोराय नहीं कि गीता दत्त की ही आवाज़ मुख्य रूप से सुनाई देती है, लेकिन गौर से अगर आप यह गीत सुने तो कम से कम दो और अलग आवाज़ें भी आप आसानी से महसूस कर सकते हैं, ख़ास कर गीत के शुरूआती मुखड़े में ही. गीत कुछ इस तरह से शुरू होता है...

पहली आवाज़: ठंडी हवा
दूसरी आवाज़: काली घटा
तीसरी आवाज़: आ ही गयी झूम के
गीता दत्त : प्यार लिए डोले हँसी नाचे जिया घूम के.

गीता दत्त से पहले की यह तीन आवाज़ें किनकी हैं इसका आज तक कोई खुलासा नहीं हुआ है. ज़्यादातर लोगों का अनुमान रहा है कि पहली आवाज़ गीता दत्त की ही है, दूसरी आवाज़ शमशाद बेगम की है, लेकिन तीसरी आवाज़ में कुछ संशय है. कुछ लोग कहते हैं कि तीसरी आवाज़ भी गीता जी की ही हैं और उन्होंने अपनी आवाज़ को थोडा सा बदल कर वो 'लाइन' गाई है. फिल्म के पर्दे पर गीता दत्त ने मधुबाला का पार्श्वगायन किया है जब कि पहले की तीन आवाज़ें मधुबाला की तीन सखियों के लिए है. दोस्तों, इस आलेख को लिखने से पहले मैने कई वरिष्ठ फिल्म संगीत रसिकों से राय मांगी थी, लेकिन किसी से भी कोई ठोस बात नहीं निकाल पाया. और अब ना तो नय्यर साहब हमारे बीच हैं, ना ही मजरूह साहब, और ना ही गुरु दत्त. शायद यह राज़ राज़ ही रह जायेगा हमेशा के लिए. या फिर ऐसा भी हो सकता है कि कोई राज़ की बात हो ही ना, यानी कि पहले की तीन आवाज़ें 'कोरस' में से किन्ही तीन लड़कियों ने गाया होगा, ऐसा भी हो सकता है. खैर, आप भी ज़रा पता लगाने की कोशिश कीजिए, मैं भी करूँगा. लेकिन आज इन सब बातों को भूल कर गीता दत्त, ओपी नय्यर और मजरूह साहब को याद करते हुए इस रंगीले गीत का आनंद उठाइये और ठंडी हवाओं काली घटाओं को दावत दीजिए.



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. मुकेश का एक और दर्द भरा नग्मा.
२. रजा मेहंदी अली खान के बोल और एल पी का संगीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"जीवन"

कुछ याद आया...?



खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

बढ़िया प्रस्तुति
शायद अगला गीत मुकेश जी का आँसू भरी है जीवन की राहे हों
Neeraj Rohilla said…
सागरजी,
"आंसू भरी हैं जीवन की राहें" के गीतकार हसरत जयपुरी हैं। लेकिन इस गीत के प्रारम्भ की शहनाई जिगर चीर के पार निकल जाती है।

मेरे ख्याल से सही गीत है "तुम बिन जीवन कैसे बीता पूछो मेरे दिल से"।
तुम बिन जीवन कैसे बीता
manu said…
neeraj ji waalaa hi get sahi lag rahaa hai,,
मुझे तो पहेली में सर खपाने की तुलना में मधुर गीत अधिक आनंद दे रहर हैं.

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