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अनकथ तेरी शहादत को, किस पैमाने पर तोल, लिखूँ ?

दो बोल लिखूँ!
शब्दकोष खाली मेरे, क्या कुछ मैं अनमोल लिखूँ!

आक्रोश उतारुँ पन्नों पर,
या रोष उतारूँ पन्नों पर,
उनकी मदहोशी को परखूँ,
तेरा जोश उतारूँ पन्नों पर?

इस कर्मठता को अक्षर दूँ,
निस्सीम पर सीमा जड़ दूँ?
तू जिंदादिल जिंदा हममें,
तुझको क्या तुझसे बढकर दूँ?
अनकथ तेरी शहादत को, किस पैमाने पर तोल, लिखूँ?


मैं मुंबई का दर्द लिखूँ,
सौ-सौ आँखें सर्द लिखूँ,
दहशत की चहारदिवारी में
बदन सुकूँ का ज़र्द लिखूँ?

मैं आतंक की मिसाल लिखूँ,
आशा की मंद मशाल लिखूँ,
सत्ता-विपक्ष-मध्य उलझे,
इस देश के नौनिहाल लिखूँ?
या "राज"नेताओं के आँसू का, कच्चा-चिट्ठा खोल,लिखूँ?

फिर "मुंबई मेरी जान" कहूँ,
सब भूल, वही गुणगान कहूँ,
डालूँ कायरता के चिथड़े,
निज संयम को महान कहूँ?

सच लिखूँ तो यही बात लिखूँ,
संघर्ष भरे हालात लिखूँ,
हर आमजन में जोश दिखे,
जियालों-से जज़्बात लिखूँ।
शत-कोटि हाथ मिले जो, तो कदमों में भूगोल लिखूँ!
हैं शब्दकोष खाली मेरे, क्या कुछ मैं अनमोल लिखूँ?


हिंद युग्म के कवि विश्व दीपक "तन्हा" की ये कविता बहुत कुछ कह जाती है दोस्तों. आवाज़ के कुछ मित्रों ने इन ताज़ा घटनाओं पर हम तक अपने विचार पहुंचाएं. दिल्ली के आनंद का कहना है -

मित्रो,मुंबई की घटना ने हमे ये सोचने पर मजबूर कर दिया है की कब तक ..........
कब तक हमे ऐसे माहौल में जहाँ चारो तरफ एक डर और अविश्वास का वातावरण है इसमें रहना पड़ेगा ,
कब तक इन लफ्फाज नेताओं की लफ्फाजी और आश्वाशनो की घुट्टी पीनी पड़ेगी
आखिर कब तक .............
दोस्तों आज हम युवाओं को आगे आकर जिम्मेदारी उठानी होगी ,चुप्पी तोड़नी होगी
याद करो दोस्तों भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत. क्या ऐसे ही भारत का सपना उनकी आँखों में था, नहीं दोस्तों, उस वक़्त वो आगे आये आज तुम्हारी नैतिक जिम्मेदारी है तुम आगे आओ, चुप्पी तोड़ो ...............
हमे नाज है अपने उन जांबाज सुरक्षाकर्मीओं पर जिन्होंने देश की अस्मिता पर आये इस भयानक संकट को मिटाने के लिए अपने आप को मिटा दिया हम सलाम करते है उनकी बहादुरी को ..........
और धिक्कारते है इन लफ्फाज और बेशर्म नेताओं को जिनके राजनीति की वजह से हजारों -लाखों निर्दोष लोग काल के गाल में समां जाते है,
ये हमारे रोल मॉडल कतई नहीं हो सकते हमारे हीरो तो हेमंत करकरे,विजय सालसकर,संदीप उन्नीकृष्णन जैसे जांबाज है जो वक़्त आने पर देश पर अपनी जान भी देना जानते है.


ग्वालियर पुलिस में कार्यरत हमारे साथी अरविन्द शर्मा इस मंच के माध्यम से आप सब से एक अनुरोध कर रहे हैं -

प्रिये साथियो,
देश मे फिर आंतकवाद ने कितने घरों के चिराग बुझा दिए. यह आप हम नहीं जानते ऐसा कर उन को क्या मिला पर दोस्तों, साथियो उन माँओं से पूछो जो अपने बच्चो को खोने का दर्द सहती है या उन बहनों से पूछो जो सारी उम्र टक टकी लगाए इंतजार करती रहती है ...माँ, बहनें, जीवन संगनी, बच्चे, कितने रिश्ते खत्म हो जाते है एक पल में. कितना अकेला पन होता इन रिश्तों के बिखर जाने के बाद ...कोई उनको समझाए ...कि उनके भी रिश्ते ऐसा ही उनके जाने के बाद दर्द पैदा करते है वो भी रिश्तो की डोर से बंधे होंगे. हम शर्मिंदा है आज ...उन रिश्तो के आगे जो इस पीडा के शिकार बने ..उन देश भक्तों को नमन जो शहीद हुवे ..आज हम सब भाई, दोस्त,साथी, उन सब के लिए भगवान् से प्रार्थना करें कि उनको अपने चरणों मे स्थान दें शान्ति दें व उनके परिवार, रिश्तो को हिम्मत दे !
हम सब का फ़र्ज़ बनता है की हम उनके आत्मा के लिए एक दिया जला उनको समर्पित करे व् दुआ करे. यह मेरी आप सब दोस्तों साथियो से हाथ जोड़ प्रार्थना है ..एक दिया - एक प्रार्थना ...


वीर सिपाहियों के साथ साथ मीडिया की भी तारीफ करनी पड़ेगी विशेषकर NDTV की, जिसने इस पूरी घटना को बेहद संवेदनात्मक रूप से आम जनता तक पहुंचाया. शहीदों को श्रद्धा सुमन प्रस्तुत करते समय उन्होंने जिस गीत का पार्श्व में उपयोग किया वो फ़िल्म "आमिर" का है. अमिताभ वर्मा के लिखे इस गीत की धुन बनाई है अमित त्रिवेदी ने और गाया है शिल्पा राव ने. दोस्तों, इस गीत को आज आवाज़ पर पूरा सुनें और याद करें एक बार फ़िर देश पर शहीद हुए उन अमर सपूतों की शौर्य गाथा.



आप भी अपने विचार टिप्पणियों के माध्यम से या मेल द्वारा हम तक पहुँचायें. इस मुश्किल समय में एक मजबूत देश की एकजुटता आज दुनिया देखे.


Comments

neelam said…
शत-कोटि हाथ मिले जो, तो कदमों में भूगोल लिखूँ!
हैं शब्दकोष खाली मेरे, क्या कुछ मैं अनमोल लिखूँ?
v-d-t,ji bus hum bhi kya kuch aur likhe ?
आपके बोल अनमोल हैं.

आपके शब्द्कोश खाली नहीं, हम सब के शब्दों के बाण आपके साथ है.

स्थिती बडी़ पीडा़दायक है, हम सब क्या कर सकते हैं? शायद आपके ये बोल हमें इकठ्ठा कर सके, शायद इस अन्धेरे में रोशनी ला सके.

लगे रहो मेरे कविमित्र, लगे रहो.

शहीदों के लिये एक आंसू मेरा भी . करोडो आंसूंओं की गंगा बहा दें.
सटीक प्रस्तुति, धन्यवाद.!
dpsingh said…
bahut bahut achchhi ..

lay main peeda daali hain...
apni nirasa (es indian gov se),hatasha (na kuchh kar paane ki ) ka mel .. bahut bereeki se likha hai
..
hats off to U !
शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ।
तन्हा जी,
आपने बहुत ही बढ़िया कविता लिखी है। मुम्बई की तत्कालीन परिस्थियों या संपूर्ण देश की तत्कालीन परिस्थितियों पर आपकी कविता के रूप में आम जनता का आक्रोश उभरकर सामने आया है।

यह गीत भी बहुत बढ़िया और प्रासंगिक है।
biswajit said…
tanha ji ki kavita dil ko chu gayi... shahido ke liye ashesh shradhanjali... unke aatma ko shaanti mile yahi dua hai meri.

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